क्या मोदी सरकार बदले की भावना से काम कर रही है ?

 

देश में वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियां विशेष तौर पर ईडी एवं आयकर विभाग, सीबीआई जिस ढंग से सक्रि य हुई हैं। उससे भारत के कई विरोधी दलों के पेट में भयंकर दर्द उठ रहा है। उनका कहना है कि केन्द्र सरकार इन एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है और विरोधी दलों के विरुद्ध बदले की भावना से काम कर रही है। अभी हाल में दिल्ली में शराब घोटाले के चलते ईडी द्वारा दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर देश के 8 राजनीतिक दलों ने इस आशय का पत्र लिखा कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है। ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह कि यदि इन एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है तो उसको लेकर आपत्ति देश के सभी विपक्षी राजनीतिक दलों को क्यों नहीं है, मात्र आठ  राजनीतिक दलों को ही क्यों है। 
इस संबंधी यह बताना प्रासंगिक होगा कि उड़ीसा में भाजपा और बीजद का सीधा मुकाबला है लेकिन बीजद को इस संबंध में कोई शिकायत नहीं है। नीतीश कुमार का भाजपा से लम्बा संबंध था पर दो-दो बार भाजपा की पीठ में छुरा भाेंक चुके हैं। उनके विरुद्ध केंद्रीय एजेंसियों ने कोई कार्यवाही की हो, ऐसा कुछ देखने को मोदी सरकार के दौर में सामने नहीं आया। आंध्रप्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार और इसके पूर्व चंद्रबाबू नायडू की सरकार में भी ऐसा कोई उदाहरण नहीं है। तेलंगाना की के.सी.आर. सरकार के विरुद्ध भी ऐसा कोई प्रकरण सामने नहीं आया। यह बात अलग है कि अब के.सी.आर. की बेटी के कविता दिल्ली के शराब घोटाला मामले में फंसती दिखाई दे रही हैं। जिन 8 राजनीतिक दलों ने अभी हाल में केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग की शिकायत की है उसमें तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी का भी नाम है पर क्या वह इस बात से इंकार कर सकती हैं कि शिक्षक भर्ती घोटाले में उनके मंत्री पार्थ चटर्जी जिम्मेदार नहीं थे और उनकी महिला मित्र अर्पिता मुखर्जी के यहां से करोड़ों की नगदी कैसे बरामद हुई। यदि पार्थ चटर्जी निर्दोष है तो ममता ने उन्हें पार्टी से निलंबित क्यों किया। 
जहां तक सी.बी.आई. द्वारा मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का सवाल है और उनके विरुद्ध मामला निराधार था तो न्यायालय ने जमानत देने से क्याें इनकार कर दिया, साथ ही न्यायिक अभिरक्षा में क्यों भेजा। जहां तक दिल्ली के एक और मंत्री सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी का सवाल है। उनके विरुद्ध मामला कितना मजबूत है यह इसी से समझा जा सकता है कि 8-9  महीने जेल में रहने के बाद भी न्यायालय ने उन्हें जमानत नहीं दी है। इतना ही नहीं, दिल्ली उच्च न्यायालय उनके बारे में साफ तौर पर टिप्पणी कर चुका है कि सत्येंद्र जैन के विरुद्ध हवाला का स्पष्ट प्रमाण है। इसके बावजूद भी यदि जैन और सिसोदिया दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की दृष्टि में  कट्टर ईमानदार व महान देशभक्त हैं तो इसे शब्दों के साथ खिलवाड़ के सिवा क्या कहा जा सकता है? हद तो यह है कि उपरोक्त चिट्ठी में लालू प्रसाद यादव के भी हस्ताक्षर हैं जो चारा घोटाले के चलते कई वर्षों तक जेल की हवा खा चुके हैं और जमीन के बदले नौकरी देने के कई मामलों में भी साफ तौर पर फंसे हुए दिखाई दे रहे हैं। शिवसेना उद्धव गुट के नवाब मलिक का मामला अपनी जगह पर है, जिन्हें सालों बाद भी जमानत नहीं मिल पाई है। इसी तरह से महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख को भी लंबे समय बाद जमानत प्राप्त हुई पर कई विरोधी दलों की नज़र में  मोदी सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग और बदले की भावना से काम कर रही है। हद तो यह है कि नेशनल हेराल्ड प्रकरण, जिसमें प्राइवेट परिवाद पर न्यायालय कार्यवाही कर रहा है और सोनिया एवं राहुल जमानत पर हैं, उस पर भी कांग्रेस पार्टी द्वारा ऐसा आरोप लगाया जाता है कि जैसे इसके लिए मोदी सरकार जिम्मेदार हो। कम से कम अभी तक एक भी ऐसा उदाहरण सामने नहीं आया है जिसमें किसी भी विपक्षी दल की नेता की गिरफ्तारी पर न्यायालय ने यह टिप्पणी की हो कि यह गिरफ्तारी निराधार की गई है।
विरोधी दलों का यह भी आरोप है कि केंद्रीय एजेंसियां विरोधी दलों के विरुद्ध ही कार्रवाई क्यों करती हैं। क्या भाजपाई सब दूध के धुले हुए हैं। ऐसा नहीं है कि मोदी शासन में भाजपाइयों के खिलाफ कोई कार्रवाई ही न हुई हो। इसके कई उदाहरण हैं। अभी कर्नाटक में भाजपा के एक विधायक के पुत्र के यहां से दस करोड़ रुपए लोकायुक्त ने बरामद किए, जबकि वहां भाजपा की ही सरकार है। फिर भी विरोधी दलों को ऐसा लगता है कि मोदी सरकार अपनी पार्टी के लोगों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं कर रही है तो वह अदालत जाने को स्वतंत्र हैं। उल्लेखनीय है कि यूपीए के दौर में हुए घोटालों को लेकर चाहे वह 2जी स्पेक्ट्रम रहा हो, कोयला घोटाला रहा हो या राष्ट्रमंडल खेलों का घोटाला रहा हो, सभी की जांच सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों से उनकी निगरानी में हुई थी। भ्रष्टाचार का कोई मामला उठाए जाने पर कांग्रेस पार्टी के लोग यही कहते थे कि आप अदालत जाने के लिए स्वतंत्र हैं। लाख टके का सवाल है कि कोई भाजपाई आपकी नज़र में भ्रष्ट है तो अदालत क्यों नहीं जाते। इन मामलों में विरोधी दलों का कैसा रवैया है। जांच एजेंसियों का वे किस तरह से दुरुपयोग करते हैं, उसके भी बहुत से उदाहरण लोगों के सामने हैं। महाराष्ट्र में अमरावती से सांसद नवनीत राणा द्वारा मुख्यमंत्री के बंगले में मात्र हनुमान चालीसा पढ़ने की बात को लेकर उनके विरुद्ध महाराष्ट्र पुलिस द्वारा राजद्रोह का मामला बनाया गया और नवनीत राणा को कई दिनों तक जेल में रखा गया। फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव की आलोचना करने पर मुंबई स्थित उनके घर को गिरा दिया गया। अपने को लोकतंत्र का नया अवतार बताने वाली ‘आप’ पार्टी कुमार विश्वास द्वारा पंजाब विधानसभा चुनाव में खालिस्तानी कनेक्शन का आरोप लगाए जाने पर केजरीवाल ने उन्हें पंजाब पुलिस से गिरफ्तार करवाने का प्रयास किया। यह बात और है कि न्यायालय के हस्तक्षेप के चलते वह सफल नहीं हो सके। इस तरह से देखा जा सकता है जो लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी का सवाल उठाते हैं, इस मामले में वे सब कितने आत्म केंद्रित हैं। देश के जिम्मेदार नागरिकों को यह बेहतर ढंग से पता है कि देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार सबसे अहम समस्या है। इसी के चलते भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया है। लोकनायक जयप्रकाश का कहना था यदि गंगोत्री ही प्रदूषित हो तो भला गंगा कैसे शुद्ध हो सकती है। इसीलिए उन्होंने 1974-75 के दौरान मूलत: राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। (युवराज)