भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावी दंगल के लिए तैयार

महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल और 2024 के लोकसभा चुनावी दंगल सफलता पूर्वक लड़ने तथा अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए भाजपा की सैन्य-शैली की कमान तैयार है, वह सम्पूर्ण विपक्ष पर हमला बोलने को तत्पर है और रास्ते में जो भी आये उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने की प्रक्रिया तेज कर दी है, जो भारतीय लोकतंत्र के अस्तित्व की चिंताओं के बीच राष्ट्रीय परिदृश्य को रेखांकित करता है। संवैधानिक लोकतंत्र के लिए भारत में जो गर्व की भावना होनी चाहिए, वह स्वायत्त संस्थानों के कड़े विनियमन के साथ बहुसंख्यक हिंदू राष्ट्र और कानून के शासन के लिए कानूनों को अनुकूल बनाने की योजनाओं के कारण लगातार कम हो रही है।
देश भर में जो कुछ भी होता है वह दयनीय स्तर तक पहुंच गया है। जो भी सत्ता में हैं और जो स्वायत्त संस्थान भी हैं, जिसमें शैक्षणिक संस्थान भी शामिल हैं, अर्थात कुल मिलाकर पूरी सरकार में जो अधिकारी हैं, वे पूरी तरह उन सभी चीजों का बचाव करने में मुस्तैद हैं जो कुछ भी गलत-सही इस देश में हो रहा है। बहुसंख्यवादी सरकार, जो कोई कम अधिनायकवादी नहीं है, के अंतर्निहित अनुशासन के अलावा, में यह ध्वनित होता है कि शासन व्यवस्था या लोकतांत्रिक अभ्यास में एक अनुमति योग्य उदारवादी भावना का भी अभाव है।
मणिपुर एक उच्चतम स्तर पर उदासीनता का एक उत्कृष्ट उदाहरण बन गया है, जबकि रणनीतिगत रूप से महत्वपूर्ण इस पूर्वोत्तर राज्य में जातीय झगड़ों के कारण अनेक लोगों की जानें चली गयी हैं। यह सबसे विशिष्ट स्थिति थी जब प्रधानमंत्री सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र की अखंडता और इसके अधिक सामंजस्यपूर्ण भविष्य को संरक्षित करने के लिए व्यापक स्तर पर परामर्श के लिए पहल कर सकते थे, यदि आवश्यक होता तो एक सर्वदलीय प्रतिबद्धता भी थी, जिससे कि सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इस क्षेत्र की एकता तथा अधिक सौहार्द्रपूर्ण भविष्य को संरक्षित रखा जा सकता था। लेकिन तब उसका मतलब यह होता कि मोदी कांग्रेस और अन्य पार्टियों के लिए कुछ जमीन छोड़ते। इसके अलावा दूसरी तरफ 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 10 साल के शासन पर संयुक्त विपक्षी हमले के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश कर रहे विपक्षी राजनीतिक दलों के बीच अधिक चल रहे एकता के प्रयासों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जिसके सत्तारूढ़ भाजपा को अस्थिर करने की संभावना बलवती हो गयी है। वास्तव में वर्तमान में प्रधानमंत्री की प्रचार शैली में इसे और हाल के विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में भाजपा शासन को समाप्त करने वाले अदृश्य सत्ता विरोधी कारक को नज़रअंदाज नहीं किया जा रहा है।
इस प्रकार चुनावी और नैतिक रूप से प्रधानमंत्री चाहते हैं कि भाजपा सर्वोच्च शक्ति बरकरार रहे और वह भविष्य में भी शासन करती रहे। इसलिए उन सभी गैर-भाजपा दलों पर भ्रष्टाचार का तमाचा मारा गया है जो उनकी पार्टी के खिलाफ एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं। इसी को प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी भाषा में जोरदार ढंग से कहा कि कांग्रेस के लिए ‘भ्रष्टाचार सबसे बड़ी विचारधारा है’, चाहे इसका मतलब कुछ भी हो।
प्रधानमंत्री के पास बुनियादी ढांचे (उच्च गति वंदे भारत रेल के साथ) जैसे क्षेत्रों में उपलब्धियों के माध्यम से दिखाने के लिए बहुत कुछ है, भले ही उनकी सरकार के रेल मंत्री ने यह देखा हो कि बालासोरट्रिपल ट्रेन दुर्घटना के लिए सीबीआई ने उसके ही मंत्रालय के कर्मचारियों के इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया जो उड़ीसा में 2 जून, 2023 को हुई थी और जिसमें 294 लोगों की मौत हो गयी थी जिसने भारतीय रेल के भीषणतम दुर्घटनाओं में जान-माल के नुकसान का एक रिकार्ड बनाया। 
भारत की लद्दाख सीमा पर कुछ परेशान करने वाले घटनाक्रम और अरुणाचल प्रदेश में तवांग की ओर चीन के कदमों के बावजूद, प्रधानमंत्री अपनी जी-20 की अध्यक्षता बनाये रखने में कामयाब रहे हैं, लेकिन उनकी चतुराई ने भारत के करीबी रूसी मित्र पुतिन द्वारा शुरू किए गये यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन के लोगों पर हो रही क्रूरता कम नहीं की है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर यूक्रेन युद्ध के विनाशकारी प्रभाव के कारण मंदी आयी और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नियम बदले गये जिसमें विश्व को (भारत को छोड़कर) इससे उबरने में कुछ साल लगेंगे, भले ही आने वाले महीनों में कुछ संघर्ष विराम हो जाये।
अब राष्ट्रीय परिदृश्य पर लौटते हैं जहां मोदी सरकार को शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी जैसी पार्टियों के टूटने से बहुत प्रोत्साहन मिला है, जिसका एक हिस्सा अजीत पवार के नेतृत्व में विभाजित शिवसेना और भाजपा दोनों के साथ गठबंधन में है तथा महाराष्ट्र सरकार में शामिल है। विधानसभा अध्यक्ष ने अब तक महाराष्ट्र मामले पर शीर्ष अदालत के फैसले के संदर्भ में सत्तारूढ़ व्यवस्था की ताकत का पता लगाने के लिए कार्रवाई नहीं की है। इस साल छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, जिनमें से दो कांग्रेस के अधीन हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों पर एक निर्णायक प्रभाव के साथ अपनी पकड़ फिर से हासिल करने के प्रयासों में भाजपा नेताओं के लिए ये राज्य तत्काल राजनीतिक केन्द्र बिन्दु बन गये हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, जो देश से लिए एक प्रशंसनीय और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पार्टी भी रही थी परन्तु पिछले कुछ समय से जर्जर स्थिति में पहुंच गयी थी, अब जर्जर स्थिति में नहीं है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में उसकी सापेक्ष कमजोरियों को देखते हुए यह सुनिश्चित नहीं कहा जा सकता कि वह 2024 का चुनावी युद्ध सफलतापूर्वक लड़ते हुए जीत हासिल कर लेगी, जब तक कि वह क्षेत्रीय दलों के प्रति एक उदार रुख विकसित नहीं करती। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों द्वारा आम तौर पर एक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक आख्यान विकसित किया जाना बाकी है जिसके आधार पर इस प्रारंभिक चरण में, तथा बाद में अधिक कठिन सीट-बंटवारे के चरण में, एक साथ जाने के लिए वे सहमत हों।
उम्मीद है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे गैर-राजनीतिक और चुनावी कथानक पर काम करने के लिए संभवत: इस महीने के मध्य में बेंगलुरु में होने वाली अंतर-पार्टी चर्चाओं का विवेकपूर्ण मार्गदर्शन करेंगे। इस बीच मध्य प्रदेश में फिर से सत्ता हासिल करने के प्रयास में तथा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वर्तमान पकड़ बनाये रखने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अच्छी तरह से एकजुट करने के लिए कुछ अच्छे कदम उठाये हैं। (संवाद)