अकाली-भाजपा गठबंधन की चर्चा

विगत दिवस शिरोमणि अकाली दल तथा भाजपा के बीच पुन: चुनावी समझौता होने की मीडिया में बेहद चर्चा रही है। मीडिया में तो यहां तक प्रकाशित हो गया था कि दोनों पार्टियों के मध्य 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों तथा 2027 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए सीटों के विभाजन संबंधी भी लगभग सहमति बन गई है। यहां तक कहा गया कि लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा 5 तथा अकाली दल 8 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। इसी तरह 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों संबंधी भी यह कहा गया कि बनी सहमति के अनुसार, भाजपा 42 सीटों तथा अकाली दल 75 सीटों पर चुनाव लड़ेगा।
कई दिनों तक यह चर्चा जारी रही परन्तु अब दोनों पार्टियों के नेताओं ने शिरोमणि अकाली दल तथा भाजपा में किसी भी समझौते की सम्भावनाओं से स्पष्ट इन्कार कर दिया है। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष स. सुखबीर सिंह बादल ने स्पष्ट किया था कि उनकी भाजपा हाईकमान के साथ समझौते संबंधी कोई बातचीत नहीं चल रही। ऐसे अनुमान मीडिया द्वारा ही लगाये जा रहे हैं। उनका बसपा के साथ गठबंधन है तथा लोकसभा चुनाव भी उनकी पार्टी बसपा के साथ मिल कर ही लड़ेगी। चंडीगढ़ में विगत दिवस शिरोमणि अकाली दल के ज़िला अध्यक्षों, हलका प्रभारी तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं की बैठक के बाद स. दलजीत सिंह चीमा ने भी यही कहा है कि बैठक में शिरोमणि अकाली दल तथा भाजपा के बीच समझौते संबंधी किसी भी प्रकार की कोई बात नहीं हुई, अपितु पंजाब की मौजूदा राजनीतिक  स्थिति में लोगों को दरपेश समस्याओं तथा आम आदमी पार्टी द्वारा अलग-अलग वर्गों के साथ किये जा रहे अत्याचारों संबंधी ज़रूर चर्चा हुई है। इस दौरान पंजाब भाजपा के प्रभारी विजय रूपाणी ने भी कहा है कि उनकी पार्टी की शिरोमणि अकाली दल के साथ समझौते संबंधी कोई बातचीत नहीं चल रही है तथा वह प्रदेश की सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। पंजाब भाजपा के नव-नियुक्त अध्यक्ष श्री सुनील जाखड़ ने भी यह कहा है कि उन्हें पार्टी हाईकमान द्वारा प्रदेश की सभी 13 लोकसभा सीटों तथा विधानसभा की 117 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयारी करने हेतु कहा गया है।
दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के सामने आए ब्यानों से यह स्पष्ट हो गया है कि अभी शिरोमणि अकाली दल तथा भाजपा के बीच कोई समझौता नहीं हो रहा। चाहे शिरोमणि अकाली दल तथा भाजपा का प्रदेश में 1996 से लेकर 2020 तक राजनीतिक समझौता बरकरार रहा है, जो तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध हुए किसान आन्दोलन के कारण पैदा हुए राजनीतिक हालात में टूट गया था। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने अलग-अलग तौर पर लड़े थे परन्तु दोनों को कोई ज्यादा बड़ी उपलब्धि प्राप्त नहीं हुई। इसके बावजूद इस समय भाजपा की इच्छा यह है कि वह पंजाब के शहरों तथा कस्बों से निकल कर ग्रामीण क्षेत्रों तक अपनी पार्टी का विस्तार करे। इस उद्देश्य के लिए उनके द्वारा सुनील जाखड़ को पंजाब भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है। क्योंकि भाजपा की हाईकमान समझती है कि पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाने में वह सफल होंगे। दूसरी तरफ भाजपा हाईकमान को अकाली दल के मौजूदा नेतृत्व पर यह विश्वास नहीं है कि यदि उनके साथ राजनीतिक समझौता होता है तो वह सिख भाईचारे तथा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के पहले की भांति उन्हें वोट डलवा सकेंगे। क्योंकि भाजपा यह समझती है कि अकाली दल राजनीतिक रूप से अब पहले से कमज़ोर हो चुका है। इसलिए जब तक शिरोमणि अकाली दल अपना सार्वजनिक आधार सिख भाईचारे, किसानों तथा समूचे तौर पर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में मज़बूत बनाने में सफल नहीं होता, तब तक भाजपा जैसी पार्टी की ओर से उनकी तरफ हाथ बढ़ाये जाने की अधिक सम्भावना नहीं है। फिर भी इस वर्ष के अंत में राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिणाम बहुत कुछ तय करेंगे। 
यह परिणाम जहां देश की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करेंगे, वहीं पंजाब के राजनीतिक समीकरणों पर भी विशेष रूप से प्रभाव डालेंगे। यदि उपरोक्त प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की स्थिति ज्यादा बेहतर न रही, तो वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शिरोमणि अकाली दल सहित अपने सभी पुराने भागीदारों को एक बार फिर से  साथ लेने का प्रयास कर सकती है, परन्तु मौजूदा समय में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि दोनों पार्टियों के मध्य निकट भविष्य में कोई गठबंधन होने वाला नहीं है।