सिर्फ मुफ्त अनाज ़गरीबी की समस्या का हल नहीं

आज़ादी के 75 वर्ष के बाद स्वाधीनता एवं लोकतंत्र की आस्था का सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अनेक कुर्बानियां देने के बाद देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। स्वाधीनता के बाद हमारे संवैधानिक इतिहास में लोकतंत्र की संरचना को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। इस महान लोकतंत्र की आस्था और विश्वास को हमें अनंत काल तक बनाए रखना है। जातिभेद, रंगभेद और अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर कर लोकतंत्र की अंतर्निहित शक्ति को और ताकतवर बनाना है। 
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत की सरकारें वर्ष 2022 तक यह प्रयास करती रहीं कि एक नवीन, मज़बूत भारत का उदय हो, जहां अमीरी, गरीबी, जाति, संप्रदाय और सामान्य और दलित वर्ग भेद पूर्णता समाप्त हो जाएं, परन्तु भरसक प्रयासों के बावजूद ऐसा हो नहीं पाया है। वर्तमान में सामाजिक व आर्थिक असमानता एवं विषमता देश के आर्थिक विकास में बाधा बन रही है। देश में विभिन्न नीतियों के विरुद्ध राष्ट्रीय सम्पत्ति की तोड़फोड़, आपसी असहमति देश के सर्वांगीण विकास के लिए अच्छे संकेत नहीं है। भारत को एक सशक्त आर्धिक नीति एवं सामाजिक सौहार्द्र की आवश्यकता है, तभी देश विकास के पथ पर आगे बढ़ सकेगा। देश की जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता से ही देश को मज़बूत बनाया जा सकता है। तब जाकर देश में व्याप्त गरीबी एवं भुखमरी से निजात पाई जा सकती है। धर्मनिरपेक्षता के मज़बूत कंधों के सहारे देश को सांप्रदायिक सद्भाव के मार्ग पर ले जाने के साथ-साथ शांति और सौहार्द्र का वातावरण तैयार किया जाना आवश्यक है।
 पंचवर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन, कृषि विकास की योजनाएं, विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं  के लिए भिन्न-भिन्न योजनाओं को शामिल किया गया, परन्तु न तो पूरी तरह योजनाओं पर अमल हो पाया और न ही भरपूर वित्तीय संसाधनों का उचित उपयोग हो पाया। वैसे तो यह कल्पना की गई थी कि स्वतंत्रता के पश्चात भारत की सरकारें ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देकर शहर तथा गांव की सरहदों को मिटाने का प्रयास करेंगी, लेकिन इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिली। संसद, विधायिका और कार्यपालिका में तालमेल की कमी के कारण देश का विकास कल्पना के अनुरूप मूर्त रूप नहीं ले पाया। देश में गरीबी को समाप्त करने के लिए ठोस योजनाएं बनानी होंगी। गरीबों को सिर्फ मुफ्त अनाज देकर उनकी गरीबी दूर नहीं की जा सकती। गरीबों को अनाज देने के साथ-साथ उनके हाथों को काम और आजीविका के साधन भी देने होंगे, तब जाकर उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती है। हमें गरीबी को जड़ से खत्म करना होगा। इसके लिए हमें पिछड़ी जाति, दलित, दिव्यांग, महिलाओं, गरीब बच्चों के लिए सर्वाधिक योजनाओं को महत्व देकर निशुल्क शिक्षा, रोज़गार गारंटी तथा  स्वास्थ्य सुविधाओं संबंधी योजनाओं को हर पंचवर्षीय योजना में शामिल करना होगा।
 यह सर्वविदित है कि सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं के क्रियान्वयन से ही नवीन भारत का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। भारतीय समाज में जातिवाद एक बड़े नासूर की तरह बन चुका है। अनेक प्रयासों के बावजूद जातिवाद को आज भी खत्म नहीं किया जा सका है, बल्कि यह और गंभीर रूप धारण कर रहा है। चुनावों के समय वोटर को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिज्ञ जातिवाद का मुद्दा उठाते रहते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय 1955 में सिविल अधिकार एक्ट लागू किया गया इसके बावजूद हालात जस के तस हैं। भारत भिन्न-भिन्न धर्मों, संस्कृतियों  एवं विविधता वाला देश है। भारत को विश्व में सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र माना जाता है। सांप्रदायिकता को रोकने के लिए संसद में अनेक कानून बने हैं, इसके बावजूद देश में धार्मिक सौहार्द बनाने में असफलता ही मिली है।
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल से भारत को स्वच्छ निर्मल और स्वस्थ रखने की नई योजनाओं को लागू कर उस पर अमल करना शुरू किया है। इसी कार्यक्रम में सरकार ने सभी शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनाने की योजना को व्यापक स्तर पर लागू भी किया है, परन्तु यह शत-प्रतिशत अनुपालन में नहीं आई है। इसके अलावा भारत कई योजनाओं में एक साथ काम कर रहा है, जैसे चुनाव प्रक्रिया में संशोधन, श्रम कानूनों में सुधार, पंचायती राज में संशोधन, आर्थिक सशक्तिकरण तथा कार्यपालिका न्यायपालिका तथा विधायिका में सामंजस्य बनाने का प्रयास भी किया गया। कुल मिलाकर नवीन भारत के संकल्प के साथ सभी पहलुओं पर विचार करते हुए विकास योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए, तब जाकर एक नवीन भारत के सपने को साकार किया जा सकता है।

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