खतरे की घंटी है बढ़ती हुई जनसंख्या

संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या विश्व भर के सभी देशों से अधिक हो गई है। हम इसे देश की उपलब्धि नहीं मानते, अपितु यह महसूस करते हैं कि हमारा देश विश्व भर के ज्यादातर देशों से बुरी तरह पिछड़ गया है। 1950 के बाद समय-समय पर जनगणना के आंकड़े सामने आते रहे हैं। समकालीन सरकारों को लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या का पता तो चलता रहा है परन्तु वे इस पक्ष से किसी तरह भी चिन्ताजनक दिखाई नहीं दीं। एक तरह से उनकी इस पक्ष से लापरवाही बुरी तरह खटकती भी रही। भारत के लिए बढ़ती जनसंख्या चिन्ता का विषय होना चाहिए था। इसका कारण सामने खड़ी वास्तविकता थी। एक तरफ जनसंख्या बढ़ती रही, दूसरी तरफ उससे भी तेज़ी के साथ ़गरीबी तथा बेरोज़गारी बढ़ती रही।
यदि हमारा समाज इन दोनों से छुटकारा नहीं पा सका तो हम इसे सरकारों की तथा समाज की बड़ी असफलता समझते हैं। इसका प्रत्यक्ष अभिप्राय यह है कि हमें तथा हमारी सरकारों को सामने खड़ी कड़ी वास्तविकता का एहसास नहीं है। विश्व के मान-चित्र पर दृष्टिपात करते हैं। आज रूस का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल में 11 प्रतिशत है, चीन का 6.3 प्रतिशत , कनाडा का 6.1 प्रतिशत, अमरीका का 6.1 प्रतिशत, ब्राज़ील का 5.6 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया का 5.2 प्रतिशत है जबकि भारत विश्व के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ 2 प्रतिशत हिस्सा ही है। दूसरी तरफ रूस की धरती का क्षेत्रफल भारत से लगभग 6 गुणा बड़ा है, चीन का 4.3 गुणा, कनाडा का 4.1 गुणा, अमरीका का 4.1 गुणा तथा आस्ट्रेलिया का 3.2 गुणा क्षेत्रफ ल अधिक है। उपरोक्त सभी देश प्राकृतिक स्रोतों में भारत से कहीं आगे हैं जबकि रूस, कनाडा, अमरीका , आस्ट्रेलिया इन सभी देशों की समूची जनसंख्या भारत की जनसंख्या के आधे से भी कम है। भारत की जनसंख्या इस समय एक अरब तथा 42 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है, जबकि इन देशों की जनसंख्या चौवन करोड़, बावन लाख, तिरासी हज़ार, दो सौ अड़तालिस (54,92,83,248) है।
चिन्ताजनक बात यह है कि विगत 75 वर्ष में हमारी किसी भी सरकार ने जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु कोई ठोस योजनाबंदी नहीं की। परिवार नियोजन की अब तक की सभी योजनाएं बेहद सीमित हो कर आधी-अधूरी रह गई हैं। यदि किसी नेता ने कभी गम्भीरता तथा सख्ती से इस तरफ ध्यान देना शुरू भी किया तो उसकी योजना इस सीमा तक लुढ़क गई कि उसके बाद किसी भी अन्य छोटे-बड़े नेता या प्रतिबद्ध राजनीतिक पार्टी की पुन: इस विषय को छूने की हिम्मत तक नहीं हुई। हम घटती-बढ़ती वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं परन्तु इसके साथ ही आज भी अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाएं करोड़ों लोगों की पहुंच से दूर हैं। यदि कुछ योजनाएं आगे बढ़ती भी हैं तो उनके लिए साधनों की कमी उन्हें आधा-अधूरा कर देती है। आज भारत विश्व की एक बड़ी शक्ति बनने जा रहा है परन्तु इसे उस समय तक अर्थ-पूर्ण नहीं कहा जा सकता जब तक यहां ़गरीबी, बेरोज़गारी के साथ-साथ प्राथमिक सुविधाओं की कमी बुरी तरह खटकती है।
हम इसके लिए सबसे बड़ा कारण बढ़ती जनसंख्या को समझते हैं। इस संबंध में हर स्थिति में मज़बूत तथा ठोस योजनाबंदी सामने आनी चाहिए। किसी भी केन्द्र सरकार के लिए यह समस्या उसका मुख्य एजेंडा होना चाहिए। हम केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार से यह आशा करते हैं कि वह प्राथमिकता के आधार पर बढ़ती हुई जनसंख्या की गम्भीरता को समझते हुए इस पर नियन्त्रण पाने के लिए समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर कोई मज़बूत योजनाबंदी तैयार करने में सफल होगी। ऐसी सफलता सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द