दिल्ली की समस्या अब पूरे उत्तर भारत की समस्या बन गई है !


आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल गोलपोस्ट शिफ्ट करने में माहिर खिलाड़ी हैं। जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और उनकी पार्टी विपक्ष में थी, तब दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाते वह दिल्ली में वायु गुणवत्ता खराब होने का सारा दोष पंजाब और हरियाणा पर डालते थे। साथ ही वह दावा भी करते थे कि उनके पास पराली जलाने की समस्या का समाधान है। अगर उनकी सरकार आ गई तो वह चुटकियों में इसका समाधान कर देंगे। ध्यान रहे, दिल्ली में पिछले करीब आठ साल से उनकी सरकार है और वह जानते हैं कि नवम्बर-दिसम्बर में दिल्ली के क्या हालात होते हैं और दिल्ली कैसे गैस चैम्बर बनती है, लेकिन उन्होंने दिल्ली में प्रदूषण कम करने का कोई उपाय नहीं किया। 
इस बीच मार्च में पंजाब में उनकी सरकार बन गई। तब उम्मीद थी कि सर्दी आने में सात-आठ महीने का समय है और पंजाब सरकार पराली जलाने की समस्या का हल निकाल लेगी क्योंकि केजरीवाल कई बार विस्तार से बता चुके थे कि उनके पास क्या हल है, लेकिन उलटा हो गया। इस बार पहले से 50 फीसदी ज्यादा पराली जलाई गई है। दिल्ली के लोगों द्वारा दिवाली पर बहुत कम पटाखे चलाए जाने के बावजूद दिल्ली की हवा पहले से ज्यादा प्रदूषित हो गई। जब ऐसा हुआ तो इससे बचाव का उपाय करने की बजाय केजरीवाल बताने लगे कि यह दिल्ली की नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत की समस्या है और केंद्र सरकार इसे सुलझाए।
अद्भुत चुनाव प्रचार
हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौ नवम्बर की अपने रैली में कहा कि हिमाचल में अगर कांग्रेस की सरकार आ गई तो कांग्रेस वाले हिमाचल में विकास के काम रोक देंगे और वे केंद्र सरकार को भी हिमाचल का विकास नहीं करने देंगे। कैसी हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री ऐसा कह रहे हैं। कोई राज्य सरकार कैसे केंद्र को किसी राज्य में या केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार को विकास का कोई काम करने से रोक सकती है? राज्यों के विकास के लिए डबल इंजन की सरकार अनिवार्य होती तो तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश में कभी विकास नहीं हो पाता क्योंकि कई दशकों से इन राज्यो में क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें बनती रही हैं। केरल में भी हर पांच साल पर वामपंथी मोर्चा सत्ता में आता रहा है। खुद नरेंद्र मोदी 13 साल गुजरात में मुख्यमंत्री रहे और इस अवधि में 10 साल केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इसके बावजूद उनका दावा है कि उन्होंने गुजरात में अभूतपूर्व विकास किया है। जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद उन्होंने गुजरात का विकास किया, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह ने बहुत विकास किया तो हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री कैसे विकास का काम नहीं कर पाएगा या वह कैसे केंद्र को काम करने से रोक देगा? असल में यह कहना कि डबल इंजन की सरकार होगी, तभी विकास होगा, एक तरह से जनता को धमकी है और इससे लोकतंत्र और संघवाद की अवधारणा पर सवाल खड़ा होता है।
 भाजपा का उम्मीदवार ‘नोटा’ 
महाराष्ट्र की अंधेरी ईस्ट विधानसभा के उपचुनाव में नामांकन से लेकर नतीजे तक कई बहुत दिलचस्प चीजें हुईं। चुनाव की घोषणा के बाद भाजपा ने इस सीट के लिए शिव सेना के दिवंगत विधायक की पत्नी रुतुजा लटके को अपना उम्मीदवार बनाना चाहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्हें शिव सेना ने उम्मीदवार बनाया तो उनको चुनाव लड़ने से रोकने के लिए बीएमसी की कर्मचारी के तौर पर उनके इस्तीफे को रोक दिया गया। अंत में हाई कोर्ट के आदेश से उनका इस्तीफा मंजूर हुआ और आखिरी दिन उन्होंने नामांकन दाखिल किया। इसके बाद भाजपा के घोषित सहयोगी एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के दबाव में भाजपा ने अपने प्रत्याशी का नामांकन वापस करा दिया। हालांकि छह और उम्मीदवार मैदान में थे लेकिन भाजपा के हटते ही तय हो गया कि रुतुजा लटके भारी अंतर से जीतेंगी। उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने दावा किया कि उन्हें 90 फीसदी से ज्यादा वोट मिलेंगे। इसके बाद ही भाजपा इस दावे को गलत साबित करने मे जुट गई। इसके लिए भाजपा ने नोटा यानि ‘इनमें से कोई नहीं’ को अपना उम्मीदवार बना लिया। खुद उद्धव ठाकरे ने प्रचार के दौरान कहा कि भाजपा पैसे बांट कर लोगों को नोटा पर वोट देने के लिए कह रही है। चुनाव नतीजे से साबित हुआ कि यहां नोटा ही भाजपा का उम्मीदवार था। नोटा को करीब 15 फीसदी यानी करीब 18 हज़ार वोट मिले। बाकी छह उम्मीदवारों को सात फीसदी वोट मिले। शिव सेना उम्मीदवार को 77 फीसदी के करीब वोट मिले। 
ईडी का नया मुखिया कौन होगा?
यह लाख टके का सवाल है कि ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय के मुखिया के तौर पर संजय मिश्रा को फिर सेवा विस्तार मिलेगा या नया ईडी नियुक्त होगा। मिश्रा को मिला एक साल का दूसरा सेवा विस्तार 19 नवम्बर को समाप्त हो रहा है और 18 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में उनके मामले की सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मिश्रा को नवम्बर 2021 में दिए गए सेवा विस्तार को चुनौती दी गई है और उनको फिर से सेवा विस्तार पर रोक लगाने की मांग की गई है। ध्यान रहे, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को साफ  कहा था कि वह मिश्रा को सेवा विस्तार न दे, लेकिन सरकार ने उनको सेवा विस्तार देने के लिए कानून ही बदल दिया। नए कानून के मुताबिक सरकार सीबीआई और ईडी के प्रमुख को रिटायर होने के बाद एक-एक साल के तीन सेवा विस्तार दे सकती है। यह तो सबको पता है कि सेवा विस्तार पर काम करने वाले अधिकारी किस तरह से काम करते हैं। संजय मिश्रा नवम्बर 2018 से ईडी हैं। उनका दो साल का फिक्स्ड कार्यकाल नवम्बर 2020 में पूरा हुआ और उसके बाद उनको एक-एक साल के दो सेवा विस्तार मिले। 
प्रधानमंत्री की गैर-हाज़िरी
नरेंद्र मोदी संभवत: देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो किसी भी ज़रूरी काम से ज्यादा महत्व चुनाव प्रचार को देते हैं। देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के शपथ ग्रहण समारोह में भी वह इसीलिए शामिल नहीं हुए। राष्ट्रपति की ओर से प्रधान न्यायाधीश के शपथ समारोह में शामिल होने का न्योता उनको गया था लेकिन वह शामिल नहीं हुए। 9 नवम्बर की सुबह राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस चंद्रचूड़ को प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई। इस मौके पर उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मौजूद थे। 
आम तौर पर प्रधान न्यायाधीश के शपथ समारोह में प्रधानमंत्री शामिल होते हैं, लेकिन मोदी अपने सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से अलग हैं। उन्होंने कई स्थापित और मान्य परम्पराओं को तोड़ा है। उन्होंने 9 नवम्बर को हिमाचल प्रदेश में दो चुनावी सभाओं को संबोधित किया। शपथ समारोह चूंकि सुबह में होता है इसलिए वह इसमें शामिल होने के बाद भी चुनावी कार्यक्रम के लिए जा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसलिए इसे जान बूझकर किया गया फैसला माना जा रहा है। इस बारे में भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ट्वीट करके सवाल उठाया। उनके ट्वीट से ही चली बहस में किसी ने यह भी कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ हार्वर्ड से पढ़े हैं और प्रधानमंत्री को हार्वर्ड वालों की बजाय हार्डवर्क करने वाले ज्यादा पसंद हैं।