महंतकरमजीत सिंह को हरियाणा सिख गुरुद्वारा कमेटी का प्रधान बनाने का रहस्य क्या है ?

सप्ताह भर पहले तक यह माना जाता था कि संत बलजीत सिंह दादूवाल का हरियाणा सरकार द्वारा सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की बनाई गई एडहॉक कमेटी का पुन: प्रधान बनना लगभग सुनिश्चित है परन्तु अचानक ऐसा क्या हुआ कि भाजपा के विश्वसनीय साथी माने जाते संत बलजीत सिंह दादूवाल को अनदेखा करके ही नहीं, अपितु पूरी तरह किनारे  करके राजनीति में बहुत कम जाने जाते महंत करमजीत सिंह के सिर पर प्रधानगी का ताज सजा दिया गया। हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी अभी एडहॉक कमेटी है और इसके सदस्यों की नियुक्ति हरियाणा सरकार ने ही की है। इसलिए ऐसा कोई भी व्यक्ति इस बार प्रधान बन ही नहीं सकता था, जिसे सरकार न चाहे। बाद में जब इस कमेटी का चुनाव होगा उसके बाद स्थिति क्या होगी, वह तो समय ही बताएगा।
पर्दे के पीछे की कहानी बताने वाले जानकार सूत्रों के अनुसार हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी का संत दादूवाल को प्रधान न बनाये जाने का फैसला तो चुनाव से 3-4 दिन पहले ही कर लिया गया था। ऐसा फैसला करने के पीछे बताये जा रहे कारणों में सबसे बड़ा कारण संत दादूवाल का मनमज़र्ी वाला रवैया तथा उनके बयानों तथा स्टैंड के कारण सिखों में बढ़ता आपसी टकराव बताया जा रहा है जो भाजपा को पसंद नहीं था क्योंकि भाजपा नहीं चाहती कि उनके द्वारा बनाये गए प्रधान के कारण सिखों में पैदा हुए आपसी टकराव का आरोप भाजपा पर आये कि भाजपा सिखों को आपस में लड़वाना चाहती है तथा कमज़ोर करना चाहती है।
हवा में ‘सरगोशियां’ हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तथा उनके सिख तथा पंजाबी मामलों में सलाहकार माने जाते सांसद संजय भाटिया ने दिल्ली में बैठे कुछ सिख नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया। उनका विचार भी संत दादूवाल के पक्ष में नहीं था। जानकारी मिली है कि इसके बाद मुख्यमंत्री खट्टर का यह विचार था कि इस कमेटी का प्रधान किसी महिला को बना दिया जाये। कमेटी में नामज़द महिलाओं की संख्या सिर्फ 2 है तथा खट्टर के सलाहकार अलग-अलग कारणों के दृष्टिगत उन दोनों के नाम पर सहमत नहीं हुए। इस दौरान सुखदेव सिंह ढींडसा के नज़दीकी तथा बीबी जगीर कौर के साथ शिरोमणि कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य बने जत्थेदार भूपिन्दर सिंह असंध का नाम भी विचार में आया बताया गया है। परन्तु भाजपा हाईकमान के नज़दीकी सिख नेताओं की सलाह यह थी कि कमेटी का प्रधान ऐसा कोई भी व्यक्ति न बनाया जाए जो राजनीतिक तौर पर अधिक सक्रिय हो तथा जिसकी बयानबाज़ी सिखों में किसी तरह का टकराव पैदा कर सकती हो।
इस तरह अंतिम निर्णय में महंत करमजीत सिंह ने नाम पर सहमति बनी जो स्वयं भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नज़दीकी बताये जाते हैं। महंत करमजीत सिंह सेवा पंथी अड़नशाह संस्था से संबंधित लगभग तीन दर्जन गुरुद्वारों की सेवा कर रहे हैं तथा वह कुछ सिख स्कूल एवं कालेज भी चलाते हैं। जानकारी मिली है कि जब मुख्यमंत्री द्वारा महंत करमजीत सिंह के साथ सम्पर्क किया गया और उन्हें प्रधानगी का पद स्वीकार करने के लिए शीघ्र हां नहीं की तथा सोच-विचार करने के लिए कुछ का समय मांगा। परन्तु मुख्यमंत्री द्वारा ज़ोर देने पर लगभग 2 घंटे अपने साथियों के साथ विमर्श करने के उपरांत उन्होंने सहमति दे दी।
हमारी जानकारी के अनुसार कमेटी के सदस्यों को सरकार की महंत करमजीत सिंह को प्रधान बनाने के उद्देश्य संबंधी जानकारी देने की ज़िम्मेदारी सांसद संजय भाटिया को सौंपी गई। वह ज्यादातर लोगों को इसके लिए मनाने में सफल भी रहे जबकि हाऊस में इस फैसले को मनाने की ज़िम्मेदारी मुख्य सचिव चुने गए गुरविन्दर सिंह धमीजा तथा दो अन्य साथियों की लगाई गई। इस मामले में संत बलजीत सिंह दादूवाल की स्थिति को देखते हुए अदा ज़ाफरी का यह शे’अर याद आ गया :
अचानक दिलरुबा मौसम का
 दिल-आज़ार हो जाना।
हवाओं का किसी की 
राह में दीवार हो जाना।
भाजपा, पंजाब व सिख
इस तरह प्रतीत हो रहा है कि चाहे भाजपा ने पंजाब भाजपा अध्यक्ष अभी कोई सिख नहीं बनाया, परन्तु उन्होंने सिख कतारों में पार्टी के आधार बनाने के लिए हर संभव यत्न करने की रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है। इसके दो साफ संकेत आज भी नज़र आ रहे हैं। पहला हरियाणा की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का अध्यक्ष सम्भावित रूप में संत बलजीत सिंह दादूवाल को इसलिए न बनाना कि उनकी अध्यक्षता में सिख गुटों में टकराव बढ़ेगा, जिससे सिखों में यह प्रभाव जाएगा कि भाजपा सिखों को आपस में लड़ाना चाहती है और दूसरा कल घोषित पंजाब के जिला भाजपा अध्यक्षों की सूची में पहली बार लगभग आधा ज़िलाध्यक्ष सिख बनाए गये हैं। जबकि उनमें से अधिकतर भाजपा में अभी-अभी ही आए हैं। वैसे इसके संकेत अध्यक्ष अश्विनी शर्मा द्वारा जारी की गई संगठन की सूची से भी मिल ही रहे थे। 5 में से 3 महासचिव सिख बनाए गये हैं। कई अन्य पदों के अतिरिक्त पार्टी की ताकतवर समितियों में भी भाजपा ने पहली बार इतने सिख शामिल किये हैं, परन्तु इन सभी नियुक्तियों ने एक बात और भी साबित की है कि इस समय पंजाब भाजपा में अश्विनी शर्मा सबसे ताकतवर नेता हैं और इन सभी नियुक्तियों में या तो पार्टी में बाहर से आये नेताओं को महत्व मिला है या फिर अश्विनी शर्मा के चहेतों को। 
सिर्फ स्वर्गीय कमल शर्मा के समर्थक गुट को छोड़ कर पंजाब भाजपा के सभी गुट दर-किनार कर दिये गये दिखाई दे रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 9 जिलाध्यक्ष स्वर्गीय कमल शर्मा के गुट से संबंधित बताए जाते हैं परन्तु एक बड़े नेता का कहना है कि कमल शर्मा गुट अश्विनी कुमार के समक्ष एक प्रकार से सरेंडर कर चुका है और अब अश्विनी शर्मा के साथ ही चल रहा है। कमल शर्मा गुट के तीक्षण सूद जैसे कई नेताओं को काफी महत्व दिया जा रहा है परन्तु एक प्रश्न अवश्य उठाया जा रहा है फिर कमल शर्मा गुट के सुभाष शर्मा को महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद से हटा कर उपाध्यक्ष क्यों बनाया गया? जानकार सूत्रों का कहना है कि ऐसा करना एक मजबूरी बन गया था क्योंकि अश्विनी शर्मा तथा सुभाष शर्मा दोनों ब्राह्मण भाईचारे से संबंधित हैं जबकि 3 सिख तथा एक महिला महासचिव बनाए जाने के बाद शेष बचते एक पद के लिए किसी शहरी व्यापारिक वर्ग का महासचिव बनाना पार्टी की  मजबूरी थी। अश्विनी शर्मा द्वारा जहां पंजाब भाजपा के पंजाब के भीतरी शेष गुटों को दर-किनार कर दिया गया है, वहीं यह भी आश्चर्य की बात है कि किसान आन्दोलन के दौरान सबसे अधिक स्टैंड लेने वाले हरजीत सिंह ग्रेवाल तथा सुरजीत ज्याणी सहित उनके साथ खड़े होने वाले सभी नेताओं को भी कोई महत्व नहीं दिया गया। 
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