चुनाव आयुक्त भी नियुक्त नहीं कर सकी है सरकार

इस समय भारत में कई शीर्ष संवैधानिक संस्थाओं में अहम पद महीनों से खाली पड़े हैं और सरकार बेपरवाह बनी हुई है। लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद साढ़े तीन साल से खाली है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में जजों के सैंकड़ों पद अरसे खाली पड़े हैं। चीफ  ऑफ  डिफेंस स्टाफ  यानि सीडीएस का पद नौ महीने से खाली पड़ा था, जिस पर हाल ही में नियुक्ति हुई है। देश का नया एटार्नी जनरल खोजने में सरकार को दो साल से ज्यादा का समय लगा और अब जाकर आर. वेंकटरमणि को नियुक्त किया गया है। यही नहीं, तीन सदस्यीय चुनाव आयोग जैसी संस्था में कभी कोई पद खाली नहीं रहना चाहिए लेकिन वहां भी पिछले चार महीने से चुनाव आयुक्त का एक पद खाली पड़ा हुआ है। इस समय चुनाव आयोग के सामने बहुत बड़ा मामला लम्बित है। उसे शिव सेना के बारे में फैसला करना है। इसके अलावा अगले दो महीने में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन तीसरे चुनाव आयुक्त का पद खाली है। ऐसे में तब मुश्किल आ सकती है, जब किसी मसले पर गतिरोध पैदा हो गया। शिव सेना के मामले में फैसला करते हुए दोनों आयुक्तों की एक जैसी राय नहीं हुई तो क्या होगा, या दो राज्यों के चुनाव के मामले में भी अगर गतिरोध बने यानि टाई हो तो टाई ब्रेकर कौन होगा? इस चक्कर में फैसला टला रह सकता है। पता नहीं क्यों, सरकार इस मामले की गंभीरता को समझ नहीं पा रही है?
सरकार को मिल ही गया नया एटार्नी जनरल 
देश के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी यानि एटार्नी जनरल के पद के लिए पूरे सवा दो साल की मशक्कत के बाद सरकार को अब जाकर जैसे-तैसे ‘उपयुक्त’ व्यक्ति मिल पाया है। पिछले पांच साल से के.के. वेणुगोपाल देश के अटार्नी जनरल थे। तीन साल के कार्यकाल के बाद उनको दो बार एक-एक साल का और फिर तीन महीने का सेवा विस्तार मिला जो 30 सितम्बर को समाप्त हो गया। सरकार पहले इस पद पर मुकुल रोहतगी को नियुक्त करने वाली थी, लेकिन ऐनवक्त पर उन्होंने एटार्नी जनरल बनने से इन्कार कर दिया। वह नरेंद्र मोदी की सरकार के 2014 से 2017 तक पहले अटॉर्नी जनरल रहे हैं। वेणुगोपाल का सेवा विस्तार खत्म होने पर सरकार पहले इस पद हरीश साल्वे को नियुक्त करना चाहती थी। उनके लिए सरकार ने एक साल से ज्यादा समय तक इंतजार किया, लेकिन वह तैयार नहीं हुए तो रोहतगी को फिर मौका देने का फैसला हुआ। रोहतगी ने एटार्नी जनरल बनने के लिए पहले हामी भर दी थी लेकिन 25 सितम्बर को उन्होंने सरकार को सूचित किया कि उनका इरादा बदल गया है और अब वह एटार्नी जनरल नहीं बनेंगे। उधर 91 वर्षीय वेणुगोपाल ने पहले ही सरकार से कह दिया था कि वह अब और सेवा विस्तार नहीं लेंगे। ऐसे में सरकार को आर. वेंकटरमणि को एटार्नी जनरल नियुक्त करना पड़ा।
 वेंकैया नायडू का सुझाव  
पांच साल तक उप-राष्ट्रपति रहे वेंकैया नायडू ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक रूप से कभी कोई सुझाव नहीं दिया लेकिन पद से हटने के डेढ़ महीने के भीतर ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह दी है कि वे पक्ष और विपक्ष की पार्टियों व नेताओं के साथ मेल-मुलाकात बढ़ाएं ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके। सबसे दिलचस्प यह है कि उनको यह दिखने लगा है कि कुछ गलतफहमी बन रही है और प्रधानमंत्री के कामकाज के तौर-तरीकों को लेकर विपक्षी पार्टियों के मन में शंकाएं और आपत्तियां हैं। उनका यह सब कहने का असली मतलब क्या है, यह तो वह ही जानते होंगे या भाजपा के दूसरे नेता जानते-समझते होंगे, लेकिन सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी विपक्षी नेताओं से मिलते ही कब हैं, जो वेंकैया नायडू इसकी फ्रीक्वेंसी बढ़ाने की बात कह रहे हैं। संसद सत्र से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक में भी प्रधानमंत्री अक्सर शामिल नहीं होते हैं। इसके अलावा कोरोना महामारी के दौरान और एक बार गलवान घाटी में चीन के साथ हुई झड़प के बाद उन्होंने सर्वदलीय बैठक की थी। 
इसके अलावा तो कभी विपक्षी नेताओं से उनके मिलने और अपनी सरकार के कामकाज पर फीडबैक लेने की कोई मिसाल नहीं है। इसलिए सवाल है कि क्या वेंकैया नायडू उनको यह सलाह दे रहे थे कि वह विपक्षी नेताओं से मिलना-जुलना शुरू करें? उन्होंने सलाह दी है तो उसका कुछ न कुछ तो मतलब होगा ही। 
अभी तो गुजरात को सब मिलेगा
भाजपा का मौजूदा नेतृत्व चुनाव की प्लानिंग कितनी बारीकी से करता है, यह बाकी पार्टियों को उससे सीखना चाहिए। गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इसलिए सब कुछ गुजरात की ओर जा रहा है या पहले से ही इवेंट्स इस तरह से प्लान किए गए हैं कि चुनाव के साल में सब कुछ गुजरात में हो। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर हफ्ते-दो हफ्ते में गुजरात का दौरा कर वहां योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन कर रहे हैं। अभी प्रधानमंत्री ने दो दिन के दौरे में वहां राष्ट्रीय खेलों का उद्घाटन किया। यह सब पहले से प्लान किया हुआ था कि चुनाव के साल में राष्ट्रीय खेल गुजरात में होंगे। पिछले दिनों वेदांता-फाक्सकॉन का डेढ़ लाख करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से उठ कर गुजरात चला गया। महाराष्ट्र में इस पर हंगामा मचा हुआ है लेकिन प्राथमिकता चूंकि गुजरात का चुनाव है इसलिए इतना बड़ा प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से छीन लिया गया। 
अभी साल 2020 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की घोषणा हुई, जो आशा पारेख को दिया गया। आशा पारेख भी गुजरात की रहने वाली हैं। यह बहुत छोटी बात है लेकिन ऐसी ही छोटी-छोटी बातों का भाजपा अपनी चुनावी रणनीति में बहुत ध्यान रखती है। हिंदी फिल्म उद्योग से ही किसी को यह पुरस्कार देना था तो आशा पारेख से कई गुना ज्यादा उसकी हकदार वहीदा रहमान हैं। वह हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन अदाकारा हैं लेकिन अभी तो सब कुछ गुजरात के हिसाब से हो रहा है।

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