स्वप्न

देनू और भोला यद्यपि अपाहिज थे किंतु सड़क पर बैठे भीख मांगते-मांगते वे भी धनवान बनने के स्वप्न देखा करते थे। पास ही खड़े एक लॉटरी वाले से लॉटरी खरीदते लोगों को देख उनका भी मन करता लॉटरी लें। लॉटरी के लालच में उनका फंसना स्वाभाविक था। जो लोग लॉटरी खरीदते थे उनमें से किसी की कभी लग भी जाती और कुछ बार-बार निराश भी हो जाते। एक दिन एक पर्यटक ने दोनों को बीस-बीस रुपये दे दिये। उन्होंने उसमें से पांच रुपये का लॉटरी का टिकट खरीद लिया। उस पर पच्चीस लाख का इनाम भी निकल आया, खुशी का ठिकाना न रहा। टिकट लेकर एजेन्ट के पास पहुंचे जैसे-तैसे एजेंट ने कुछ कमीशन काट कर पैसे दिलवाने की बात की, इतने में ही किसी बदमाश ने आकर झपटा मारा और टिकट छीन लिया। कुछ रहमदिल लोगों ने टिकट उससे वापस लेकर उन्हें दे दिया।
जब वे सड़क पार कर रहे थे तो सड़क पार करते हुए तेजी से आती कार ने उनमें से एक को टक्कर मार दी और वह घायल अवस्था में उपचार के लिए ले जाया गया। अब वह अकेला लखपति बनने का स्वप्न देख ही रहा था कि जोर की आंधी चल पड़ी और टिकट हाथ से उड़ सड़क पर जा गिरा। जहां निकलती कारों के नीचे दबकर टिकट के परखच्चे उड़ गए। ठीक उसी तरह जैसे कि उसके स्वर्णिम स्वप्न किर्च-किर्च हो गए। धन पाकर जो अरमान संजोए थे वे सब क्षण भर में धूमिल हो गए।                                 (सुमन सागर)