सात लाख तक की आयकर छूट का सच!

 

बजट में 7 लाख तक की छूट की घोषणा के वक्त सबके चेहरे पर मुस्कान थी यहां तक कि वित्त मंत्री के चेहरे पर भी। इन लोगों की मुस्कान को देखकर आम  शहरी करदाता भी खुश था जो बेसब्री से पर्सनल इनकम टैक्स के हिस्से का इन्तजार कर रहा था। जैसे ही वित्त मंत्री ने 7 लाख तक जीरो टैक्स की घोषणा की, सबने झूम कर स्वागत किया। यहां तक कि शेयर बाजार ने भी किया लेकिन जब धीरे धीरे फाइन प्रिंट आने लगे तो बाजार भी उतरता गया, साथ में उच्च मध्य वर्ग का मुंह भी उतरता गया। बजट में वैसे तो कोई कमी नहीं थी लेकिन लोगों को समझने में थोड़ा वक्त लगा। बजट वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी अच्छा है और भारत के क्षमता निर्माण को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
लोगों को यह समझने में थोड़ा भ्रम हुआ कि यह 7 लाख आयकर मैक्सिमम छूट की लिमिट है जबकि ऐसा नहीं है। मैक्सिमम छूट की लिमिट तो 3 लाख ही है जो नई टैक्स रेजीम का पहला रेंज है। यह जो 7 लाख की छूट है, वह धारा 87 के माध्यम से विशेष छूट दी गई है। पिछली बार के 5 लाख तक के आय पर जीरो टैक्स की छूट भी आटोमेटिक नहीं थी। धारा 87ए के तहत था। यह छूट अपने आप नहीं है, मतलब बाई डिफाल्ट नहीं है। इसे रिटर्न में आपको क्लेम करना पड़ेगा। अगर आपसे क्लेम करना छूट गया, तब आपको 7 लाख तक पर भी टैक्स देना पड़ सकता है।  मोटा मोटी यह समझ लीजिये कि आप की आय 7 लाख के अंदर है तो ही आप धारा 87 ए का इस्तेमाल कर सकते हैं जो टैक्स की 25000 राशि तक की छूट प्रदान करता है। मतलब यदि आपकी आय 7 लाख है तो पहले आप अपना इस नये टैक्स रेजीम में टैक्स निकालेंगे जो 25000 आएगा, फिर धारा 87ए के तहत छूट क्लेम करेंगे तो आपको टैक्स जीरो आएगा और यदि आपकी आय 8 लाख है तो इस धारा का इस्तेमाल आप नहीं कर सकते। ऐसे में जो टैक्स आपका बनेगा, उस पर आपको छूट नहीं मिलेगी और 3 लाख से ऊपर वाली आय पर आपको टैक्स लग जायेगा। वेतन वालों के लिए यह लिमिट 7 लाख की जगह 7.5 लाख समझिये क्योंकि पहले जो पचास हजार की स्टैंडर्ड डिडक्शन नए रेजीम में नहीं मिलती थी, वह इस नए टैक्स रेजीम में दे दी गई है।
सरकार दरअसल इस नये रेजीम को आकर्षक बना करदाताओं को इधर शिफ्ट करना चाहती है, इसीलिए सरकार ने इसे बाई डिफाल्ट विकल्प बना दिया है। यदि आपको पुराना रेजीम चाहिये तो उसे इस बार आपको विकल्प के रूप में चुनना पड़ेगा अन्यथा नया रेजीम वाला ही गणना आपका टैक्स साफ्टवेयर करेगा।
अब आप सोचेंगे कि इन दोनों में बेहतर कौन है। इसका उत्तर यह है कि यह निर्भर करता है कि आपकी कुल सैलरी या आय कितनी है और उसके बाद आपका निवेश कितना है। यदि आपका निवेश ज्यादा है, आपकी एचआरए की छूट ज्यादा है और होम लोन की छूट ज्यादा है तो ज्यादा सम्भावना है कि आपके लिए पुराना रेजीम ही बेहतर हो। क्योंकि जैसे ही आप नए रेजीम में आते हैं तो बहुत सारे छूट से आप हाथ धो बैठते हैं और यदि यह ज्यादा है तो नया रेजीम घाटे का सौदा हो सकता है। इसका कारण है कि नए रेजिम में सीधे सीधे कुल आय को ही कुल कर योग्य आय मान लिया जाता है जबकि पुराने रेजीम में कर योग्य आय कुल आय में से छूट घटाने के बाद आती है। उदाहरण के तौर पर दो व्यक्ति हैं। एक दोनों का वेतन 15.50  लाख है, दोनों की छूटें 5 लाख तक हैं जिसमें धारा 80 सी, 80ई, होम लोन ब्याज और अन्य छूट हैं। ऐसे में इस 15.5० लाख की आय पर पुराने रेजीम वाले को 112500 टैक्स देना पड़ेगा जबकि नए रेजीम वाले को 1.50 लाख देना पड़ेगा। दरअसल नई कर व्यवस्था लगभग छोटी बड़ी मिलकर 70 प्रकार की कटौती और छूट को नहीं देता है जिसमें मोटा मोटी धारा 80 के बहुतायत छूट, होम लोन का ब्याज, एचआरए, एलटीए आदि है।        
ऐसा नहीं है कि सिर्फ लोअर मिडिल क्लास के लिए ही इस बजट में है। मिडल-मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास को छोड़ सुपर रिच के लिए भी इस बजट में छूट है। अब नई कर व्यवस्था के तहत 37 प्रतिशत का जो उच्चतम सेस था, उसे घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है। इस कदम से 5 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वाले करदाताओं पर असर पड़ेगा और उनकी कुल कर दर 42.74 प्रतिशत से घटकर 39 प्रतिशत हो जाएगी, यह उनके लिए बड़ी राहत है।  
एक वेतनभोगी करदाता को यह ध्यान रखना पड़ेगा कि यह चूंकि बाई डिफाल्ट दे दिया गया है, वित्त वर्ष 2023-24 से तो साल के शुरुआत में ही उसे अपने नियोक्ता को बताना पड़ेगा कि वह कौन सा रेजीम चुन रहा है, खासकर जब वह पुराने रेजीम के साथ रहना चाहता है हालांकि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय वे अपनी पसंद बदल सकते हैं। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो कंपनी बाई डिफाल्ट रेजीम होने के कारण नए रेजीम के हिसाब से ही टीडीएस काटेगी। एक वेतनभोगी करदाता एक वर्ष में नई कर व्यवस्था चुन सकता है और दूसरे वर्ष में नियमित कर व्यवस्था चुन सकता है।
एक गैर-वेतनभोगी करदाता को टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय रेजीम को चुनना होता है । उन्हें वेतन वालों की तरह वर्ष के दौरान अपनी पसंद की घोषणा करने या किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि खुद के मालिक वह खुद हैं। वह हर साल नई कर व्यवस्था में आप्ट-इन और आप्ट-आउट भी नहीं कर सकते हैं। एक बार जब कोई गैर-वेतनभोगी नई कर व्यवस्था नहीं चुनता है तो वे भविष्य में नई कर व्यवस्था को फिर से नहीं चुन सकते। (अदिति)