बासमती का उद्योगपति, जो किसानों का हमदर्द है

भारत में तकरीबन 20 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर बासमती किस्मों की काश्त की जाती है। जिन राज्यों में ज्यादा काश्त है, उनमें मुख्य तौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के इलाके शामिल हैं, जिनको जी.आई. (ज्योग्राफिकल इंडिकेटर) मिला हुआ है। पिछले वर्ष 46 लाख टन बासमती चावल विदेशों को निर्यात किया गया जो ज्यादातर पंजाब और हरियाणा में पैदा किया गया था। पंजाब में 6 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर बासमती किस्मों की काश्त हुई। निर्यात में पंजाब का योगदान लगभग 40 प्रतिशत तक है। कुल निर्यात की गई बासमती की कीमत 30 हजार करोड़ रुपये के करीब बनती है।
बासमती के उद्योगपतियों में एक विजय सेतिया हैं जो अमृतसर के रहने वाले हैं और जिन्होंने करनाल में बासमती प्रोसैसिंग का बड़ा प्लांट लगाया हुआ है। वह चावल के निर्यात और प्रोसैसिंग के बड़ा व्यापारी हैं। बहुत कम उद्योगपति ऐसे होंगे जो अपने फायदे को अनदेखा करके किसानों (जिनसे वह कच्चा माल खरीदते हैं) के फायदे के लिए वह यत्नशील हों। सेतिया उनमें से एक हैं, जो किसानों के बड़े हमदर्द हैं। बहुत से किसान उनके साथ सम्पर्क करके अपने उत्पादन और मंडीकरण का प्लान बनाने और उनकी सलाह लेते हैं और उनके सुझावों को अपनाकर लाभ उठाते हैं। वह किसानों को कहते हैं कि वह धान के स्थान पर बासमती की काश्त करें, जो उनको ज्यादा लाभ देगी और भू-जल स्तर को भी नीचे गिरने से बचाएगी, लेकिन इस वर्ष साथ में ही वे यह भी कहते हैं कि बहुत बड़े क्षेत्र पर पंजाब के किसान बासमती की काश्त न करें, क्योंकि यदि पैदावार ज्यादा हो गई और एक हद से बढ़ गई तो मंड़ी में बासमती का रेट जो उनको पिछले वर्ष बहुत लाभदायक मिला, कहीं गिर कर नीचे न आ जाए। पिछले वर्ष मंडी में बासमती की किसमों के आधार पर 5400-5500 रुपये क्विंटल तक भी किसानों को कीमत मिली है। इस वर्ष नई झुलस और भुरड़ रोग से रहित ज्यादा झाड़ देने वाली पूसा बासमती 1847 (पी.बी.-1509 और पी.बी.-1692 का बदल), पूसा बासमती -1885 (पी.बी.-1121 और पी.बी.-1718 का बदल) और पूसा बासमती-1886 (पूसा 1401 का बदल) किसमें उनको उपलब्ध हैं। जिन पर ज्यादा सप्रे करने की आवश्यकता नहीं और पानी की ज़रूरत के तौर पर भी यह मानसून की बारिश के पानी के साथ ही अपनी ज्यादा ज़रूरत पूरी कर लेंगी और झाड़ भी बहुत देंगी। रेट भी लाभदायक मिलने की संभावना है, जिस कारण किसान बड़े क्षेत्र पर इन किसमों की काशत करने के लिए उतावले हैं। फिर चाहे बासमती का निश्चित समर्थन मूल्य नहीं, जिसके लिए किसान कई वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं, परन्तु पंजाब सरकार 2600 से 2800 रुपये क्विंटल के बीच बासमती की कीमत निश्चित करके मार्कफैड द्वारा किसानों की फसल खरीदने संबंधी विचार कर रही है। यह खरीद सरकार द्वारा तभी की जाएगी, जब मंडी में रेट इस सहायक कीमत से नीचे गिरेगा।
सेतिया खरीद संबंधी भी मंडी में किसानों की सहायता करते हैं। यदि किसी उत्पादक की फसल मंड़ी के भाव से कम पर लेने की कोशिश करता है तो वह इसमें दखल देकर किसानों के हित की रक्षा करते हैं यहां तक कि स्वयं भी वह फसल खरीद लेते हैं। ऑल इंडिया राईस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन के कई वर्ष प्रधान रहते हुए उन्होंने किसानों के साथ अपना रिश्ता और भी गहरा कर लिया। करनाल और इसके आसपास की तरौड़ी और सफीदों जैसी मंडियों में पंजाब की मंडियों से बासमती ज्यादा रेट रहना कुछ हद तक विजय सेतीया की देन है। वह बड़े पैमाने पर इन मंडियों से खरीद करते हैं और अपने हित के लिए किसानों की लूट करने में कोई विश्वास नहीं रखते। बासमती की काश्त का फैलाव करने के लिए उनका बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने पूसा बासमती-1121 को बासमती की श्रेणी में लाने संबंधी भी वैज्ञानिकों को उत्साह देकर योगदान डाला। बासमती की सबसे लम्बे चावल वाली यह किस्म खाड़ी के देशों के अलावा यूरोप और अमरीका की भी पसंद बनी रही। जब गुणवक्ता के तौर पर सबसे बढ़िया चावलों वाले पूसा 1401 किस्म का उत्पादकों को कम रेट दिया गया तो विजय सेतिया ने इसका जबरदस्त विरोध किया और खरीददारों को मनवाया कि यह किसम पी.बी. 1 किस्म नहीं, जिसका रेट कम रहता है।
 विजय सेतिया अपने प्रयोगों के आधार पर किसानों के हित के लिए खोज भी करते रहते हैं। अनाज के सुरक्षित भण्डार के लिए प्रभावशाली तकनीक विकसित करके उन्होंने किसानों को बहुत राहत पहुंचाई। गोदामों में कीड़े मकौड़े, सुसरी आदि 10 से 20 प्रतिशत तक अनाज को बर्बाद करते हैं। इस बर्बादी को कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा ही घटाया जा सकता है। कई बार कीटनाशक प्रभावशाली नहीं होते। सेतिया ने गौदामों में धुआं देकर एलुमिनियम फास्फाइड की गैस का असर प्रभावशाली बनाकर कीड़े-मकौड़ों की समस्याओं को पूर्ण तौर पर हल कर दिया। इस खोज अनुसार गौदामों के कीड़े 24 घंटे तक बिना सांस लिए जीवित रह सकते है और वह कीटनाशक के ज़हर को नहीं सूंघते, परन्तु जब गोदामों में धुआं कर दिया जाए तो वह आग का एहसास होने के कारण तेज़ी से भाग कर सांस लेते हैं, जिससे गैस उनके अंदर चली जाती है और उनका नाश हो जाता है। इस संबंधी सेतिया ने एक यंत्र तैयार किया है, जिसमें 60 प्रतिशत फक्क, 30 प्रतिशत नीम के पत्ते, 10 प्रतिशत गोबर के उपले जलाकर धुआं पाईप द्वारा गोदामों में पहुंचा दिया जाता है। सेतिया द्वारा निकाली गई नई तकनीक प्रयोग की पारबॉइलिंग के बीच चावलों का टोटा भी 2 से 10 प्रतिशत तक कम हो जाता है। चावलों की पॉलिश के दौरान भी चावल कम टूटते हैं। एक अनुमान के अनुसार एक तिहाई के करीब चावल पारबॉइलिंग करके उपयोग किए जाते हैं।