अध्यादेश पर कांग्रेस के रुख को लेकर असमंजस बरकरार 

जब से ‘आप’ ने दिल्ली विधानसभा के बाद पंजाब विधानसभा पर अपना कब्जा जमाया है, तब से वह ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गई है। पंजाब में ‘आप’ की सकराक बनना कांग्रेस के गलत राजनीतिक फैसले के कारण संभव हो पाया जिसे वह अपने-आप को कांग्रेस का विकल्प समझने लगी है। देश में होने वाले हर विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने लगी है। दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसे राजनीतिक लाभ तो नहीं मिला पर कांग्रेस को नुकसान अवश्य हुआ है जिसके चलते ‘आप’ एवं कांग्रेस के बीच की दूरी बढ़ती ही गई है। अध्यादेश के मामले में ‘आप’ नेता कांग्रेस से मिलीभगत होने तक की बात करने लगे हैं जबकिकांग्रेस भाजपा का समर्थन करे, ऐसा संभव नहीं।
दिल्ली के उप-राज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के बीच चल रही तनातनी को लेकर दिल्ली सरकार के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ  केन्द्र सरकार द्वारा अभी लाये गये अध्यादेश जिसे राज्यसभा में पारित होना है, को ‘आप’ सभी विपक्षी दलों के समर्थन से रोकना चाहती है। इस मामले में ‘आप’ को फिलहाल कांग्रेस को छोड़ अधिकांश विपक्षी दलों का समर्थन मिल गया है। कांग्रेस के समर्थन बिना इस अध्यादेश को रोक पाना कतई संभव नहीं है। इस बात को ‘आप’ अच्छी तरह जानती है। यह भी साफ  है कि अध्यादेश के मामले में कांग्रेस कभी भी सत्ता पक्ष का समर्थन नहीं करेगी।
इस तरह के उभरे परिवेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ  एकजुट होकर चुनाव लड़ने की विचारधारा को लेकर पटना में बुलाई गई विपक्षी एकता की बैठक में ‘आप’ शामिल तो हो गई, परन्तु अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस ने साफ  तौर पर इस मामले में समय आने पर उचित निर्णय लेने की बात कह ‘आप’ की इस मांग को फिलहाल ठुकरा दिया। इसका मतलब कतई यह नहीं कि वह भाजपा का साथ दे रही है। इस मामले पर ‘आप’ एवं कांग्रेस में अनर्गल बहसबाज़ी भी हो गई जिसमें भाजपा से सांठगांठ होने का एक दूसरे पर आरोप भी उभरकर सामने आया। बैठक में अन्य दलों ने भी ‘आप’ को समझाने की भरपूर कोशिश की कि यह अवसर फिलहाल इस तरह की चर्चा का नहीं है। जिस मकसद से बैठक बलाई गई है, फिलहाल उसी पर चर्चा किया जाना प्रासंगिक होगा, परन्तु ‘आप’ अध्यादेश के मामले को लेकर इस बैठक में ही समाधान चाह रही थी। ऐसा नहीं होने से प्रेस वार्ता से अपने को अलग रखकर ‘आप’ ने अपनी नाराज़गी व्यक्त कर दी। ऐसा लगता है कि इस बैठक में वह केवल अध्यादेश के मसले पर विरोध जताने वाले निर्णय को लेकर शामिल हुई थी। आज भी ‘आप’ इस बात पर अडिग नज़र आ रही है।  विपक्षी एकता की शिमला में होने वाली अगली बैठक से पूर्व अध्यादेश पर कांग्रेस द्वारा सार्वजनिक तौर पर अपना रुख स्पष्ट करने की बात कर बैठक में शामिल होने की स्थिति को असमंजस में डाल दिया है। शिमला बैठक से पूर्व कांग्रेस अध्यादेश के मामले में अपनी राय दे पाये, ऐसा नहीं लगता। इससे ‘आप’ का शिमला विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होना असंभव लगता। 
लोकसभा चुनाव से पूर्व कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होने है जहां राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। ‘आप’ इन राज्यों में अपना सर्वाधिक प्रत्याशी उतारने की रणनीति बना चुकी है। 

(अदिति)