चीन-रूस संबंध अमरीका व यूरोपीय देशों की चिंता का सबब!

भारत अब जी-20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है इसका मतलब यह है कि वैश्विक परिदृश्य में चीन और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गए हैं। यदि पुतिन भारत आते हैं तो विश्व में भारत के कद का अलग नजरिया होगास रूस और चीन की गहराती दोस्ती से भारत के साथ-साथ अमरीकी तथा यूरोपीय देशों को नुकसान होने की संभावना है, चीन भारत का धुर विरोधी है और रूस परंपरागत मित्र ऐसे में यदि चीन के साथ रूस की जुगलबंदी होती है तो भारत को कूटनीतिक तौर पर थोड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। क्वाड सम्मेलन के बाद अमरीकी, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान बंगाल की खाड़ी में युद्ध पोतों को भेजकर साझा सैन्य अभ्यास करने में जुट गए हैं। 
फ्रांस ने तो अपना युद्धपोत तथा लड़ाकू विमान भेज कर इसका आगाज भी कर दिया है। अमरीकी पहले से ही प्रशांत महासागर में अपने बेडें को तैनात कर चुका है। जापान जल्दी बंगाल की खाड़ी और प्रशांत महासागर में अपने युद्धपोत तथा लड़ाकू विमानों की रवानगी करेगा। चीन की विस्तार वादी खतरनाक नीतियों एवं मानव विरोधी हरकतों के कारण विश्व की बड़ी ताकतों को एकीकरण का मौका दे दिया है। चार देश तो किवा? सम्मेलन करके उसके खिलाफ अंदरूनी अपने अपने हितों की रक्षा के उपाय भी कर चुके हैंए पर क्वाड सम्मेलन से सबसे ज्यादा तकलीफ  चीन तथा रूस को हुई है। ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए चीन तथा रूस सामरिक महत्व के कारण एक दूसरे के काफी करीब आ गए और साझा सैन्य अभ्यास करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। अपरोक्ष रूप से चाइना ने रूस की तरफ अपना हाथ मित्रता का बढ़ा कर यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों बड़े देश निकट भविष्य में प्रशांत महासागर में ही सैन्य अभ्यास सामरिक महत्व के लिए करने वाले हैं। 
मूलत क्वाड सम्मेलन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ  चाइना और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ  चाइना, अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए दीर्घकालिक परेशानी का सबब बन सकती है। चीन ने अपने देश में जिस तरह आंतरिक उत्पीड़न, तानाशाही और मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाकर कर एक बंद तथा अमानवीय वातावरण निर्मित किया है, उससे वैश्विक रणनीति तथा राजनीति में दूरगामी परिणामों में बहुत ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना बलवती हो सकती है। चीन की सेना में भर्ती होना नौजवानों के लिए स्वैच्छिक ना होकर अत्यंत आवश्यक है वहां हर नौजवान पर सेना में भर्ती होने का भीषण दबाव रहता है इसीलिए नौजवान खुशी से सेना में अपनी सेवाएं देने से घबराकर हिचकिचाते भी हैं। चीन पाकिस्तान को छोड़कर ना सिर्फ भारत बल्कि अन्य पड़ोसी देशों के साथ पूरे विश्व में विस्तार वादी नीतियों के लिए कुख्यात है, और विगत दिनों भारत की लद्दाख की सीमा पर एलएएएसी पर जो अतिक्त्रमण किया एवं दीर्घकालिक भारतीय अधिकारियों के साथ वार्ता कर कुछ पीछे जाकर केवल औपचारिकता ही पूरी की हैं। संपूर्ण रूप से वह पीछे नहीं हटा है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के पदाधिकारी किसी भी हालात में भारत को चैन से रहने नहीं देने पर अडिग हैं, पर भारत के संदर्भ में यह बात अत्यंत चिंतनीय की चाइना अपने वचन पर कभी भी यू-टर्न ले सकता है ।और चीन का सैन्य रक्षा बजट भारत के बजट से 5 गुना अधिक रखा गया है। इससे चीन के मंसूबे एकदम स्पष्ट हैं कि दक्षिण प्रशांत महासागर में वह कुछ भी सैन्य कार्यवाही कर सकता है। इतने बड़े रक्षा बजट बनाने के पीछे उसकी युद्ध करने की मंशा और संभावना से इनकार नहीं किया जा सकताए वैसे भी अमरीकी के राष्ट्रपति जो? बाइडेन के नेतृत्व में बनी सरकार अपनी चिंता चाइना को लेकर स्पष्ट जता चुकी है कि चीन की सामरिक शक्ति एवं उदारवादी नीति पूरे विश्व के लिए खतरा बन सकती है। चीन अन्य देशों के साथ साथ अमरीकी जैसी महाशक्ति एवं सहयोगी देशों के लिए भी धीरे-धीरे खतरनाक होते जा रहा है । अमरीकी में रक्षा विभाग पेंटागन के अनुसार चीन ने 21वीं सदी में दीर्घकालिक रणनीतिक एवं सामरिक खतरा पैदा कर दिया है। उन्होंने कहा की चीन की अंतरिक कम्युनिस्ट पार्टी अपनी सरकार पर दबाव डालकर एलएएएसी में अपनी भूमि बढ़ाने का काम तेजी से करने के प्रयास में है, एवं अपनी तमाम शक्तियों को बढ़ाने में लगा है। चीन एक तरफ  इंडो पेसिफिक संतुलन बिगड़ने की कोशिश में लगा हुआ है वहीं यह असंतुलन अमरीकी तथा उसके अन्य सहयोगी देशों के लिए अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव डालने और चिंता पैदा करने के लिए पर्याप्त है। 
अमरीकी सैनिक विशेषज्ञ का कहना है की चीन अभी भी एलएएएसी से उतना पीछे नहीं हटा है। जितना उसने पिछले कुछ दिनों में जमीन का विस्तार किया था। पिछले कुछ दिनों में एलएएएसी में चीन द्वारा जमीन पर कब्जा तथा विस्तार किए जाने के बाद भारत और चीन के अधिकारियों से हुई वार्ता के परिणाम स्वरूप चीन तथा भारतीय सेना लद्दाख के पेंगांग के आसपास विवादित क्षेत्र के कुछ हिस्सों मे सैनिकों सहित पीछे हटी है। अंतर्राष्ट्रीय सरकारी न्यूज़ एजेंसियों का कहना है कि चीन पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता, उस पर 24 घंटे कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है। चीन की सामरिक शक्ति एवं कूटनीति के चलते वह मूलत: आक्रामक एवं विस्तार वादी नीति का बड़ा हिमायती है। और इस रणनीति में वह विश्व की बड़ी शक्तियों अमरीकी और रूस को भी डरा सकता है। इस तरह चीन के शासक और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी 21वीं सदी में वैश्विक अशांति का दूरगामी संदेश देते हैए और इन गतिविधियों के चलते भारत को विशेष सतर्कता सामरिक क्षेत्र में बरतनी होगी। खासतौर पर जब क्वाड सम्मेलन से भारत की अमरीकी, जापान और ऑस्ट्रेलिया से बढ़ते निजी संबंधों के चलते मधुर संबंध स्थापित हो गए हैं, ऐसे में रूस जो भारत का परम्परागत मित्र है वह अमरीकी शक्ति तथा उनकी नीतियों से खासा नाराज चल रहा है। वह अब भारत से भी अमरीकी संबंधों के चलते बहुत खुश नहीं है।


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