बड़ा लम्बा है राहुल गांधी का अदालती स़फरनामा

‘मोदी सरनेम’ मामले में सूरत कोर्ट के फैसले का गुरुवार को सबको इंतजार था। कांग्रेस के साथ-साथ पूरे देश की नज़र इस मामले पर थी। कोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी को दोषी करार दिया और 2 साल की सज़ा सुनाई लेकिन इसके ठीक बाद कोर्ट ने कांग्रेस सांसद को 15 हज़ार के मुचलके पर ज़मानत दे दी। मामले में पिछले चार साल से राहुल गांधी पर मानहानि का केस चल रहा था लेकिन क्या आप जानते हैं कि मानहानि के मामले कितने तरह के होते हैं। क्या होता है जब इन मामलों में केस दर्ज होता है?
आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि राहुल को जिस मामले में दोषी करार दिया गया था वह आखिर था क्या? वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एक कथित टिप्पणी की थी। उन्होंने अपनी रैली के एक भाषण में कथित तौर पर कहा था, ‘क्यों सभी चोरों का समान उपनाम मोदी ही होता है?’ इसी टिप्पणी के बाद भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। उन्होंने राहुल पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपनी टिप्पणी से समूचे मोदी समुदाय का मान घटाया है।
दरअसल लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, ‘चोरों का सरनेम मोदी है। सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है, चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो चाहे नरेन्द्र मोदी।’ इसके बाद सूरत पश्चिम के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल के खिलाफ मानहानि का केस किया था। उनका कहना था कि राहुल गांधी ने हमारे पूरे समाज को चोर कहा है और यह हमारे समाज की मानहानि है। इस केस की सुनवाई के दौरान राहुल गांधी तीन बार कोर्ट में पेश हुए थे। आखिरी बार अक्तूबर 2021 की पेशी के दौरान उन्होंने खुद को निर्दोष बताया था। उनके वकील के मुताबिक, ‘राहुल ने कहा कि बयान देते समय मेरी मंशा गलत नहीं थी। मैंने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई थी।’ जेल की सज़ा सुनाए जाते समय राहुल गांधी अदालत में ही मौजूद थे। उन्होंने बाद में इस मामले में प्रतिक्रिया देते हुए महात्मा गांधी की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि उनके लिए सत्य ही भगवान है। बता दें कोर्ट ने कांग्रेस नेता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 499 और 500 के तहत दोषी करार दिया। गौरतलब है कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी माध्यम से किसी के मान सम्मान और उसकी ख्याति को ठेस पहुंचाना या हानि पहुंचाने को ही मानहानि कहा जाता है। हालांकि किसी व्यक्ति के बारे में अगर सच्ची टिप्पणी की गई हो तो उसे मानहानि नहीं माना जाता है। साथ ही यदि टिप्पणी सार्वजनिक हित में की गई हो तो वह मानहानि की श्रेणी में नहीं आती है। भारत में मानहानि को लेकर कानून बनाए गए हैं। लाइव लॉ के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 499 से 502 तक मानहानि के कानून के विषय में प्रावधान किया गया है।
दोषी व्यक्ति की सज़ा अगर ऊपरी अदालत सस्पैंड न करे तो दोषी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। कई बार अदालत सज़ा सस्पैंड कर देती है, लेकिन कन्विक्शन नहीं। ऐसे मामले में चुनाव नहीं लड़ सकते। हालांकि जो कोर्ट फैसला सुनाती है वह दोषी को तीन साल से कम की सज़ा किसी भी मामले में जमानत दे देती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि के लिए दो वर्ष तक का सादा कारावास और जुर्माना का भी प्रावधान किया गया है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करता है तो उसे दो साल का कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकता है।
लेकिन अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या इस मामले में सजा मिलने के बाद राहुल गांधी की संसद की सदस्यता खतरे में आ गई है तो इसे लेकर संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की सदस्यता पर कोई खतरा नहीं है। उनका यह भी कहना है कि अभी राहुल गांधी की सज़ा को हाईकोर्ट में चैलेंज किया जाएगा, अगर हाइकोर्ट में सज़ा को बरकरार रखा जाता है, तो फिर उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी जाएगी। जब तक यह मामला चलेगा तब तक राहुल गांधी की सदस्यता को कोई खतरा नहीं है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता का अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तय होगा। जानकर लोगों का कहना है जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार, दो साल या उससे अधिक समय के लिए कारावास की सज़ा पाने वाले व्यक्ति को ‘दोषसिद्धि की तारीख से’ अयोग्य घोषित किया जाएगा।
सांसद और विधायक कई मामलों में अदालत से दोषी और सजा पाने के बाद अपनी सदस्यता खो देते हैं और सज़ा की अवधि पूरी करने के बाद 6वर्ष तक चुनाव लड़ने के अयोग्य भी होते हैं। सवाल उठता है कि क्या सिर्फ 2 साल से अधिक सज़ा पाए जाने के बाद ही सांसद और विधायक की सदस्यता खत्म होती है और वो 6साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाते हैं? ऐसा नहीं है, दरअसल कुछ मामलों में सिर्फ दोषी पाए जाने और फाइन देकर छूट जाने के बाद भी सांसद और विधायक की सदस्यता खत्म हो जाती है।
बताया जाता है कि अब राहुल को सिर्फ सजा के खिलाफ अपील दायर करने से ही राहत नहीं मिलेगी, बल्कि सज़ायाफ्ता सांसद को ट्रायल कोर्ट की तरफ से दोषसिद्धि के खिलाफ अपील कोर्ट स्पेसिफिक स्टे ऑर्डर दे। यानी सजा पर रोक नहीं बल्कि दोषसिद्धि पर ही रोक लगा दे तब राहुल की संसद सदस्यता जाने से बच सकती है। राहत तब मिल सकती है जब अपील कोर्ट दोषसिद्धि पर ही रोक लगा दे। ऐसी स्थिति में राहुल लोकसभा सांसद बने रह सकते हैं और यदि सुप्रीम कोर्ट भी सज़ा बरकरार रखती है तो राहुल को 2 साल जेल में रहना पड़ सकता है। रिप्रेजेंटेशन ऑफ द  पीपुल्स एक्ट 1951 की धारा 8 (3) के तहत राहुल रिहाई के 6 साल बाद तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। यानी लगभग 8 साल तक राहुल चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
इस प्रकार का यह पहला मामला नहीं है, देश में रिप्रेजेंटेशन ऑफ  द पीपुल्स एक्ट1951 ‘के आने के बाद से अब तक कई सांसद-विधायकों को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी है... चारा घोटाले के मामले में साल 2013 में कोर्ट ने लालू यादव को दोषी ठहराते हुए 5 साल के जेल की सज़ा सुनाई थी। इसके बाद उनकी सांसदी चली गई थी। साथ ही लालू सज़ा पूरी करने के 6 साल बाद तक चुनाव नहीं लड़ सके। काजी रशीद कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे थे। कांग्रेस ने उन्हें यूपी से राज्यसभा में भेजा था। राज्यसभा सांसद रहते उन्हें एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी पाया गया। कोर्ट ने साल 2013 में चार साल की सज़ा सुनाई थी। इससे उनकी सांसदी चली गई। हमीरपुर से भाजपा विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल की सदस्यता रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स एक्ट 1951 के तहत साल 2019 में चली गई थी। 19 अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने उन्हें हत्या के मामले में उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। उन्नाव में नाबालिग से सामूहिक रेप केस में बांगरमऊ से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई। सज़ा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो गई थी। विधानसभा के प्रमुख सचिव की ओर से सज़ा के ऐलान के दिन यानी 20 दिसम्बर 2019 से ही उनकी सदस्यता खत्म किए जाने का आदेश जारी किया गया था। इसी साल फरवरी में मुरादाबाद की एक विशेष कोर्ट ने 15 साल पुराने मामले में सपा नेता आजम खान और उनके विधायक पुत्र अब्दुल्ला आजम को 2 साल की सज़ा सुनाई थी। इसके बाद उनकी विधायकी चली गई थी।