बिना सुविधाओं के टोल वसूली अनुचित और अव्यवहारिक 

निश्चित तौर से टोल टैक्स के नाम पर जनता से जमकर पैसा लूटा जा रहा है। देश में सड़कों की दयनीय हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में पहले सुप्रीम कोर्ट एवं अब हाईकोर्ट जम्मू-कश्मीर की टोल पर टिप्पणी जनता के लिए हितकारी तो सरकारों के लिए नसीहत से कम नहीं है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की टिप्पणी का सरकारों पर कितना असर होगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया था कि सरकार को नेशनल हाईवे पर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत चलने वाले टोल बूथों से टैक्स के तौर पर 1.44 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एक बार टिप्पणी की थी कि अगर सड़कें खराब हैं तो इस पर सफर करने वाले टोल टैक्स क्यों दें? आम आदमी इसका खमियाजा क्यों भुगते? सरकार को इसकी भरपाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का असर शायद न तब हुआ था और न अब हो रहा है, क्योंकि खस्ताहाल हाइवे के बावजूद आम जनता टोल टैक्स देने के लिए मजबूर है। टोल टैक्स एक तरह का अप्रत्यक्ष कर है, जो नेशनल और स्टेट हाइवे पर इसलिए लिया जाता है, ताकि सरकार अच्छी सड़कें मुहैया करा सके, लेकिन आए दिन ऐसे समाचार हमें पढ़ने और यात्रा के दौरान देखने को मिलता हैं कि हाइवे जर्जर है, फिर भी टोल टैक्स की वसूली निरन्तर जारी है। टोल टैक्स के मकड़जाल से आम आदमी निकल भी पाएगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि टोल टैक्स घटने के बजाय साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। दूसरा, टोल प्लाज़ा की अव्यवस्थाओं से वाहन चालकों को रोज़ाना जूझना पड़ रहा है। फास्टैग में एडवांस पैसे देने के बावजूद अधिकांश वाहन चालक हाइवे पर चलते समय स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
एक जानकारी के अनुसार देश में लगभग 980 टोल प्लाज़ा नेशनल हाइवे पर चल रहे हैं। वैसे महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक नेशनल हाइवे हैं और इस श्रेणी में राजस्थान तीसरे नंबर पर आता है, लेकिन टोल टैक्स वसूली में राजस्थान सबसे ऊपर है। सबसे अधिक 142 टोल टैक्स प्लाजा राजस्थान में चल रहे हैं। वास्तव में टोल टैक्स प्लाजा का मकसद सड़क निर्माण और रख-रखाव से जुड़ा हुआ है। हाइवे को बेहतर स्थिति में रखना है तो वाहन चालकों से टोल टैक्स वसूला जाता है, ताकि बेहतर और सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित की जा सके। इसके ठीक विपरीत स्थिति यह है कि हाइवे पर टोल टैक्स प्लाजा जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे व्यवस्थाओं की पोल भी खुल रही है। 
टोल टैक्स प्लाज़ा से गुजरना वाहन चालकों के लिए किसी पीड़ा से कम नहीं है। कई बार देखने में आता है कि अधिकांश टोल टैक्स प्लाजा पर आधी लेन अक्सर बंद रहती हैं। फास्टैग के बावजूद टोल कर्मी वाहन को आगे-पीछे कराता है और बटन दबाकर वाहन को पास कराता है। यदि किसी वाहन का फास्टैग सही से काम नहीं कर रहा तो पीछे खड़े वाहन चालक परेशान होते हैं। इस व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया जा रहा। वैसे, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के नियम के मुताबिक अगर कोई गाड़ी 10 सेकेंड से अधिक तक टोल टैक्स की कतार में फंसी रहती है तो उसे टोल टैक्स का भुगतान किए बिना जाने दिया जाना चाहिए, लेकिन ऐसे कितने उदाहरण हैं कि जब ऐसे नियम के तहत किसी गाड़ी से टोल टैक्स न वसूला गया हो? पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि अब फास्टैग से आगे बढ़कर सरकार ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम तकनीक से टोल टैक्स वसूली का प्लान बना रही है। इस सिस्टम की मदद से टोल रोड पर वाहनों की आवाजाही को ट्रैक किया जाता है और हाइवे पर यात्रा की दूरी के आधार पर टोल टैक्स कट जाता है, लेकिन यह सिस्टम पूर्ण रूप से कब लागू होगा, इससे जनता को क्या वाकई राहत मिलेगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। सरकार ने पिछले कुछ सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी भरकम निवेश किया है। नए-नए हाइवे बनाए जा रहे हैं। एक्सप्रेस-वे बनाए जा रहे हैं। देश की प्रगति के लिए यह एक प्रशंसनीय प्रयास है, लेकिन टोल टैक्स के बहाने जनता की जेब से पैसा निकालना कहां तक उचित है?
 अब जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि अगर सड़कें टूटी हुईं हो तो टोल वसूलना अनुचित होगा। अदालत ने नैशनल हाइवे-44 पर स्थित दो टोल प्लाज़ाओं पर टोल शुल्क में 80 फीसदी कटौती का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जब तक सड़क निर्माण पूरा नहीं होता, तब तक शुल्क में कटौती रहेगी। अदालत के मुताबिक, टोल शुल्क का मूल सिद्धांत है कि उपयोगकर्ताओं को एक सुचारू, सुरक्षित और अच्छी तरह से रखरखाव वाली सड़क के बदले शुल्क देना चाहिए। कोर्ट ने 25 फरवरी को दिए अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग की स्थिति खराब है, जिससे टोल वसूली अनुचित और अव्यवहारिक हो गई है। खराब सड़क पर टोल लेना जनता के साथ अन्याय है। मूल सिद्धांत यह है कि टोल शुल्क सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए एक प्रकार का मुआवज़ा होना चाहिए, जिसके बदले में उन्हें एक सुचारू, सुरक्षित और अच्छी तरह से रख-रखाव वाली सड़क मिले। हाईकोर्ट का यह फैसला आम जनता के लिए बेहद अहम है क्योंकि इससे उनका सीधा सरोकार है। बहरहाल, अप्रत्यक्ष रूप से वसूले जा रहे इस टैक्स को लेकर सरकार को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। सरकार को कुछ नियम या नियमों के अनुपालना टोल प्लाज़ा के लिए भी सुनिश्चित करना चाहिए, जिससे टोल टैक्स देने वालों को परेशानी न हो। 

#बिना सुविधाओं के टोल वसूली अनुचित और अव्यवहारिक