युवा जनसंख्या वाला देश, बेरोज़गारी की मार

 

नि:सन्देह आज का भारत युवा जनसंख्या वाला देश है। जब हम ऐसा कहते हैं तो एक बार अपनी युवा शक्ति पर गर्व ही तो करते हैं। उनमें उत्साह है। नया कर गुज़रने की तमन्ना है। हिम्मत है वह सब है जो भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है। परिवर्तन के प्रति जागरूक करता है।
यह दौर अवसरों की उपलब्धता का और माना जा सकता है। इस बात का इससे क्या संबंध है कि भारत बहुत बड़ी जनसंख्या वाला देश है या फिर उसे जी-20 की अध्यक्षता मिल गई है, लेकिन इस सब के साथ आर्थिक और राजनीतिक फैक्टर तो काम कर रहे हैं। सरकार की महत्वकांक्षा इससे जुड़ी है। सरकार इसका प्रचार भी करती जा रही है। हालात भी कुछ बदले हैं। विश्व भर की कम्पनियां जो मैन्यूफेक्चरिंग से जुड़ी हैं। चीन का विकल्प खोज़ रही हैं। ‘चाइना प्लस वन’ का फायदा भारता तथा वियतनाम को मिलने लगा है। ग्लोबल मैन्यूफेक्चरिंग कम्पनियों की तलाश है वैकल्पिक रूप की। क्या यही वज़ह काफी नहीं कि एप्पल के तीन ताईवानी सप्लायरों को भारत सरकार के उन इंसेंटिव से लाभ मिला है, जिनके तहत देश में स्मार्टफोन की मैन्यूफेक्चरिंग को प्राथमिकता मिली है। ग्लोबल हालात का जायजा लें तो बड़े मुल्क अमरीका, चीन और यूरोप के अधिकांश मुल्क धीमी विकास रफ्तार से जूझ रहे हैं, तब अपने भारत की तरफ उम्मीद की निगाहों से देखना बनता है। यह उम्मीद इस तरह से है कि भारत एक ऐसी ताकत के रूप में उभरने वाला है। अब यह उन तीन देशों में शामिल हो चुका है जो वार्षिक आऊटपुट ग्रोथ में चार सौ अरब डालर से अधिक की राशि बना सकता है। मौजूदा दशक सामने है भारत दुनिया की 20 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि प्राप्त कर सकता है। इसकी वज़ह बुनियादी ढांचे में जो प्रगति हासिल हुई है, वही है। व्यवस्था के प्रगतिशील होने से राष्ट्रीय राजमार्गों के नैटवर्क में पचास प्रतिशत से अधिक की बढ़ौतरी आंकी गयी है। साथ ही घरेलू ट्रैफिक दुगना हो गया है। कार्य व्यवहार में डिजीटल पर बल देने से राजस्व का लीकेज़ काफी कम हुआ है। जिसकी पहले उम्मीद कम ही थी। 
जी.एस.टी. की बात करें तो शुरूआती दौर में काफी परेशानी महसूस की गयी परन्तु अब हम स्थिरता की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं। प्रगति के इस राह में चुनौतियां और मुश्किलें कम नहीं हैं। सरकार का मेक इन इंडिया मनचाहे परिणाम नहीं दे पाया। इसमें लक्ष्य था जी.डी.पी. का पच्चीस प्रतिशत मैन्यूफेक्चरिंग से ही मिल जाये, परन्तु 2021 तक के आंकड़े दिखा रहे हैं कि हम चौदह प्रतिशत को ही छू पाये हैं। आई.आई.एम. अहमदाबाद और जाब रिसर्च कम्पनी मान्सरर इंडिया की 2017 की रिसर्च की उपेक्षा नहीं की जा सकती जो बताती है कि भारत में मैन्यूफेक्चरिंग फार्म सीमेंट, रबर, इलेक्ट्रिकल मशीनरी जैसे कामों से जुड़ी नौकरियां वेतन की नज़र से ज्यादा ठीक नहीं हैं। अलबता काफी कम वेतन दे पर रही है। जाहिर सी बात है कि युवा वर्ग को इससे निराशा ही होगी।
इतने बड़े विकास, जिसके दावे सरकारें आम तौर पर कर रही हैं। युवा वर्ग के लिए इतनी नौकरियां नहीं पैदा कर रहा, जितनी ज़रूरत है। अनपढ़ वर्ग से देश से पड़े लिखे वर्ग के लिए बेरोज़गारी कहीं ज्यादा मुसीबत का कारण बनी रही है। अनपढ़ व्यक्ति कुछ भी कहीं भी कर सकता है, परन्तु पढ़े-लिखे युवक के लिए यह इतना आसान नहीं होगा। कनेडा जाने को उत्सुक युवकों की संख्या आज बढ़ती चली जा रही है। क्योंकि उनको लगता है कि हमारे यहां जॉब के अवसर काफी कम हैं वे घर गिरवी रखकर जमीन का टुकड़ा बेचकर  यहां से जाने को तैयार रहता है। एजेंटों द्वारा धोखा भी खा रहा है परन्तु विडम्बना यह है कि उसका मन उगट हो चुका है।
इस समय देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि रोज़गार कैसे उपलब्ध करवाया जाये युवा वर्ग लगातार निराश परेशान हो रहा है। यहां तक कि एक बड़े वर्ग ने नौकरी की तलाश ही बंद कर दी है। लड़कियों के हालात ज्यादा बुरे हैं। उनके लिए अपने शहर से बाहर निकलना भी कठिन हो रहा है। भारत की लेबर सहभागिता की दर भी चिंता जनक है। आंकड़ों के मुताबिक 2030 तक कृषि क्षेत्र के अलावा करोड़ नई नौकरियों की ज़रूरत होगी। जब काम नहीं होगा तो युवा पीढ़ी क्या करेगी? बड़ा सवाल है।