भावी खतरे का ट्रेलर मात्र है जोशीमठ त्रासदी 

हिमालय की पर्वतीय श्रृंखलाओं पर मनमानी मानवीय गतिविधियों ने आखिरकार पहाड़ के मिजाज को गर्म कर दिया है उत्तराखंड के जोशीमठ में इन दिनों सामने आई आपदा तो सिर्फ  बड़े खतरे का ट्रेलर मात्र है। खतरा इससे कहीं ज्यादा बड़ी आपदा का है। विकास के नाम पर जिस तरह अंधाधुंध निर्माण कार्य कर पहाड़ की छाती को लगातार छलनी करने का खेल खेला जा रहा है, समूचे उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ों पर लगातार पहाड़ी काट कर सड़कों का निर्माण पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वृक्षों का भारी कटान अंधाधुंध निर्माण और उस पर तमाम भौगोलिक संतुलन को दरकिनार कर पहाड़ों पर बरसाती व ग्लेशियर पिघलने से आने वाले बहाव व निकासी के मार्ग को भी अवरुद्ध कर निर्माण कार्य किए गए हैं। 
जोशीमठ की आपदा तो महज चेतावनी का संकेत या ट्रेलर मात्र है आने वाले समय में यही हालात कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, घंसाली, मुनस्यारी, धारचूला पौड़ी, नैनीताल, भटवारी, मसूरी समेत अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में पैदा होने के आसार हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2015 से 2020 के बीच ही अकेले उत्तराखंड में बादल फटने भारी असामान्य बारिश होने और भूस्खलन के 7750 हादसे घटित हुए लेकिन पहाड़ की छाती को रौंद कर देश दुनिया के पर्यटकों को आमंत्रित करने में मशगूल सरकारों को इस सबकी फिक्र करने की फुर्सत नहीं है। आज जोशीमठ दरक रहा है कोई गारंटी नहीं है कि जम्मू की त्रिकुटा की उस पहाड़ी पर भी ऐसे हालात नहीं बनेंगे, जहां माता वैष्णो देवी का भवन स्थित है और लगातार भारी व मनमाना निर्माण किया जा रहा है। 
जोशीमठ मध्य हिमालय का एक हिस्सा है। वैज्ञानिकों के अनुसार यहां की चट्टानें प्रीकैम्ब्रियन युग से हैं और क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र-4 का है।  जोशीमठ की मूलभूत समस्या यह है कि यह बहुत कमजोर पोली जमीन पर स्थित है। क्योंकि यह ग्लेशियर के मलवे पर बसा हुआ है। जोशीमठ में आई इस आपदा के पीछे कहीं न कहीं यहां मानव जनित कथित विकास जिम्मेदार है। लोगों को इस भूमि पर 3-4 मंजिल वाले घर होटल नहीं बनाने चाहिए थे, लेकिन विकास के नाम पर इंसान ने जमकर मनमानी की। 
जोशीमठ एक चपटी ढलावदार पहाड़ी पर बसा है। यह शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया पौराणिक महत्व वाला ज्योतिर्मठ ही आज का विकसित पहाड़ी शहर जोशीमठ है। यह औली बद्रीनाथ केदारनाथ आदि क्षेत्रों का प्रवेश द्वार है वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार जोशीमठ  लगभग 6000-7000 साल पहले हुए भूस्खलन से निर्मित क्षेत्र पर स्थित है। यहां पूरी पर्वत श्रृंखला जहां भी माउंट हाउस है, वे उचित स्थिति में नहीं हैं।  यह श्रृंखला अपनी मूल स्थिति से फिसल सकती हैं। शुरुआत में जब लोग वहां रह रहे थे, तो वे एक अस्थिर क्षेत्र में रह रहे थे। जोशीमठ को एक बड़े शहर की तरह विकसित नहीं किया जाना चाहिए था, लेकिन समूचे पहाड़ पर इंसान ने मनमानी कर पहाड़ के अस्तित्व के साथ गड़बड़ी को विकास के नाम पर किया है। 
इंडियन नेशनल साइंस अकादमी के वैज्ञानिक मानते हैं कि इस क्षेत्र में धार्मिक यात्रा पर्यटन उद्योग में तब्दील की जा चुकी है। यह भी बड़ी समस्या है क्योंकि सरकार इस तरह के पर्यटन उद्योग के बूते पर राज्य के लोगों के रोज़गार आर्थिक विकास का समर्थन करती है इसलिए सरकार धार्मिक व पर्यटन स्थलों जैसे बद्रीनाथ और केदारनाथ औली आदि का सुलभ आवागमन बनाने की कोशिश करती रही है। पहले कम संख्या में तीर्थयात्री बद्रीनाथ और केदारनाथ जाते थे, लेकिन उन्हें पैदल यात्रा करनी होती थी। अब मौजूदा दौर में तीर्थयात्रा में पर्यटन भी जुड़ गया लोगों की ख्वाहिश है कि उनकी यात्रा सुविधा पूर्ण हो इन सभी जगहों तक पहुंचना आसान हो ताकि वे वहां कार और बस से जा सकें। सरकार भी इसके बंदोबस्त में जुटी हैं। यह एक गलत कदम है। हिमालय का यह इलाका नाजुक, मुलायम और संरचनात्मक रूप से कमजोर है। ऐसे में हिमालय और अलग-अलग जगहों तक चार लेन वाली सड़कें बनाना पावर प्रोजेक्ट लगाना पहाड़ की तलहटी में टनल बनाना एक के बाद एक ऐसे खतरनाक कदम है, जिसमें पहाड़ के अस्तित्व को चुनौती दे कर खिलवाड़ की गयी है। 
बता दें कि जोशीमठ जिस अलकनंदा और धौली गंगा के संगम के बाएं पहाड़ी ढलान पर स्थित है, उसको विष्णु प्रयाग कहते हैं। बद्रीनाथ के ऊपर से आ रही अलकनंदा विष्णुप्रयाग में हल्के के दाएं कट जाती है। धौली गंगा यहां पर उससे समकोण पर मिलती है। धौली गंगा की तरफ जाने पर करीब 15 किलोमीटर ऊपर एन.टी.पी.सी. की तपोवन विष्णुगाड हाइड्रो प्रोजेक्ट है। फरवरी 2021 में ग्लेशियर फटने से आई बाढ़ में यह पूरा प्रोजेक्ट तहस नहस हो गया था। इस प्रोजेक्ट साइट के पास एक सुरंग बनाई जा रही है, जिसे अलकनंदा से जोड़ने का काम चल रहा है। बांध के पानी को वैकल्पिक रास्ता देने के लिए इस तरह की सुरंगे बनाई जाती हैं। यही अधबनी सुरंग को स्थानीय लोग इस मौजूदा त्रासदी के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। 
जोशीमठ का सिंधार क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। इस क्षेत्र में पूरी जमीन फट चुकी है। सड़कों पर दरारें आई हैं, जैसे कोई भूकंप आया हो। सिंधार के इस पूरे इलाके में जगह-जगह पड़ी दरारें बेहद खतरनाक हालात की सूचना दे रही हैं। जोशीमठ में हर दिन ये दरारें या तो चौड़ी हो जाती हैं या एक नई दरार किसी न किसी मकान में पैदा हो जाती है। 
जोशीमठ को आपदा संभावित क्षेत्र घोषित किया गया है। इस नगर में तथा आसपास के इलाकों में निर्माण गतिविधियां प्रतिबंधित कर दी गई है। चमोली के ज़िला अधिकारी हिमांशु खुराना के हवाले से मिल रही जानकारी के अनुसार केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के एक दल समेत दो केंद्रीय दल जल्दी ही जोशीमठ आएंगे। चमोली ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार जोशीमठ नगर में अब तक छह सौ तीन इमारतों में दरारें आ गई हैं। अधिकारियों के अनुसर 68 परिवार अस्थाई रूप से विस्थापित हो गए हैं। प्रशासन ने अत्याधिक भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों से निवासियों को बाहर ले जाने के आदेश दिए हैं। जोशीमठ नगर क्षेत्र में 229 कमरों की रहने योग्य स्थल के रूप में पहचान की गई है। इन कमरों में लगभग 1271 लोग रह सकते हैं। जमीन धंसने से प्रभावित स्थानों की पहचान का काम जारी है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा रहा है। उतराखंड के जोशीमठ में रह रहे लोगों के दिलों में डर बढ़ता जा रहा है, क्योंकि धीरे-धीरे सारी जमीन अंदर धंसती जा रही है। इस बीच एक बड़ी बात सामने आ रही है कि राज्य सरकार 600 घरों को खाली कराकर करीब 4000 लोगों को सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया जाएगा। सैटेलाइट के माध्यम से इन दरारों पर ध्यान दिया जा रहा है। 
ज़िला प्रशासन ने जमीन के अंदर धंसते शहर के असुरक्षित मकानों पर रेड क्रॉस के निशान लगा दिए है, जो रहने के लिए बेहद असुरक्षित हैं। राज्य सरकार ने इन लोगों को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर दिया है, ऐसी सूचना भी आ रही हैं कि सरकार द्वारा अगले छह महीनों तक हर परिवार को 4000 रुपए हर महीने किराया देने का फैसला किया गया है। जो भी हो जोशीमठ पहाड़ के साथ किए जा रही खिलवाड़ से पैदा होने वाले खतरे का एक चेतावनी देने वाली खतरे की घंटी या ट्रेलर है यदि कथित विकास की अंधी दौड़ में पहाड़ पर इसी तरह का सिलसिला जारी रहा तो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा पहाड़ आपदाओं का जनक भी बन सकता है हालांकि काफी बदइकलाखी पहाड़ के साथ की जा चुकी है। अभी भी समय है कि सरकारों को अपनी विकास की मनगढ़ंत योजनाओं का सिंहावलोकन कर पहाड़ के मिजाज को ध्यान में रखते हुए विकास की गतिविधियों का संचालन करना चाहिए न कि आंख बंद कर अंधाधुंध निर्माण नहीं करने चाहिए पहले से ही पेड़ों व वनस्पतियों से रीते हो रहे पहाड़ हर साल वन अग्नि को झेल कर लगातार क्षरण हो रहे हैं और अपने अस्तित्व व स्वरूप को बचाने के लिए मानव से गुहार लगा रहे हैं। क्या लोभ में पागल हुआ इंसान और सरकारें पहाड़ की इस आर्त वेदना को समझने का प्रयास करेंगे?
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