किसान एवं केन्द्र सरकार, कोई भी झुकने को तैयार नहीं

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया।
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया।
किसान आन्दोलन को लेकर जिस तरह के हालात बने नज़र आ रहे हैं, वे बड़ी चिन्ता में डालने वाले हैं। इस तरह लगता है कि सरकार और किसान संगठन अपने-अपने स्टैंड पर अडिग हो गए हैं। चाहे बातचीत के लिए तैयार होने के दावे तो दोनों पक्ष करते हैं परन्तु वास्तव में दोनों पक्ष एक-दूसरे पर दबाव बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं। 
केन्द्र सरकार ने किसान धरनों के दिल्ली क्षेत्र की तरफ 10-12 प्रकार की बैरिकेडिंग कर दी है। पानी की सप्लाई कई स्थानों पर बंद है। इंटरनैट बंद है। बिजली कभी बंद कर दी जाती है और कभी चालू कर दी जाती है। किसान समूह के आस-पास जिस तरह की बैरिकेडिंग और पक्की बैरिकेडिंग की गई है, वह शायद हिन्दोस्तान के इतिहास में पहली बार की गई होगी। इस तरह लगता है कि जैसे सरकार ने किसान समूहों को एक खुली (ओपन) जेल में बंद कर दिया हो। हालत यह है कि देश की 10 विरोधी पार्टियों के चुने हुए सांसदों के प्रतिनिधियों तक को किसानों से मुलाकात कर हालात से अवगत होने की अनुमति नहीं दी गई और उनको वापस लौटना पड़ा। किसानों की हालत इस तरह लगती है :
मंज़िलों की चाह लेकर रास्तों में कैद हैं।
हम तो एक फरियाद लेकर रास्तों में कैद हैं। 
कितनी खुशी की बात थी कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा थी कि बातचीत के दरवाज़े खुले हैं, मैं सिर्फ एक फोन कॉल दूर हूं। परन्तु जिस तरह की जानकारी हमारे पास है, वास्तव में दोनों पक्ष ही अपनी-अपनी बात पर अडिग हैं। केन्द्र सरकार किसी भी कीमत पर तीन कानून रद्द करने के लिए तैयार नहीं, परन्तु किसान संगठनों को कानून रद्द करने से कम कुछ भी स्वीकार नहीं है। 
नि:संदेह संयुक्त किसान मोर्चे ने अधिकारित तौर पर मोर्चे की मांगें नहीं बढ़ाईं परन्तु जींद में हुई किसान पंचायत जिसमें किसान नेता राकेश टिकैत और बलबीर सिंह राजेवाल दोनों की उपस्थिति में कई नई मांगें भी उठाईं गई हैं, जिनमें सबसे बड़ी मांग देश भर के किसानों का कज़र्ा माफ करना और स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की मांगें भी शामिल हैं। मतलब यह है कि आगामी दिनों में समझौते की पहल करने के लिए दोनों पक्ष ही अभी तैयार नहीं हैं अपितु एक-दूसरे पर दबाव बढ़ाने की रणनीति ही अपना रहे हैं। राकेश टिकैत की धमकी कि अब तो कानून वापसी की मांग है, फिर ‘गद्दी वापसी’ की मांग करेंगे। यह अपने-आप में सरकार पर दबाव बढ़ाने की जबरदस्त रणनीति है। परन्तु दूसरी तरफ जानकार हलके यह भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी कानून वापस नहीं लेंगे। इसलिए किसानों और केन्द्र सरकार के मध्य चल रहा यह टकराव कब तक चलेगा और क्या रूप लेता है, अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। 
टिकैत बारे आशंकाएं, विश्वास एवं अफवाहें?
26 जनवरी को लाल किले पर निशान साहिब फहराए जाने के बाद के हालात में एक बार फिर किसान मोर्चा थोड़ा ठंडा पड़ गया लगता था, परन्तु अचानक किसान नेता राकेश टिकैत के स्टैंड और आंसुयों ने किसान संघर्ष को पुन: पांवों पर खड़ा कर दिया, जिस कारण टिकैत इस समय किसान आन्दोलन के हीरो बने दिखाई दे रहे हैं। 
परन्तु दूसरी ओर राकेश टिकैत के बारे कई तरह की चर्चाएं सुनाई दे रही हैं तथा कई आशंकाएं उत्पन्न हो रही हैं। कहा जा रहा है कि ‘मीडिया’ जो किसानों के पक्ष में बात नहीं करता था, वह भी राकेश टिकैत को विशेष महत्व देकर उनको किसान मोर्चे से भी बड़े कद का नेता बना रहा है। यह सरकार के इशारे पर किया जा रहा है। सभी विपक्षी राजनीतिक दल भी उनके सम्पर्क में आ रहे हैं। वर्तमान में जो दिख रहा है, उसके अनुसार राकेश टिकैत की भावुक अपील ने मोर्चे को एक नया शिखर दिया है परन्तु इसके साथ ही देखने वाली बात है कि राकेश टिकैत और उनके भाई नरेश टिकैत के पहले बयान संयुक्त किसान मोर्चे के स्टैंड से थोड़ा अलग प्रभाव दे रहे थे। वे तीन वर्ष के लिए या मोदी शासन के समय के लिए इन तीनों कानूनों को रद्द किये जाने के पक्ष में बोल चुके हैं और सरकार भी कानून रद्द करने के लिए तो तैयार ही है। नि:संदेह वह अभी डेढ़ और दो वर्ष तक का समय दे रही परन्तु संयुक्त किसान मोर्चा तो इन कानूनों को रद्द करने की मांग पर अडिग है। 
लोगों में एक चर्चा है कि टिकैत के पूरी तरह उभार के बाद और उस के सम्पर्क के कुछ किसान संगठनों को मना कर कानून स्थगित करके इन पर विचार करने हेतु एक समिति बना दी जाएगी। एम.एस.पी. को कानूनी रूप देने का फैसला भी किया जाएगा। इस तरह टिकैत और कुछ संगठनों द्वारा अपनी जीत का दावा करके मोर्चा वापस लेने की घोषणा कर दी जाएगी और संयुक्त किसान मोर्चा को एक तरफ छोड़ दिया जाएगा। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि राकेश टिकैत का कद ऊंचा करके भाजपा उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह का गढ़ तोड़ने और इस क्षेत्र को जाटों तथा मुस्लिम जाटों (रंगड़ों) की एकता को तोड़ने तथा उस क्षेत्र में भाजपा को और मज़बूत करने के लिए प्रयोग किया जाएगा और हिन्दू कार्ड भी खेला जाएगा। परन्तु ये सब बातें ठीक हैं कि नहीं या यह सिर्फ सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा टिकैत की बढ़ती लोकप्रियता को संदेह के घेरे में लाने के लिए फैलाई जा रही अफवाहें ही हैं। इस बारे अभी कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु संयुक्त किसान मोर्चे के नेता तो इन बातों को अफवाहें ही करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि टिकैत ने हमें पूरा आश्वासन दिलाया है कि वह संयुक्त किसान मोर्चा के प्रत्येक फैसले  को मानेंगे और स्वयं कोई अलग फैसला नहीं लेंगे, जबकि जींद की किसान पंचायत में भी टिकैत ने कहा कि राजेवाल और संयुक्त मोर्चे के नेता  हमारे नेता हैं। यहां उन्होंने तीनों कानून रद्द करने की खुल कर मांग भी की और कड़ी चेतानवी भी दी है। 
किसान नेताओं का कहना है कि टिकैत परिवार किसान हितों के लिए लड़ने वाला परिवार है। उन्होंने एक और बात भी कही कि यदि टिकैत या कोई अन्य नेता अकेले तौर पर सरकार के साथ कोई फैसला करेगा तो वह अपना विश्वास गंवा बैठेगा और अपनी ही छवि धूमिल करेगा। किसान मोर्चा तो ऐसी स्थिति के बाद और भी मज़बूत ही होगा। 
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