आज महिलाओं के ़िखल़ाफ हिंसा के खात्मे के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दिवस पर विशेष   आ़़िखर कब तक....? 

विश्व में, देश में जहां भी कोई ़गलत काम होता है, मार-पीट, चोरी-डाके या किसी भी प्रकार का अत्याचार होता है तो इन सभी प्रकार के भिन्न-भिन्न केसों में एक ही चीज़ समान होती है और वह होती है गुनाह करने वाले की घटिया मानसिकता। ऐसी खोखली मानसिकता उभरने के कई कारण होते हैं, जैसे कि अनपढ़ता, बेरोज़गारी आदि।
हमेशा ही इन्सान अपने गुस्से, अपने बुरे स्वभाव, चिड़चिड़ेपन तथा अपनी नाकामियों का परिणाम कमज़ोर वर्ग पर ज़ोर दिखाने के रूप में निकालता है, जिससे उसे जीत महसूस होती है, क्योंकि कमज़ोर व्यक्ति मुकाबला करने की हालत में नहीं होता। 
यदि समाज की बात करें तो पुरुष प्रधान समाज में कई लोगों की मानसिकता महिलाओं पर अपना ज़ोर चलाने में होती है जिससे उनका अहं संतुष्ट होता है और अपने जमाये रौब एवं प्रधानगी करने पर वे खुशी महसूस करते हैं। यूनाइटेड  नेशन की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक तीन में से एक महिला शारीरिक दुर्व्यवहार या अत्याचार का शिकार होती है, जिनमें अपने पति के हाथों अत्याचार के अधिक केस होते हैं। 
महिलाओं के खिलाफ हिंसा को खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस प्रत्येक वर्ष 25 नवम्बर को महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाले समूहों द्वारा मनाना शुरू किया गया था। सिर्फ और सिर्फ एक म़कसद पूरा करने के लिए  यह दिन निश्चित किया गया कि विश्व में लोगों को महिलाओं द्वारा सहन की जाती पीड़ा के संबंध में जागरूक किया जा सके। 
महिलाओं पर अत्याचार कई प्रकार के रूप धारण करता है। सार्वजनिक स्थानों पर, कार्य करने वाले स्थानों पर होता शारीरिक शोषण, शारीरिक टिप्पणियां आदि ये सभी एक प्रकार से आखिर अत्याचार पर आ कर ही समाप्त होते हैं। घरों में महिलाओं पर होते अत्याचार को जब भी महिला की ओर से सहन करने से रोका जाता है तो कई बार परिणाम मरने-मारने तक पहुंच जाते हैं, महिला की मानसिकता डोल जाती है, बच्चों के मन पर, ज़िन्दगी पर यह अत्याचार बहुत बुरा प्रभाव छोड़ता है। 
जो महिलाएं अपने पांवों पर खड़े होकर कमाती हैं, वे माता-पिता की मदद से इस दलदल से बाहर निकल कर अपना भविष्य सुधार लेती हैं, परन्तु जिन बेचारियों की पृष्ठ- भूमि सम्पन्न नहीं होती, माता-पिता को परेशान न करते हुए वे चुपचाप सब सहती रहती हैं और कई बार कोई गलत कदम उठा लेती हैं। 
यदि चुप करके ज़ुल्म सहने से अत्याचार करने वालों की मानसिकता में परिवर्तन या सुधार आता तो फिर महिला को कभी आवाज़ नहीं उठानी चाहिए थी, परन्तु चुपचाप सहने से कोई हल नहीं होता, अपितु इसके विपरीत अत्याचार करने वाले को और शह मिलती है। इसलिए अवश्य अपनी बात कहें, अपने करीबियों से, अपने हमदर्दों से बात करें। कई बार विचार-विमर्श से, बातचीत से मामलों का समाधान हो जाता है। अत्याचार करने वालों के दिमाग के बंद ताले भी खुल जाते हैं। बहुत-सी संस्थाएं, गैर-सरकारी संगठन यह कार्य करते हैं तथा आधे से ज़्यादा मामले बातचीत (ष्शह्वठ्ठह्यद्गद्यद्यद्बठ्ठद्द) के माध्यम से हल हो जाते हैं। महिलाओं पर अत्याचार करने वालों की काउंसलिंग बहुत ज़रूरी होती है। 
पूरी बात घूम कर एक ही जगह पर आकर खड़ी हो जाती है कि जागरूकता की कमी तथा बेरोज़गारी के कारण कई बार इन्सान गलत कामों जैसे नशा आदि में पड़ जाते हैं और फिर परिणाम यह होता है कि उनकी शख्सियत दूसरों के साथ लड़ाई, अत्याचार करने आदि का रूप धारण कर लेती है, वह भी अधिकतर महिलाओं पर। 
देश में जितने भी पढ़े-लिखे लोग होंगे, विशेषकर पढ़ी-लिखी महिलाएं, वे अपने बच्चों को बचपन से महिलाओं का सम्मान करने, ़गलत रास्ते पर न चलने, ़गलत काम न सहन करने तथा ़गलत न होते देखने आदि की शिक्षा प्रदान करेंगी। पढ़ी-लिखी महिला कभी भी अत्याचार सहन नहीं करेगी। इस अन्याय के खिल़ाफ आवाज़ उठानी है तो घर से ही शुरुआत करनी होगी क्योंकि यदि लड़की घर में ही सुरक्षित नहीं तो विश्व के किसी कोने में वह सुरक्षित नहीं। यदि कोई महिला अन्याय के खिल़ाफ आवाज़ उठाती है, तो हमें यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि उसकी आवाज़ सुनी जाए और उसे पूर्ण सहारा मिले। इस संबंध में प्रत्येक देश में अभी बहुत यत्नों की ज़रूरत है और प्रत्येक समाज को यह विश्वास दिलाने में बहुत मेहनत एवं यत्नों की आवश्यकता है। अत्याचार रहित एवं दबाव मुक्त जीवन जीना प्रत्येक महिला का अधिकार है। आज प्रत्येक महिला अपने लिए तथा दूसरी महिलाओं के लिए यही दुआ एवं कामना करती है तथा करती रहेगी कि एक  न एक दिन समाज की बुरी मानसिकता पर नियंत्रण कर के वह जीत प्राप्त कर लेगी।