जीएसटी वसूली बढ़ी : केंद्र को मिली मलाई, जनता को महंगाई

जून 2023 में जीएसटी वसूली पिछले महीने की तुलना में 2.80 बढ़कर 1,61,497 करोड़ रुपये हो गई, जबकि मई में यह 1,57,090 करोड़ रुपये थी। इस तरह देखें तो यह लगातार 7वां ऐसा महीना है जब जीएसटी वसूली 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हुई है, जिसमें अप्रैल 2023 में तो वसूली का रिकॉर्ड 1.87 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। यही नहीं अगर विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले दिनों में भी ऐसे ही उत्साहभरी जीएसटी वसूली जारी रहेगी। इंफ्रा रिसर्च की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का मानना है कि साल 2023-24 के बाकी महीनों में भी जीएसटी की वसूली 1.55 से 1.65 लाख करोड़ रुपये के बीच में रहेगी। निश्चित रूप से यह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद सुखद बात है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी यह अच्छा है। 
जहां तक लगातार बढ़ रही जीएसटी वसूली का सवाल है तो इसके बड़े ठोस कारण है। भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की उन कुछ गिनी चुनी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक है, जहां मांग और खपत दोनों लगातार न सिर्फ  बनी हुई हैं बल्कि अगले कई सालों तक ये बनी रहेंगी। सेवा और विनिर्माण के क्षेत्र में भी तेज़ी का माहौल है और आने वाले दिनों में भी यह ऐसे ही जारी रहेगा। जीएसटी वसूली के बेहतर होने में एक बड़ा कारण यह भी है कि अब लगातार ई-इनवायसिंग में बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे खुलापन और पारदर्शिता बढ़ रही है। साथ ही अगर कहा जाए कि नई पीढ़ी ने ऑनलाइन खरीदारी को एक तूफान में बदल दिया है, तो भी इसमें कोई अतिश्योक्ति न होगी।
 इसमें कोई दो राय नहीं कि जीएसटी के कारण राज्यों के बड़े पैमाने पर टैक्स केंद्र सरकार के खाते में जाते हैं और फिर केंद्र सरकार उन्हें उनकी तमाम कसौटियों के अनुरूप टैक्स में हिस्सेदारी देती है। हालांकि राज्यों के पास भी जीएसटी के बावजूद कई तरह की वसूली की सुविधा है, लेकिन राज्यों और केंद्र के बीच लगातार तनाव जारी है। 
इस तनाव के पीछे एक कारण यह भी है कि हर राज्य ने अपने खर्च ज़रूरत से ज्यादा बढ़ा लिए हैं। इसलिए वह हर समय बेचैन रहता है कि केंद्र से उसे ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूली में से हिस्सेदारी मिले। जहां तक टैक्स की बात है तो अगर पिछले एक साल के आंकड़ों को देखें तो सेंट्रल जीएसटी और राज्यों की जीएसटी में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है। उदाहरण के लिए जून माह की वसूली को ही देख लें, तो जहां केंद्र जीएसटी वसूली 36,224 करोड़ रुपये थी, वहीं राज्यों की जीएसटी वसूली 30,269 करोड़ रुपये थी। नियमित निपटान के बाद जून में केंद्र और राज्यों का कुल राजस्व केंद्रीय जीएसटी के लिए 67,237 करोड़ रुपये था और राज्यों के लिए 68,561 करोड़ रुपये था। 
अगर सरकारों के वक्तव्यों के हिसाब से देखें तो सरकारें यही कहती हैं कि जीएसटी के तहत देश के उपभोक्ताओं को कम कीमत पर चीजें उपलब्ध होती हैं। उन्हें जहां पहले कई तरह के टैक्स देने पड़ते थे, वे अब नहीं देने पड़ते, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। वास्तव में उपभोक्ता को इस पूरी टैक्स वसूली से फायदा नहीं होता। 
अगर वाकई जीएसटी का फायदा आम उपभोक्ताओं को होता, तो पिछले एक साल के भीतर यह जो छिपी हुई महंगाई है, वह देश के आम लोगों का इतना बुरा हाल न करती। भले भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास कहें कि भारत में 5 प्रतिशत से नीचे मुद्रास्फीति की दर को रखकर महंगाई पर लगाम लगाने का चमत्कारिक काम किया है, लेकिन व्यवहार में सच्चाई यह है कि आम उपभोक्ता मुद्रास्फीति के आंकड़े और उपभोक्ता सूचकांक का प्रतिशत नहीं देखता। वह तो सीधे तौर पर देखता है कि जो अरहर की दाल अभी तीन महीने पहले तक 105 रुपये से लेकर 115 रुपये किलो तक बिकती थी। आखिर ऐसा क्या हुआ कि वह अरहर की दाल महानगरों में 170 से 180 रुपये के तक पहुंच गई? आखिर अरहर के दाल का इस तरह इतना महंगा होने का तर्क क्या है? 
क्या पिछले साल अरहर का उत्पादन उसके पिछले साल के मुकाबले कम हुआ था? जवाब है नहीं। अगर वाकई इसके पीछे उत्पादन में कमी है, तो क्यों नहीं सरकार अरहर की दाल का बड़े पैमाने पर आयात कर लेती? क्योंकि दुनिया के दर्जनों ऐसे देश हैं जो गिरी हुई कीमतों पर अरहर की दाल बेचना चाहते हैं। म्यांमार और ऑस्ट्रेलिया जो भारत में अरहर दाल के बड़े सप्लायर हैं, उनके यहां अरहर की पैदावार में न कमी आयी है और न ही भारत सरकार के पास आयात का खर्चा उठाने की दिक्कत है। सरकार अगर वास्तव में उपभोक्ताओं को इस जीएसटी से कोई फायदा देना चाहती है तो उन चीज़ों की आपूर्ति क्यों नहीं बढ़ाती, जो  कुछ महीनों में अचानक बहुत महंगी हो गई हैं? बड़ी बात यह भी है कि जीएसटी वसूली में आम लोगों की भूमिका सबसे बड़ी है। करीब 64 फीसदी जीएसटी की वसूली आम असंगठित क्षेत्र में कामकाज करने वाले लोगों के ज़रिये आता है। कहने का मतलब यह है कि यह जीएसटी अप्रत्यक्ष टैक्स के रूप में सरकार के पास भरभर आ रहा है, लेकिन इसकी भरपायी आम उपभोक्ता कर रहा है। इसलिए इस बढ़े हुए जीएसटी वसूली से जहां केंद्र और अंतत: राज्यों सरकारों को मलाई मिली है, वहीं आम उपभोक्ता को महंगाई मिली है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर