बूढ़ों के देश में नौजवानों की आवाज़

 

अपने देश में सबसे अधिक नौजवान रहते हैं। देश बूढ़ों का देश नहीं, नौजवानों का देश है, क्योंकि यहां आबादी की औसत उम्र अठाईस बरस है जबकि आस-पड़ोस के देशों में इससे दुगनी है। आबादी भी अपने देश में डुलकी चाल से बढ़ती है इतनी तेज़ी से कि अगर अगली जनगणना में इसकी आबादी एक सौ बयालिस करोड़ हो जाती है, तो हम चीन को पछाड़ देंगे। यह है दुनिया की सबसे अधिक नौजवान आबादी वाला देश। कैसे नौजवान है यहां? जो अपने देश की धरती छोड़कर बाहर पलायन कर जाने के लिए इतने व्याकुल हैं कि आज उनका सबसे बड़ा सपना यही बन गया है कि कैसे इस देश को जल्दी से जल्दी छोड़कर विदेशों में जाकर ठिकाना बना लें।
आज उनके लिए इस देश का सबसे लोकप्रिय धंधा यह बन गया है कि कैसे उन्हें सही या गलत तरीके से विदेश पहुंचा दिया जाये। कहने को तो उन्हें शिक्षित करने के लिए नयी शिक्षा नीति बन गयी है। शिक्षा संस्थानों के लिए नये परिसर बन गये हैं। शिक्षा ऑन लाइन भी दी जाने लगी है और ऑफ लाइन भी। उसे रोज़गार परक बनाया जा रहा है, लेकिन नया रोज़गार होगा तो उसे रोज़गार परक बनाओगे। मंदी के मारे हुए इस देश में यहां तो एक दिलासा ही दिया जाता है कि बंधु यहां इतनी मंदी नहीं, जितनी दूसरे देशों में है। इतनी महंगाई नहीं जितनी दूसरे देशों में है। इतनी बेकारी नहीं जितनी बड़े-बड़े धन सेठ देशों में है। यूं आर्थिक भविष्य वक्ता हमारी पीठ थपथपाते हैं कि प्यारे दुनिया भर में इस बरस बहुत बड़ी मंदी आयेगी। अपना देश बच निकलेगा। यहां उतकी मंदी नहीं होगी जितनी दूसरे देशों में। भूख से न मरने देने की गारंटी के कारण यहां उतने लोग भूख से नहीं मरेंगे, जितने दूसरे देशों में। अब यह धीरज धरने का अजब तरीका है कि मरोगे तो सही, लेकिन उतने नहीं, जितने अन्य आस पड़ोस के देशों में मर रहे हैं। 
अपना देश डिज़िटल हो रहा है प्यारे। इन्टरनैट की तरक्की की ताकत बड़े-बड़े देशों से कहीं कम नहीं है, लेकिन यह कैसी तरक्की है बन्धु कि तरक्की कम और नौकरी लगे नौजवान भी उखड़ कर बेकार हो रहे हैं। देश इस डिज़िटल अर्थव्यवस्था में ‘जी फाईव’ की ताकत रिकार्ड समय में प्राप्त कर गया, लेकिन ज्यों-ज्यों इसकी तरक्की बढ़ रही है, त्यों-त्यों इसका ठगी का व्यवसाय भी फल फूल रहा है। सुना है अब तो अलग-अलग शहरों में ठगों ने बड़े-बड़े दफ्तर भी खोल लिये। जहां मीठी आवाज़ वाले कर्मचारी आपको किसी न किसी बहाने आपका ओ.टी.पी. नम्बर मांग लेते हैं और पलक झपकते ही आपके बैंक खातों में जमा रुपये का सफाया हो जाता है। जब अच्छे भले पढ़े लिखे लोग अपने बैंक जमा का चूना लगवा कर किसी को बताना भी नहीं चाहते। ये अच्छे भले बुद्धिमान लगते थे, ठगों ने ऐसे मायाजाल रचकर उन्हें मूर्ख बना दिया कि अब किसी को बता भी नहीं सकते कि हम यूं मुर्ख बन गये।
लेकिन ठगी को एक बाकायदा नया व्यवसाय बनाने की ज़रूरत ही क्या है। यहां तो हर क्षेत्र में नौसरबाज़ों का नज़ारा पहले से पेश आता है। अभी अभी एक नया सर्वेक्षण हमारे सामने आया है कि इस देश के अधिकांश नौजवान क्या बनने का सपना देखते हैं? किसी समय कहा जाता था कि इस देश के नौजवान या डाक्टर बनना चाहते हैं, या इंजीनियर। लेकिन डाक्टर बनना इतना महंगा हो गया  कि लोग सोचते हैं कि अगर अपना सबकुछ बेच कर अपने बच्चों को डाक्टर ही बनाना है, वह भी बेकार डाक्टर, जिसे निजी अस्पताल तक किसी किरानी से अधिक वेतन नहीं देते, तो क्यों न अपना सब कुछ बेचबाच कर इन्हें किसी विदेशी दलाल के हवाले कर दें, जो उन्हें किसी डालर या पाऊंड देश में पहुंचाकर उनके सिर पर विदेशी धन का सुदर्शन का पर लगा दे। 
आजकल इंजीनियरिंग कालेज खाली पड़े हैं। इतनी कठिन पढ़ाई के बाद डिग्री हासिल होती है, तो कहीं उचित नौकरी नहीं मिलती। ऊपर से नीचे तक के भ्रष्टाचार ने देश में अधूरे कामों का मेला सज़ा दिया है और सफलता के उन मिथ्या आंकड़ों का बोलबाला है जो तलाश करके भी अपनी ज़िंदगी की धरती पर दिखायी नहीं देते। ऐसी घटनाओं के बीच भी कुछ लोग आपको यही याद दिला रहे हैं कि झण्डा ऊंचा रहे हमारा। हमें यह भी बताया जाता है कि जिस देश ने हम पर डेढ़ सौ साल शासन किया, आज उसी देश का शासन एक भारतीय मूल का व्यक्ति कर रहा है। तुम हमें पिछड़ा हुआ कहते हो, लेकिन इस देश ने इतनी तरक्की कर ली कि हम अपनी तरक्की के साथ उस शासक देश को ही पीछे छोड़ गये। आज हमारी आवाज़ इतनी सशक्त हो गयी कि बड़े-बड़े देश अपने झगड़े हमसे निपटवाने के लिए आते हैं। लेकिन रियायती अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए सुरसा की आंत की तरह निरंतर लम्बी होती कतार में युगों से जुड़े एक आदमी ने हम से पूछा ‘जनाब बाहर बीवी पांच हज़ारी क्यों, और घर में यही बीवी अल्लाह की मारी क्यों है?’ अब इस सवाल का जवाब हमारे पास तो नहीं, शायद उन लोगों के पास हो जिन्होंने इस देश को भ्रष्टाचार के सूचकांक में शिखर पर पहुंचा दिया है।