क्या डबल इंजन सरकार से ही विकास संभव है ?

 

कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने एकतरफा विजय प्राप्त की है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिज़ोरम के आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, लेकिन जहां तक 2024 के लोकसभा चुनाव का प्रश्न है, वहां तो विपक्ष को सत्ता मिलना एक स्वप्न ही कहलाएगा। बड़ी बात यह है कि जब पूरे देश में प्रो इनकम्बेंसी का फैक्टर प्रभावी है तो कर्नाटक में ऐसा क्यों? जबकि भाजपा का कहना है कि कांग्रेस एक परिवारवादी पार्टी है, भ्रष्टाचार की पक्षधर है, कुशासन की पर्याय है तो फिर गौर करने का विषय है कि भाजपा के विरुद्ध जनादेश क्यों? भाजपा का नारा रहता है कि उसकी केंद्र में सरकार है, इसलिए प्रदेश में भी यदि भाजपा की सरकार बनेगी तो डबल इंजन की सरकार प्रदेश और जनता के हित में  ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर सकती है। लेकिन जैसा कि एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना है यदि एक इंजन तो बहुत ठीक है लेकिन दूसरे इंजन से धुआं निकल रहा है तो फिर डबल इंजन की सरकार की प्रासंगिकता संदिग्ध हो जाती है। कर्नाटक में भी कुछ ऐसा ही हुआ। केंद्र में बैठी मोदी सरकार को लेकर जहां देश के जनमानस में सकारात्मक माहौल है वही प्रदेशों की कुछ भाजपा सरकारों को लेकर नकारात्मक माहौल है? कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक की बोम्मई  सरकार को 40 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार कह कर प्रचारित किया। इसमें कहीं न कहीं सच्चाई तो ज़रूर थी। तभी तो यह नारा मतदाताओं के ऊपर चिपक गया। निश्चित रूप से कर्नाटक में भाजपा की पराजय का सबसे बड़ा कारण यही था। जैसे भाजपा से सुशासन की अपेक्षा थी, वह नहीं दे पाई। भाजपा की पराजय के दूसरे भी कारण थे, जैसे मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस के पक्ष में पूरी तरह दूर ध्रुवीकृत  हो जाना। कांग्रेस पार्टी द्वारा कर्नाटक के मतदाताओं से किए गए वह वायदे जिनमें हर घर को 200 यूनिट बिजली मुफ्त, परिवार की प्रत्येक मुखिया महिला को 2000 प्रतिमाह, बेरोज़गारों को प्रतिमाह 3000 भत्ता और महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा इत्यादि थे। कांग्रेस पार्टी ने यह सब उसी तर्ज पर किया जैसे केजरीवाल ने दिल्ली में किया था। अब इन वायदों को कांग्रेस सरकार कैसे पूरा कर पाती है, यह भविष्य भी बताएगा। यदि वायदे पूरे कर भी पाती है तो इससे विकास कार्य कैसे  होंगे? इसमें कोई किंतु परंतु नहीं है। जैसा कि कांग्रेस जन प्रचारित कर रहे हैं इस विजय में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का योगदान है, वह पूरी तरह बेबुनियाद है। यदि ऐसा होता तो गुजरात व अन्य राज्यों में जो चुनाव हुए, वहां पर राहुल गांधी की यात्रा का असर क्यों नहीं पड़ा? यदि किसी व्यक्ति विशेष के चलते यह चुनाव प्रभावित हुआ तो यह कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कारण हुआ, जिससे अनुसूचित जाति के एक वर्ग के मतदाताओं का वोट कांग्रेस के पक्ष में चला गया, लेकिन बड़ी बात यह है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां नगरीय चुनावों में डबल इंजन से और आगे चलकर ट्रिपल इंजन की सरकार का नारा चल गया और उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जहां 17 के 17 मेयर पद के चुनाव जीत लिए और अधिकांश नगर पालिका और नगर पंचायतों में भी वह विजयी रही। इतना ही नहीं भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल ने प्रदेश के दोनों उप-चुनावों में अपना परचम फहराया। बड़ी बात यह है कि मुस्लिम बहुल सीट स्वार में जो आज़म खान के बेटे की परम्परागत सीट थी, उसे भी भाजपा गठबंधन ने जीतकर चमत्कार कर दिया। नि:संदेह उत्तर प्रदेश में यह योगी सरकार के सुशासन की विजय है।
गौर करने की बात यह है कि कर्नाटक चुनाव के नतीजों से भविष्य में देश के राजनीतिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कांग्रेस पार्टी इस विषय को ऐसे ही प्रचारित कर रही है जैसे उसने दिल्ली के तख्त पर झंडा गाड़ दिया हो। इतना तो गारंटी के साथ कहा जा सकता है कि कर्नाटक चुनाव के नतीजे 2024 के लोकसभा के चुनाव को कहीं प्रभावित करने वाले नहीं हैं। लोगों को याद होगा ही कि वर्ष 2013 में भी कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 140 सीटें मिली थी, भाजपा को मात्र 40 सीटें ही प्राप्त हुई थी, लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में एकतरफा जीत प्राप्त हुई थी। वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को विजय मिली थी लेकिन  वर्ष 2019 के लोकसभा के चुनाव में परिदृश्य पूरी तरह बदल गया था। राजस्थान में तो भाजपा को पूरी 25 की 25 सीटें मिली वहीं मध्य प्रदेश में 29 में 28 और छत्तीसगढ़ में 11 में 9 सीटें मिलीं। विपक्षी दलों को एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि आज भी देश में मोदी का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए कर्नाटक चुनाव को लेकर उन्हें बहुत आशावादी होने की ज़रूरत नहीं है। अलबत्ता इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि लोकसभा के चुनाव में संसाधन जुटाने के लिए कांग्रेस पार्टी के हाथ में एक महत्वपूर्ण राज्य आ गया है। इसी तरह से कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम का आने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान एवं तेलंगाना में भी कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है। निश्चित रूप से इन चुनावों का नतीजा वहां की सरकारों का कामकाज तय करेगा। (युवराज)