स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर शोशेबाज़ी


पंजाब में मूलभूत ढांचे से संबंधित कुछ ऐसे अहम मुद्दे हैं जो बेहद गम्भीर सोच तथा क्रियान्वयन की मांग करते हैं। इनमें से एक मुद्दा प्रदेश के लोगों के स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है। पंजाब की तत्कालीन सरकारों ने भी अपने समय में इस ओर ध्यान दिया था। पिछले दशकों में शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उनके द्वारा अस्पताल, डिस्पैंसरियां तथा स्वास्थ्य केन्द्रों का निर्माण करवाया गया था। उनमें आम लोगों के लिए सस्ते उपचार के प्रबंध किए गए थे। ज़रूरी दवाइयां भी आम लोगों को देने के प्रयास किए गए थे। समय-समय पर इन सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए भी काम आरम्भ किए गए थे।
आज  पंजाब में 2488 उप-स्वास्थ्य केन्द्र, 389 प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा 162 अर्बन प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र हैं जिनका समय-समय पर नवीनीकरण भी किया जाता रहा है। इन्हें लगातार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (नैशनल हैल्थ मिशन) के अधीन तथा केन्द्र सरकार की अन्य स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बद्ध योजनाओं के तहत लगातार फंड उपलब्ध करवाए जाते रहे हैं। बड़े शहरों, तहसीलों तथा सब-तहसीलों में भी समय-समय पर अच्छे अस्पतालों का निर्माण करवाया जाता रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों की पहुंच में करने के लिए बहुत-सी समाज सेवी संस्थाओं ने भी अपना-अपना योगदान डाला था। इसके अलावा आस्था तथा धार्मिक केन्द्रों में भी ज़रूरतमंदों को अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वास्थ्य सेवाएं देने के प्रबंध किए गए हैं। इस काम में लगातार प्रवासी भारतीयों ने भी अपना योगदान डाला, जो आज भी व्यापक रूप में जारी है। परन्तु इस सब कुछ के होते बढ़ती जनसंख्या तथा इसके साथ-साथ ज़रूरतमंदों की संख्या बढ़ते जाने से हमेशा यह महसूस होता रहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना शेष है। खास तौर पर सरकारी अस्पतालों में लोगों को सस्ती दवाइयां तथा उपचार के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध करवाने बेहद ज़रूरी हैं। केन्द्र सरकार ने भी समय-समय पर प्रदेशों की इस क्षेत्र में बड़ी सहायता की है। विभिन्न योजनाओं के रूप में आज भी यह सहायता जारी है। इस संबंध में केन्द्र की सबसे अधिक प्रभावशाली योजना आयुष्मान भारत योजना है। प्रदेश में इस समय की बड़ी ज़रूरत प्रत्येक स्तर पर पहले ही बने हुए स्वास्थ्य केन्द्रों को हर पक्ष से अधिक मज़बूत बनाने की है तथा संबंधित प्रशासन द्वारा यह सुनिश्चित बनाया जाना चाहिए कि स्वास्थ्य सेवाओं का अधिक से अधिक लाभ जहां आम आदमी को पहुंचे, वहीं प्रत्येक स्रोत से मिलते फंडों का उचित उपयोग भी होता रहे। इस क्षेत्र में सेवा भावना का क्रियान्वयन अधिक सामने आना चाहिए। किसी तरह की शोशेबाज़ी तथा नारेबाज़ी इन क्रियान्वयनों को खोखला करने की ओर उठाया गया कदम ही साबित होगी। इसी सन्दर्भ में ही हम पंजाब सरकार द्वारा घोषित किए गए आम आदमी क्लीनिकों की बात करना चाहते हैं। 
चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी द्वारा मोहल्ला क्लीनिक खोलने की घोषणा की गई थी तथा इनका दायरा कस्बों तथा गांवों तक ले जाने की योजना का भी प्रचार किया गया था।  सरकार बनने के बाद बड़े-छोटे शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में हज़ारों ही नये मोहल्ला क्लीनिक स्थापित करने की घोषणा भी की गई थी। परन्तु अभी तक इनकी संख्या 500 तक ही पहुंच सकी है। लोगों को उम्मीद थी कि सरकार इस योजना के लिए किसी न किसी तरह योग्य फंड जुटा कर इनकी स्थापना के लिए आगे बढ़ेगी परन्तु अब जिस तरह का रूप इन आम आदमी क्लीनिकों का सामने आया है तथा जिनके संबंध में प्रचार के लिए सैकड़ों, करोड़ों रुपये के भिन्न-भिन्न माध्यमों को विज्ञापन देकर पंजाब पर ऋण के बोझ को और बढ़ाया गया, क्रियात्मक रूप में एक शोशेबाज़ी से अधिक कुछ नहीं। पुराने स्वास्थ्य केन्द्रों की बहुत-सी सरकारी इमारतों पर रंग-रोगन करके उनके माथे पर मुख्यमंत्री साहिब की फोटो लगा कर प्रदेश के स्वास्थ्य क्षेत्र में यह कद्दू में तीर मारने वाला काम किया गया है। पुराने कर्मचारियों का फेरबदल करके तथा पहले के बहुत-से स्थानों पर स्थापित स्वास्थ्य केन्द्रों को बंद करके या उनके कर्मचारी आम आदमी मोहल्ला क्लीनिकों में बदल कर सरकार ने 500 आम आदमी क्लीनिक खोल कर एक ऐसा भ्रम पैदा करने का प्रयास किया है, जिससे बहुसंख्यक लोग तथा संबंधित अधिकतर कर्मचारी बेहद नाखुश तथा असंतुष्ट नज़र आते हैं। इस योजना का पर्दाफाश उस समय हो गया जब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘आयुष्मान भारत-हैल्थ एंड वैलनैस सैंटरों’ के लिए दिए जा रहे फंड को प्रदेश सरकार द्वारा आम आदमी क्लीनिकों पर खर्च करने संबंधी आपत्ति जताई, ऐसा करना केन्द्र तथा प्रदेश सरकार के बीच इस फंड संबंधी पहले हुए समझौते का भी उल्लंघन है। 
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस योजना को पूरी तरह बदलने तथा इसका कोई लेखा-जोखा न रखने संबंधी प्रदेश सरकार को सख्त पत्र भी लिखा है। वर्ष 2022-23 में केन्द्र द्वारा इस योजना के लिए 1114 करोड़ रुपए दिए जाने थे, में से 676 करोड़ का फंड रोक लिया है, जबकि इस योजना के तहत 438 करोड़ के लगभग प्रदेश सरकार को पहले ही भेजे जा चुके हैं। इस संबंध में यह स्पष्ट किया गया है कि आयुष्मान भारत योजना के अधीन केन्द्र सरकार का हिस्सा 60 प्रतिशत तथा पंजाब सरकार का हिस्सा 40 प्रतिशत होता है। अब सवाल यह पैदा होता है कि पहले ही दिशाहीन हुई तथा डावांडोल हो रही इस स्वास्थ्य योजना के लिए पंजाब सरकार और फंड कहां से उपलब्ध करवाएगी? उसके पास पहले की भांति ही एक आसान हल तो यह है कि पहले ही ऋण के नीचे दबे प्रदेश पर जोड़-तोड़ करके कुछ हज़ार करोड़ का ऋण और लाद दिया जाए। 


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द