पावरकॉम की बढ़ रही हैं मुश्किलें


पंजाब सरकार की बिजली संबंधी ़गलत नीतियों ने एक ओर जहां पावरकॉम को दीवालिया होने के कगार पर ला खड़ा किया है, वहीं प्रदेश के आम लोगों को एक हाथ से थोड़ा देकर, दूसरे हाथ से उनके सिर पर अतिरिक्त बोझ लादने की तैयारी भी कर ली गई है। पंजाब की आम आदमी पार्टी ने प्रदेश के लोगों को मुफ्त बिजली देने का झांसा देकर सरकार तो बना ली, किन्तु अब  पावरकॉम को निर्विघ्न विद्युत सप्लाई करते रहने के लिए अर्थाभाव के लाले पड़ गये हैं। पावरकॉम को जन-साधारण को 600 यूनिट मुफ्त बिजली सप्लाई प्रदान करने के दृष्टिगत अपने बढ़े हुए खर्च को चलाना निरन्तर कठिन होता जा रहा है। पंजाब का बिजली बोर्ड विगत कई सरकारों के समय से ही घाटे की अर्थ-व्यवस्था में चलता रहा है। इस घाटे की आपूर्ति प्राय: सब्सिडी की राशि से की जाती रही है, परन्तु आज स्थिति यह हो गई है कि मुफ्त बिजली योजना के दृष्टिगत सब्सिडी की राशि निरन्तर बढ़ते हुए 18 हज़ार करोड़ रुपये से भी अधिक हो जाने की प्रबल सम्भावना है। इसके दृष्टिगत पावरकॉम ने अपनी बजटीय व्यवस्था को सुचारू बनाये रखने के लिए बिजली की दरों को बढ़ाने का फैसला किया है। 
इस हेतु पावरकॉम ने विद्युत नियामक आयोग को 43 पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि को लेकर एक प्रस्ताव भी भेजा है। इस प्रस्ताव के अनुसार बढ़ी हुई दरें नये वित्त वर्ष के प्रारम्भ में अर्थात प्रथम अप्रैल से लागू हो जाएंगी। पावरकॉम की यह भी दलील है कि विगत पांच वर्ष से बिजली की दरें बढ़ाई नहीं गईं, अत: अब दरों का बढ़ाया जाना ज़रूरी भी हो गया है, परन्तु यहां प्रश्न यह भी उठता है कि क्या जन-साधारण पर बार-बार बोझ बढ़ाना ही किसी लोकतांत्रिक सरकार का दायित्व होता है? अपने लोगों को अधिकाधिक सुविधाएं प्रदान करना और कि जन-साधारण की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी तो लोकतंत्र निर्वाचित सरकारों के कर्त्तव्यों में शुमार होता है। ऐसे में लोगों को सस्ती अथवा मुफ्त बिजली की सप्लाई करना कोई विशिष्ट कार्य भी नहीं है। 
पंजाब में विधानसभा चुनावों से पूर्व राजनीतिक दलों की ओर से लोक-लुभावन वायदों एवं दावों के अन्तर्गत मुफ्त बिजली की सप्लाई भी एक मुद्दा बना था। इसी के तहत आम आदमी पार्टी ने पंजाब के प्रत्येक पारिवारिक घरेलू मीटर पर दो मास बाद 600 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वायदा किया था। नि:सन्देह इस क्रिया के पालन से पंजाब के 90 प्रतिशत घरेलू खपतकारों का बिजली बिल शून्य पर आना शुरू हो गया है, किन्तु इसका एक विपरीत प्रभाव यह भी पड़ा है कि बिजली के बिलों की अदायगी न होने से पावरकॉम के अपने बजट के नकदी स्रोत भी प्राय: शुष्क होने लगे हैं। दूसरी ओर पावरकॉम की सब्सिडी राशि में निरन्तर इज़ाफा होता जा रहा है। पावरकॉम सूत्रों के अनुसार 300 यूनिट प्रति मास मुफ्त बिजली को लेकर पूर्व अनुमान के अनुसार 6396 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया था, परन्तु अब लगभग एक लाख लोगों द्वारा एक ही घर में अलग-अलग मीटर लगवा लेने से, इस राशि के और बढ़ जाने की बड़ी सम्भावना है। चालू वित्तीय वर्ष में पावरकॉम की कुल सब्सिडी राशि 15845 करोड़ रुपये रखी गई थी, परन्तु अब इस राशि के 18000 करोड़ रुपये से भी अधिक हो जाने की बड़ी सम्भावना है। सरकारी बिलों की वसूली न होने जैसी लापरवाही से भी सब्सिडी की राशि बढ़ी है। 
इस बढ़े हुए खर्च की आपूर्ति करने के लिए ही पावरकॉम ने बिजली की दरों को बढ़ाने का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग के पास भेजा है। नि:सन्देह इस वृद्धि का प्रत्यक्ष अधिभार उद्योग एवं व्यवसायिक क्षेत्रों पर पड़ेगा जिससे महंगाई और मूल्य-वृद्धि की रफ्तार और तेज़ हो सकती है। प्रदेश में वर्तमान में घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की तादाद लगभग साढ़े 11 लाख है। पावरकॉम के मौजूदा खर्च और आमदन के बीच 4149 करोड़ रुपये का अन्तर रह जाने का अनुमान है, और इसी अन्तर को पूरा करने के लिए 43 पैसे प्रति यूनिट विद्युत शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा गया है। सरकार की त्रुटिपूर्ण विद्युत नीतियों का एक बड़ा पक्ष पावरकॉम द्वारा महंगे भाव बिजली खरीदना और कोयले के दाम बढ़ जाना भी है। पावरकॉम ने चालू वित्त वर्ष में 21700 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी है। इसके साथ ही पावरकॉम द्वारा इस अकेले एक वर्ष में ही 2800 करोड़ रुपये का ऋण भी लिया गया है। इससे पावरकॉम के सिर पर घाटे की अर्थ-व्यवस्था वाली गांठ और बड़ी एवं भारी हो सकती है। इसके विपरीत सरकार मुफ्त बिजली के गफ्फों को और से और बढ़ाती जा रही है। इससे प्रदेश के समाज में त्रुटिपूर्ण असमानता के बढ़ जाना की भी बड़ी आशंका है।
 एक ओर तो मुफ्त बिजली वाले उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ती जाती है, वहीं औद्योगिक एवं व्यवसायिक धरातल पर विद्युत-उपभोग का खर्च बढ़ते जाने की प्रबल आशंका है। इससे नि:सन्देह लागत मूल्य और अन्य सम्बद्ध खर्चों में वृद्धि होगी जिसकी आपूर्ति उद्योग और व्यवसायिक जगत अपने उत्पादन की कीमतों में वृद्धि करके करना चाहेगा। तथापि, इसका सीधा प्रभाव जन-साधारण पर महंगाई एवं मूल्य-वृद्धि के ज़रिये पड़ने की बड़ी सम्भावना है। नि:सन्देह पावरकॉम को प्रदेश की भगवंत मान सरकार की ़गलत एवं त्रुटिपूर्ण नीतियों का  खमियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। पावरकॉम और कितनी देर तक इस अतिरिक्त बोझ को वहन करने में सक्षम रह सकता है, अथवा मौजूदा सरकार और कितनी देर ऐसी नीतियों का अनुसरण करती रहेगी, यह अभी देखने वाली बात होगी, किन्तु मौजूदा दौर में पावरकॉम के बहुत जल्दी हांफने लगने की प्रबल सम्भावना है।