साहित्य के नोबेल पुरस्कार का टूट रहा है पारम्परिक पैमाना

साल 2015 में नोबेल पुरस्कारों के इतिहास में पहली बार एक विशुद्ध पत्रकार बेलारूस की स्वेतलाना अलेक्सिएविच को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। स्वेतलाना का काम साहित्य के पारम्परिक रूप यानी कहानी,किस्से या ललित निबंधों के दायरे में नहीं आता। उन्होंने विभिन्न घटनाओं की जीवंत रिपोर्टिंग की है,विशेषकर चेर्नोबेल परमाणु दुर्घटना की। उन्होंने अनेक मुद्दों पर सारगर्भित आलेख लिखे हैं,खासतौर पर द्वितीय विश्व युद्ध के वृहद् परिदृश्य पर। इसी तरह साल 2016 का नोबेल पुरस्कार बॉब डिलन को मिला,जिन्हें हम सब जानते हैं कि वो फोक के रंग में राजनीतिक विद्रोह का आभास देने वाले मनोरंजक गीत लिखते और गाते रहे हैं। सीधे सीधे ये गीत भी क्लासिक साहित्य के दायरे में नहीं आते। इसी क्त्रम में देखें तो 2019 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार आस्ट्रेलिया के पीटर हैंडके को मिला,जो साहित्यकार होने के साथ साथ ज्यादा वजनदार फिल्मकार और पटकथा लेखक हैं। स्वीडिश अकादमी ने उनके संबंध में खास तौर पर उद्धृत किया कि उन्हें भाषाई प्रयोग में बरती गयी अन्यतम मानवीयता के लिए यह पुरस्कार दिया गया है और यह प्रयोग उन्होंने अपनी लिखी गई पटकथाओं में किया है। अब फ्रांसीसी लेखिका एनी एर्नाक्स को लें जिन्हें इस साल साहित्य का नोबेल पुरस्कानर दिया गया है। उन्हें भी यह कहानी, कविता,नाटक या ललित निबंधों के लिए नहीं दिया गया बल्कि सच्ची आत्मकथात्मक निजी यादों को बेहद ईमानदारी और साहसिक स्पष्टता से लिखने के लिए दिया गया है। एर्नाक्स तो खुद को साहित्यकार कहने में भी हिचकिचाती हैं और कई जगहों पर उन्होंने अपने लिए ‘एथ्नोलोजिस्ट’ शब्द का इस्तेमाल किया है, जिसका मतलब एक ऐसे व्यक्ति से होता है जो विभिन्न समाजों और संस्कृतियों का नृविज्ञानीय सन्दर्भों से अध्ययन करता है।
एनी एर्नाक्स का जन्म सन 1940 में फ्रांस के नॉर्मण्डी इलाके के एक छोटे से शहर यवेटोट में हुआ। उनके माता-पिता की किराने की एक दुकान और कैफे था। उनका लेखकीय संघर्ष कई स्तरों से जूझते हुए काफी मुश्किल भरा रहा। अब तक उन्होंने 20 से अधिक किताबें लिखी हैं, लेकिन ये सभी किताबें उनके आस-पास के जीवित समाज पर आधारित हैं, जिनके साथ उनका सीधा और जीवंत रिश्ता रहा है। एनी एर्नाक्स ने जिन विषयों को खास तौर पर जोर देकर लिखा है, वे यौन उत्पीड़न, गर्भपात, कई तरह की बीमारियों और गरीबी के हालात में उनके माता-पिता की मृत्यु को अपने में समेटते हैं। शायद उनका लेखन इतना व्यवहारिक और रोजमर्रा की दुनिया के संघर्ष को शब्दों में पिरोने का रहा है कि उन्होंने साफ -साफ  शब्दों में कहा है, ‘लेखन एक राजनीतिक कार्य है, जो सामाजिक असमानता की ओर हमारी आंखें खोलता है।’ अपने इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए वह कल्पना के पर्दे को फाड़ने के लिए भाषा को चाकू के रूप में इस्तेमाल करती हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता एनी का दुनिया को परिचय देते हुए नोबेल कमेटी बहुत स्पष्ट शब्दों में लिखती है कि एनी एर्नाक्स लिखने की आज़ादी पर विश्वास रखती हैं। उनका काम समझौता नहीं करता और यह सरल व साफ -सुथरी भाषा में होता है।
इसलिए जो लोग कथेतर साहित्य को, साहित्य मानने में ही नाक-भौं सिकोड़ते हैं, और दिमाग को बिना कष्ट दिए बेहद अनुमानित इकहरी कल्पनाओं वाली कहानियों और तुकबंदियों के कोरस वाली कविताओं को ही पारिभाषिक साहित्य मानते हैं, उन्हें अपने कुंओं से निकलकर बाहर झांकने की जरूरत है; क्योंकि सच यही है कि कथेतर साहित्य इन दिनों कहीं ज्यादा संवेदनशीलता के साथ मानवीय संवेदनाओं और सरोकारों को व्यक्त कर रहा है। पिछले तीन दशक मानव इतिहास में, मानव विस्थापन के सबसे भयावह दशक रहे हैं। अरब और मध्यपूर्व से करीब 4000000 लोग यूरोप, अमरीका और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विस्थापित हुए हैं। इन शरणार्थियों का बड़े पैमाने पर असली दर्द कथेतर साहित्य में ही सामने आया है। पिछले साल भी तंजानिया मूल के जिन ब्रिटिश उपन्यासकार अब्दुल रजाक गुरनाह को यह पुरस्कार मिला था, वह भी काल्पनिक कहानियों पर नहीं बल्कि जांजीबार क्रांति के बाद शरणार्थियों के वास्तविक पलायन पर उनके द्वारा किये गए मार्मिक डॉक्यूमेन्टेशन के लिए  था। कहने का मतलब यह कि अगर हम विस्तृत संदर्भों को देखें तो पिछले साल का नोबेल पुरस्कार भी कथेतर साहित्य के लिए ही दिया गया था। उनका परिचय देते हुए भी स्वीडिश अकादमी ने कहा था, ‘उपनिवेशवाद के प्रभावों और संस्कृतियों तथा महाद्वीपों के बीच शरणाथियों के जीवन और उनके भाग्य के लिए अब्दुल रज़ाक गुरनाह की करुणामय पैठ के लिए उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है।’ 
इस तरह से देखें तो साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाले नोबेल पुरस्कार का दायरा दिन पर दिन अपनी पारम्परिक जमीन को तोड़कर विस्तृत हो रहा है। एनी एर्नाक्स इसका जीता जागता सबूत इसलिए हैं, क्योंकि नोबेल पुरस्कार देने वाली स्वीडिश  अकादमी उनका परिचय देते हुए बार बार इस बात को समझने पर जोर देती है, ‘एनी एर्नाक्स का साहित्य ज्यादातर आत्मकथात्मक समाजशास्त्र का हिस्सा है।’ एनी ने अपने साहित्यिक स़फर की शुरुआत साल 1974 से की थी, जब उन्होंने अपना पहला आत्मकथात्मक उपन्यास ‘लेस आर्मोइरेश वाईड्स’ (क्लीन्ड आउट) लिखा। इसमें उन्होंने यह दर्शाया था कि पितृसत्तात्मक समाज कैसे महिला को उसके जायज़ हकों से भी बाहर कर देता है। उनकी जिस किताब को साल 2008 में फ्रांसीसी आलोचकों ने बहुत सराहा और साल 2019 में जिसे अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, वह ‘द ईयर्स’ थी। फ्रांसीसी साहित्य की प्रोफेसर एनी एर्नाक्स वास्तव में अपनी इसी किताब के बाद फ्रांस के बाहर जानी गई थीं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर