इंटरनेट के बिना अधूरी है ज़िन्दगी

प्रति वर्ष 29 अक्तूबर को विश्व इंटरनेट दिवस मनाने की परम्परा सन् 1969 में पड़ी जब दो व्यक्तियों ने पहली बार एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक दो शब्द एल और ओ भेजने में सफलता पाई। यह थे चार्ली क्लाइन जो अपने सहयोगी बिल दुवेल को लॉगिन शब्द भेजना चाहते थे लेकिन केवल दो अक्षर ही भेज पाए और सिस्टम क्रैश हो गया। इसी के साथ दुनिया को एक ऐसी खोज मिल गई जो आज जीवन की एक महत्वपूर्ण गतिविधि या कहें कि आपस में संवाद करने की जबरदस्त ताकत बन गई है। सन् 2005 से इंटरनेट का आकार बढ़ते-बढ़ते पूरी दुनिया पर इस तरह छा गया कि इसने काम करने के तरीके, सोचने की दिशा और अपनी बात पलक झपकते ही दूसरों तक पहुंचाने की क्रिया को एक नया रूप दे दिया।
देखा जाए तो इंटरनेट क्या है, बस डाकखाने का परिवर्तित रूप है। जैसे पहले हम पत्र लिखकर डाक के डिब्बे में डालकर उसके अपने गंतव्य तक पहुंच जाने की व्यवस्था करते थे, वही इंटरनेट करता है। जिस तरह डाकघर में पत्रों को छांट कर अलग-अलग खानों में रखकर और फिर वहां से जहां पहुंचाना है, सुनिश्चित किया जाता था, उसी तरह इंटरनेट से हमारा संदेश एक से दूसरे कम्प्यूटर तक पहुंचता है। अंतर केवल इतना है कि जिस काम में पहले दिन से लेकर सप्ताह तक लग जाते थे, अब वह पलक झपकते ही हो जाता है। आज पोस्ट ऑफिस की जगह सर्च इंजन हैं जो ‘हुक्म मेरे आका’ की तज़र् पर अलादीन के चिराग की तरह तुरंत आपकी मनचाही सूचना हाज़िर कर देते हैं। मिसाल के तौर पर किसी शब्द का अर्थ जानना हो तो डिक्शनरी की ज़रूरत नहीं, बस टाइप कीजिए और जितने भी संभव अर्थ हैं, वे सामने स्क्रीन पर दिखाई दे जायेंगे। उनमें जो आपके मतलब का है, वह उठा लीजिए और अपना काम कीजिए। इंटरनेट का काम है कि आपने जो जानकारी मांगी है, वह सबसे पहले, सबसे तेज़ और अनेक विकल्पों के साथ आप तक पहुंचाए।
इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग
इसके बाद मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक पकड़ा दी और उसके साथ व्हाट्सअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम से लेकर कितने ही ऐसे प्लेटफॉर्म आते गए कि इन्सान उन्हीं में इतना व्यस्त हो गया या कहें कि उलझ गया कि लगा कि कुछ और करने के लिए वक्त निकालना मुश्किल है। एमाज़ोन ने तो जैसे चमत्कार ही कर दिया। कहीं जाने की ज़रूरत नहीं, घर पर ही जो चाहो मिल जाएगा। इंटरनेट केवल संदेश यानि मेल भेजने का साधन ही नहीं रहा, उसने शॉपिंग, बैंकिंग और लेन-देन को इतना सुगम और प्रत्येक की पहुंच में ला दिया कि उसके लिए न पहले से कुछ इंतजाम करना है और न कहीं जाना है, बस कंप्यूटर हो या मोबाइल, उस पर उंगलियां चलानी हैं, जो चाहते हैं, वह हो सकता है। 
दुरुपयोग
जैसे नये-नये अनुसंधानों अथवा खोजों के बहुत से लाभ होते हैं, वैसे ही उसके कई नुकसान भी होते हैं। ऐसा ही इंटरनेट के साथ है। इसका दुरुपयोग करना भी उतना ही आसान है, जितना इसका सदुपयोग।
आज इंटरनेट के ज़रिए साइबर क्राइम हो रहे हैं। लोगों को ठगने की इसमें बहुत आसानी है क्योंकि ठग तक पहुंचना मुश्किल है। इसके साथ ही ब्लैकमेल करने की कला जिसे आती है, उसके लिए यह एक अचूक साधन है। गलत संदेश देकर, बहका फुसलाकर अपने मन मुताबिक शिकार के अज्ञान या जानकारी के अभाव का पूरा फायदा उठाते हुए लूटपाट करना बहुत आसान है। अपराधी को पकड़ना मुश्किल होने से केवल हाथ मलने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है। इंटरनेट व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से इस तरह वंचित करता है कि पता ही नहीं चलता कि कब वह इसका आदी हो गया है। दिन रात कम्प्यूटर, मोबाइल या किसी अन्य उपकरण के ज़रिए वह इसमें इतना लिप्त रह सकता है कि उसे समय का भी अंदाज़ा नहीं रहता। इंटरनेट के ज़रिए लोगों की भावनाओं को भड़काना बहुत आसान है, इससे दंगे कराए जा सकते हैं, आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सकता है और समाज में उथल-पुथल से लेकर युद्ध जैसे हालात पैदा किए जा सकते हैं। मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता व पोर्नोग्राफी के ज़रिए बहुत कुछ ऐसा दिखाया जा सकता है जो सामान्य रूप से निंदा की परिधि में आता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इंटरनेट कामकाजी दुनिया के लिए एक वरदान है, महामारी के समय यही सबसे बड़ा साथी रहा है, घर बैठकर पढ़ाई करने से लेकर अपनी नौकरी या व्यवसाय करने की सुविधा और अपार संभावनाएं इसकी बदौलत प्राप्त हुई हैं।
इसी के साथ कुछ देशों में अब इंटरनेट के बिना न रहने की आदत अर्थात इसकी लत छुड़ाने के लिए अनेक कार्यक्रम या कहें कि इलाज के तरीके अपनाने की पहल होने लगी है।  इंटरनेट आपके अकेलेपन का साथी भी है और बाकी दुनिया से अलग रखने का साधन भी लेकिन यह एक तरह के मानसिक तनाव को भी जन्म दे रहा है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश की आधी आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है। उसकी निर्भरता अब ऑनलाइन रहने तक सिमट गई है। इससे उसके व्यक्तिगत जीवन से लेकर स्वास्थ्य तक पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। यह स्थिति चिंताजनक है। इसका हल भी स्वयं व्यक्ति के पास है, उसी ने ही सोचना है कि उसे इसकी आदत न पड़े।