सही समय पर दिया जाएगा विदेशी दुष्प्रचार का जवाब 

देश के परिश्रम और जिजीविषा को कोरोना से आतंकित करने वाला झंझावात फिर एक बार ढलान पर आ गया है। हममें से अनेक लोगों ने अपनों को खोया या अपने लोगों को परिजनों को खोते हुए देखा है। ऐसी विकट परिस्थितियों में शत्रु और विरोधी ज्यादा तीखा प्रहार करते हैं क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि इस माहौल में उनकी बातों को समर्थन मिलेगा। इसमें सच और झूठ को अलग करने का सामूहिक विवेक कमज़ोर पड़ता है। जब कोरोना प्रकोप चरम पर था तो विदेशी मीडिया में भारत विरोधी दुष्प्रचार सहनशीलता की सीमा पार कर गया। 
भारत की छवि को संगठित तरीके से तार-तार करने का अभियान चल रहा था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सबसे पहले कहा कि नया वैरीएंट भारत में ही पाया गया और 44 देशों में पहुंचा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना प्रकोप के दौरान ऐसा एक भी कदम नहीं उठाया जिससे विश्व को इससे लड़ने में मदद मिले। उसने बार-बार केवल डर और भय पैदा किया। कोविड-19 का जो वायरस दिसम्बर 2019 में पाया गया, उसका स्रोत वैज्ञानिकों के अनुसार चीन का वुहान प्रांत था। विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन को कुछ कहने का साहस आज तक नहीं दिखा सका। उसने भारत में कोरोना की दूसरी लहर के बारे में भी कोई भविष्यवाणी नहीं की। हां, उसे नये वेरिएंट का स्रोत भारत में अवश्य दिख गया। अगर यह 44 देशों में पाया गया जिनमें अमरीका के साथ यूरोप के देश भी शामिल हैं, तो क्यों न मानें कि वैरीएंट इन्हीं में कहीं से निकला होगा।
 गहराई से देखेंगे तो आपको भारत विरोधी दुष्प्रचार का एक अंतर्राष्ट्रीय पैट्रन दिखाई देगा। लांसेट जैसी विज्ञान की पत्रिका ने जिस तरह राजनीतिक लेख लिखकर वास्तविकता से दूर भारत की बिल्कुल भयावह विकृत तस्वीर पेश की और भारत सरकार को इस तरह लांछित किया मानो जानबूझकर मानवीय त्रासदी की स्थिति तैयार की गई। साफ  था कि शत्रु चारों ओर सक्रिय थे। इनमें कोई रचनात्मक सुझाव नहीं, तथ्यात्मक विश्लेषण नहीं। भारत के टीके को कमतर बताने का अभियान भी विश्व स्तर पर चल रहा है। कोरोना की पहली लहर में जब भारत ने अपने देश से हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवाइयां विश्व भर को आपूर्ति करना शुरू कीं, तब भी इसी तरह का दुष्प्रचार किया गया। मेडिकल भाषाओं में तथाकथित रिपोर्टों को उल्लिखित कर कहा गया कि यह कोरोना में प्रभावी ही नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर मुहर लगा दी। हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन जैसी सस्ती दवा के समानांतर दुनिया भर की बड़ी कम्पनियों ने अनेक महंगी दवाइयां, इंजेक्शन कोरोना के नाम पर बाज़ार में  झोंके, उन्हें प्रभावी बताया और खूब मुनाफा कमाया। बाद में साबित हुआ कि वो दवाइयां अनुपयोगी और हानिकारक थीं। अब जब भारत ने कोरोना को नियंत्रित कर लिया है तो क्या इनका दायित्व नहीं बनता कि इसे भी स्थान दें। हालांकि उस दौर में भी विश्व के स्तर पर ही इनको प्रत्युत्तर मिलना आरंभ हो गया था। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ के मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स की प्रतिष्ठित वेबसाइट ईयू रिपोर्टर ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भारत विरोधी रिपोर्ट और लेखों का विश्लेषण कर सबको कटघरे में खड़ा किया। इसने लिखा कि न सही तथ्य देखे गए, न तथ्यों का विश्लेषण किया गया बल्कि बड़ी दवा कम्पनियों के प्रभाव में आकर भारत के बारे में नकारात्मक रिपोर्ट और लेख लिखे गए। ऐसे समय जब भारत के साथ खड़ा होना चाहिए, मीडिया के इस समूह ने निहायत ही गैर-ज़िम्मेदार भूमिका निभाई। लांसेट की आलोचना करते हुए बताया गया कि उसकी एशिया सम्पादक एक चीनी मूल की महिला हैं जिन्होंने भारत विरोधी लेख लिखा था।
अमरीका की ही जॉन हापकिंस यूनिवर्सिटी ने दुनिया के कई देशों के कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए कहा कि भारत कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में अभी सबसे सुरक्षित देशों में से एक है। यूनिवर्सिटी ने भारत को फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, अमेरिका, स्वीडन, ब्रिटेन, इटली, स्पेन, ब्राज़ील जैसे देशों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित बताया। विश्व में सबसे बेहतर स्वास्थ्य ढांचे का दावा करने वाला देश अमरीका विश्व में कोविड-19 वाली मौतों में लगमग छह लाख के साथ सबसे ऊपर है। अमरीकी मीडिया को यह दिखाई नहीं दिया कि भारत जैसे 130 करोड़ वाले देश का आंकड़ा इससे आधा पर है।
अच्छा है कि भारत ने अपना धैर्य बनाए रखा। भारत विरोधी दुष्प्रचार में शामिल सबको उत्तर दिया जाना चाहिए लेकिन समय पर। हमारे देश ने अपना एक स्वतंत्र टीका विकसित किया। डीआरडीओ ने जो 2डीजी औषधि बनाई, वह विश्व में अपने किस्म की अकेली कोरोना औषधि है। ये बड़ी उपलब्धियां हैं। अमरीका में मीडिया से लेकर सरकार अपने टीके को विश्व में सबसे ज्यादा 95 प्रतिशत प्रभावी होने का प्रचार करती है। टीका बनाने वाले दूसरे देश भी अपना प्रचार कर रहे हैं। भारत में अपने ही टीके की पहले खिल्ली उड़ाई गई, उसके बारे में नकारात्मक धारणा फैलाई गई, मीडिया में नकारात्मक बहस हुई, लेख लिखे गए। विदेश में बैठे दुष्प्रचारकों को भी भारत से ही तो आधार मिलता है। -मो.  98110-27208