आर्थिक रूप से वंचित लोगों को भी मिले आरक्षण का लाभ 


सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 3-2 के एक विभाजित बहुमत फैसले से 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा है जो सामान्य वर्ग के भीतर से आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण प्रदान करता है। सीपीआई (एम) ने जनवरी 2019 में संसद में इस संवैधानिक संशोधन का समर्थन किया था।
यह संशोधन सामान्य श्रेणी में ईडब्ल्यूएस के लिए अधिकतम 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने के लिए सरकार को सक्षम करने के लिए था, अर्थात् वे वर्ग जो पिछड़े  वर्ग और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की श्रेणियों में नहीं आते परन्तु आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
माकपा ने 1990 में ओबीसी आरक्षण के लिए मंडल आयोग के कार्यान्वयन के समय सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए कुछ मात्रा में आरक्षण के प्रावधान की मांग उठायी थी। जहां माकपा ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का पूर्ण समर्थन किया, वहीं सामान्य वर्ग के गरीब वर्गों के लिए आर्थिक मानदंडों के आधार पर कुछ कोटा की वकालत की थी। 
पार्टी को लगा था कि इस तरह के प्रावधान से आरक्षण विरोधी आंदोलन के साथ तेज हुए ध्रुवीकरण में नरमी आयेगी। वर्गीय दृष्टिकोण रखते हुए, पार्टी ओबीसी कोटे के भीतर एक आर्थिक मानदंड भी चाहती थी, ताकि इन वर्गों के वास्तव में योग्य लोग कोटा का लाभ उठा सकें। इसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में स्वीकार किया।
‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से’ पिछड़ी जातियों, जो सदियों से एक दमनकारी जाति व्यवस्था पर आधारित हैं, के लिए आरक्षण को कायम रखते हुए सीपीआई (एम) सभी जातियों और समुदायों के मेहनतकश लोगों और गरीबों को एकजुट करने के लिए भी चिंतित है। इस तरह मौजूदा शोषक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से लड़ा जा सकता है। सभी जातियों के गरीब वर्गों की एकता बनाने और विभाजनों को दूर करने के लिए ही सीपीआई (एम) ने सामान्य वर्ग के भीतर गरीब वर्गों के लिए कुछ मात्रा में आरक्षण प्रदान करने की वकालत की। जाहिर है, यह ओबीसी, एससी और एसटी के मौजूदा कोटे के प्रतिशत को प्रभावित नहीं कर सकता है। 
ईडब्ल्यूएस कोटा सामान्य वर्ग से अलग किया जाना है। हालांकि पार्टी ने ईडब्ल्यूएस को परिभाषित करने के लिए एक कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से मोदी सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों की आलोचना की थी। नौकरियों और शिक्षा में केंद्र सरकार के कोटे के लिए ईडब्ल्यूएस का मतलब एक परिवार है जिसकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम है, बशर्ते उनके पास पांच एकड़ से अधिक कृषि भूमि या 1,000 वर्ग फुट से अधिक आवासीय भूमि न हो। एक अधिसूचित नगर पालिका में 100 वर्ग गज का क्षेत्र या आवासीय भूखंड से भी अधिक न हो। इसका मतलब है कि जो लोग गरीब नहीं हैं, वे ईडब्ल्यूएस कोटे का लाभ उठा सकते हैं। आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष है। इसके ऊपर आयकर देना होता है। इसी तरह पांच एकड़ कृषि भूमि होने से कोई गरीब नहीं हो जाता।
इस प्रकार ईडब्ल्यूएस आरक्षण का उद्देश्य इसकी सीमा और सीमा को पर्याप्त रूप से ऊंचा और चौड़ा रखने से विफल हो जाता है। इस कार्यालय ज्ञापन को चुनौती देने वाली याचिकाओं के कारण सुप्रीम कोर्ट को अभी इस मुद्दे पर विचार करना बाकी है।
राज्य स्तरीय नौकरियों और शिक्षा के लिए ईडब्ल्यूएस कोटे को लागू करने का काम राज्यों पर छोड़ दिया गया है। केरल में एलडीएफ  सरकार ने ईडब्ल्यूएस के मानदंड और कोटा की सीमा तय करने के लिए एक आयोग का गठन किया। न्यायमूर्ति शशिधरन नायर आयोग ने सिफारिश की कि 4 लाख रुपये से कम की पारिवारिक आय वाले और जिनके पास 2.5 एकड़ से अधिक कृषि भूमि नहीं है, उन्हें ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए पात्र होना चाहिए। केरल कैबिनेट ने 2020 में इन सिफारिशों को मंजूरी दी और अब केरल में नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जा रहा है।
ईडब्ल्यूएस को परिभाषित करने के लिए अपनाये गये मानदंड सामान्य कोटे के भीतर गरीब वर्गों को संबोधित करते हैं। यदि कोटा का लाभ वास्तव में आर्थिक रूप से वंचितों को जाना है तो केंद्र सरकार को तत्काल ईडब्ल्यूएस को परिभाषित करने के मानदंडों में संशोधन करना चाहिए। (संवाद)