अवैध अप्रवासन को नियंत्रित करने में विफल रहा है नागरिकता अधिनियम


राजनीति और राजनीतिक पार्टियां भारत में अवैध आप्रवासियों की बढ़ती संख्या को रहने देने के विवादस्पद मुद्दे पर एक खतरनाक खेल खेलती दिख रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग के अनुसार कुछ महीनों में ही हमारा देश चीन को दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में पछाड़ने के लिए तैयार है। आधिकारिक तौर पर संयुक्त राज्य अमरीका के बाद भारत अवैध आप्रवासियों के लिए दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय गंतव्य है।
अवैध आप्रवासियों पर अमरीकी आंकड़ा अधिक विश्वसनीय है, परन्तु भारत में अवैध आप्रवासियों की वास्तविक संख्या, जो लगभग हर दिन बढ़ती है, अपेक्षाकृत अज्ञात है। अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है कि भारत अवैध आप्रवासियों की जो संख्या बताता है, वह एक गलत अनुमान है। भारत का नागरिकता अधिनियम 1955  देश में अवैध अप्रवासन और नकली नागरिकता को नियंत्रित करने में विफल रहा है। नगरपालिका, राज्य या राष्ट्रीय चुनावों के दौरान राजनीतिक लाभ के लिए अवैध आप्रवासियों को राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड और यहां तक कि पासपोर्ट जैसे दस्तावेज प्रदान करने में मदद करने के लिए राजनीतिक दल और स्थानीय दलाल एक साथ काम कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि वे सभी इस तथ्य की उपेक्षा कर रहे हैं कि अवैध आप्रवासी देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
भारत का नागरिकता अधिनियम 1955 में लागू किया गया था। तब से इस अधिनियम में दो बार संशोधन किया गया। पहला, 2003 में और दूसरा 2019 में।  2003 के संशोधन ने नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) के निर्माण को अनिवार्य कर दिया। 2019 के संशोधन ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम आप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता हेतु एक फास्ट ट्रैक प्रदान किया। वास्तव में, 2003 के संशोधन को अनावश्यक माना जा सकता है क्योंकि 1955 के मूल नागरिकता अधिनियम की घोषणा से पहले भी एनआरसी को बनाये रखा गया था। पहला एनआरसी भारत की पहली जनगणना के रिकॉर्ड के अनुसार 1951 में तैयार किया गया था। हालांकि, अज्ञात कारणों से, बाद की जनगणनाओं के बाद एनआरसी रिकॉर्डिंग नहीं की गयी थी।
नागरिकता अधिनियम के दोनों संशोधन भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा किये गये थे। 2003 में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में संशोधन हुआ था और नवीनतम नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्रित्व काल में। विडम्बना यह है कि भाजपा सरकार कभी भी इनके क्रियान्वयन को लेकर गंभीर नहीं दिखी। वे भाजपा के लिए केवल चुनाव पूर्व के शगूफा ही ज्यादा लग रहे थे। वास्तव में, कोई भी सरकार देश की आबादी और लगातार बढ़ रहे अवैध आप्रवासियों को रोकने के लिए गंभीर नहीं रही है, जो अंतत: राजनीतिक दलालों की मदद से भारत के नागरिक बन जाते हैं। 1951 की जनगणना ने भारत की जनसंख्या को केवल 3610 लाख बताया था। आज, संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम डेटा के वर्ल्डोमीटर विस्तार के आधार पर देश की जनसंख्या 1.412 अरब से अधिक है, जो कुल विश्व जनसंख्या का लगभग 17.7 प्रतिशत है। 2030 में भारत की जनसंख्या बढ़कर 1.515 अरब हो जायेगी। 
इसके विपरीत चीन की जनसंख्या 2022 में 1.426 अरब से घटकर 2030 में 1.416 अरब होने की उम्मीद है। कुल भूमि क्षेत्र के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश चीन लगभग 96 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है जो भारत के 32.87 लाख वर्ग किलोमीटर के भू-भाग का लगभग तीन गुना है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में दसियों लाख अवैध आप्रवासी हैं,  जिनमें अकेले पिछले दशक में कम से कम 14 लाख बांग्लादेशी शामिल हैं, लेकिन इस तरह की संख्या को निश्चित रूप से जानने का कोई तरीका नहीं है। अमरीका, ब्रिटेन, रूस और जर्मनी जैसे देशों में रखे गये आंकड़ों की तर्ज पर भारत में अवैध आप्रवासियों के लिए पैदा हुए बच्चों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
भारत में पड़ोसी बांग्लादेश से आने वाले आप्रवासियों से निपटने के लिए देश की पूर्वी सीमा पर बैरियर बनाये जा रहे हैं। चारों ओर बांग्लादेश-भारत सीमा 4,100 किलोमीटर लम्बी है। 2011 तक केवल 200 किलोमीटर बैरियर पूरे किये गये थे। भारत खुद को बांग्लादेश से पूरी तरह से अलग-थलग करना चाहता है, जिस कारण इसे काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा है। बांग्लादेश से भारत में अवैध आप्रवास को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि अवरोध कम होने से सीमापार करना काफी आसान है।
दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच औपचारिक बातचीत में यह मुद्दा कभी नहीं उठा। ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार अनुमानित 40,000 रोहिंग्या भारत में हैं । उनमें से कम से कम 20,000 संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के साथ पंजीकृत हैं। अनौपचारिक अनुमान संख्या तो 1,00,000 से अधिक है। वे सभी बांग्लादेश के रास्ते देश में दाखिल हुए और बड़ी मुस्लिम आबादी वाले स्थानों पर ठहरे।
हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लोकसभा में खुलासा किया कि कुछ रोहिंग्या आप्रवासी अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं।यदि 1955 का नागरिकता अधिनियम ही देश की वास्तविक जनसांख्यिकी तस्वीर की रक्षा करने में विफल रहा है, तो इसके तीन साल पुराने संशोधित संस्करण, सीएए या एनआरसी से बहुत फर्क पड़ेगा, इसकी उम्मीद नहीं है। (संवाद)