ऊंचाई

दस वर्षीय अर्शी अपनी खिड़की से आसमान को टकटकी लगाकर ताक रही थी। पास खड़े उसके पापा ने उसकी आंखों का पीछा करते हुए पूछा, कि वह इतने ध्यान से क्या देख रही है?
‘आसमान को देख रही हूं।’ अर्शी ने आसमान से ध्यान हटाये बिना कहा। ‘आसमान में ऐसा क्या है, जिसे तुम इतने गौर से देख रही हो?’ पापा ने उसके करीब बैठते हुए पूछा। अर्शी की आंखों में जैसे सपने तैरने लगे। वह बोली, ‘पापा, दादी मुझसे कहती हैं कि एक दिन मैं आसमान की ऊंचाई की छूऊंगी। मैंने दादी से कहा कि आसमान तो बहुत ऊंचा है, मैं इसे कैसे छू सकती हूं? तो दादी हंसकर कहती हैं, आसमान की ऊंचाई को छूने का मतलब होता है, पढ़-लिख कर सफल होना। जब मैं पढ़-लिखकर काबिल इन्सान बन जाऊंगी, तब लोग मेरे लिए यही कहा करेंगे कि मैंने आसमान की ऊंचाइयों को छू लिया। इसीलिए मैं हर रोज खिड़की से आसमान को देखती हूं ताकि मुझे आसमान की ऊंचाई का अंदाज़ा लग सके। पापा, मैं खूब पढ़ाई करके दादी का सपना ज़रूर पूरा करूंगी।’
अर्शी के छोटे से मुंह से इतनी बड़ी बात सुनकर उसके पापा भावविभोर हो गये। उनकी आंखों में आत्मग्लानि के आंसू तैरने लगे। वह मन ही मन बुदबुदाने लगे, ‘यह वही अर्शी है, जिसे मैं लड़की होने की वजह से उसकी मां की कोख में ही मरवा देना चाहता था।’
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