गुरु का जीवन में सबसे ऊंचा स्थान होता है
यूं तो भारत में हर पूर्णिमा बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण होती है, लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था, इसलिए इस पूर्णिमा को वेदव्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। सबसे पहले वेदों की शिक्षा वेदव्यास ने ही दी थी, इसलिए उन्हें हिंदू धर्म में प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है। आषाढ़ पूर्णिमा को इस कारण से भी गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि वेदव्यास हर हिंदू के गुरु माने जाते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और गुरुओं के प्रति श्रृद्धा व्यक्त करने के साथ-साथ यह दिन गुरु मंत्र लेने का भी खास दिन समझा जाता है। हिंदू धर्म में चाहे आपने औपचारिक शिक्षा प्राप्त की हो या न की हो, लेकिन आपको जीवन में आध्यात्मिक शिक्षा के लिए गुरु दीक्षा लेनी ज़रूरी होती है। समझा जाता है कि बिना गुरु दीक्षा लिए ज्ञान नहीं होता और मोक्ष नहीं मिलता। इसलिए सनातन धर्म में हर व्यक्ति का अपना एक गुरु होता है। आमतौर पर गुरु दीक्षा के लिए आषाढ़ पूर्णिमा को सबसे पवित्र दिन माना जाता है।
इस साल आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई को पड़ रही है। अगर मुहूर्त की नज़र से देखें तो 2 जुलाई को सायं काल 8 बजकर 21 मिनट से शुरु होकर 3 जुलाई को शाम 5 बजकर 8 मिनट तक गुरु पूर्णिमा का मुहूर्त रहेगा। उदया तिथि के आधार पर गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई को मानी जायेगी। अत: जिन लोगों को इस विशेष दिन व्रत रख कर पूजा करनी है, उन्हें 3 जुलाई को यह व्रत रहना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, महानदी जैसी सभी पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य मिलता है। अगर आसपास कोई पवित्र नदी न हो तो सरोवरों में भी स्नान का विधान है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके गुरुओं की पूजा और फिर दान देने का सर्वाधिक महत्व है।
हिंदू धर्म में गुरु की जगह भगवान से भी ऊपर मानी जाती है, इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन अपने गुरुओं के पास जाकर उनका चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए और जो हमारी श्रृद्धा हो, उसके मुताबिक उन्हें दान देना चाहिए। यह दिन भगवान तुल्य वेदव्यास से जुड़ा हुआ है, इसलिए उनकी विशेष पूजा करने का भी विधान है। वेद उपनिषद और पुराणों के रचयिता वेदव्यास को समस्त मानव जाति का भी पहला गुरु माना जाता है। उन्हीं के सम्मान में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन कई हज़ार साल पहले महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों और ऋषि, मुनियों को भागवत पुराण का ज्ञान दिया था।
इस दिन हम जिन गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करते हैं, उनका भी वैसा ही महत्व है। इसलिए छात्रों को इस दिन विशेष रूप से अपने आदर्श गुरुओं के पास जाकर उनके चरण स्पर्श करने चाहिएं और उनसे शिक्षा और जीवन का संस्कार लेना चाहिए। अगर अब शिक्षा गुरु नहीं है या दूसरे शहर में है तो इस दिन उन्हें विशेष रूप से याद करना चाहिए। जिस तरह से हिंदू धर्म में मातृ ऋण और पितृ ऋण होता है, उसी तरह से गुरु ऋण का भी विधान है।
भले दीक्षा लेने के बाद गुरुओं को दक्षिणा दी जाती हो, लेकिन कोई शिष्य जीवन में कभी भी अपने गुरु से उऋण नहीं होता। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों को अपने गुरुओं के पास जाकर उनकी चरण वंदना ज़रूर करनी चाहिए, क्योंकि यह ईमानदार गुरु ही होता है, जो हमें अंधकार से बाहर निकालकर प्रकाश या ज्ञान की ओर ले जाता है। इसीलिए गुरु का जीवन में सबसे ऊंचा स्थान होता है। धार्मिक मान्यता तो इस तरह की भी है कि बिना गुरु किए न तो ईश्वर मिलता है, न मोक्ष और ज्ञान तो मिलता ही नहीं है।
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