मणिपुर का घटनाक्रम त्याग-पत्र दें मुख्यमंत्री

संसद का मानसून सत्र मणिपुर के भयावह घटनाक्रम में ही उलझ गया है। एकत्र हुए विपक्षी दल इस मामले पर पूरी बहस करवाना चाहते हैं, वहीं सरकार की नीति टालमटोल वाली लगती है। इस संबंधी कांग्रेस प्रधान तथा राज्य सभा सदस्य मल्लिकार्जुन खड़गे का यह एतराज पूरी तरह से जायज़ है कि जब सत्र चल रहा है, तब इस मामले की क्रूरता के बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सदन में विचार रखने की बजाय बाहर इस संबंध में बयान दे रहे हैं, जबकि उनका फर्ज इस घटनाक्रम संबंधी सदन में बोलने का बनता था। इसके साथ ही विपक्ष इस संबंध में लोकसभा के नियम 267 के अंतर्गत संसद में बहस करवाना चाहता है, जबकि सरकार इस मुद्दे पर संक्षिप्त-सी चर्चा करवाना चाहती है। हम विपक्ष की इस राय से सहमत हैं कि प्रधानमंत्री को इस संबंधी संसद में बयान देना चाहिए और इसके बारे में अच्छी तरह से बहस भी की जानी चाहिए।
सत्तारूढ़ पक्ष अपने बहुमत के बलबूते पर इस घटनाक्रम को दूसरे राज्यों की घटनाओं से जोड़ना चाहता है। ऐसा करके वह इस घटना की गम्भीरता को घटाने के यत्न में है, क्योंकि इसकी चर्चा देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक पहुंच गई है। मई के शुरू से ही जिस तरह मणिपुर के दो कबीलों के बीच सख्त टकराव चल रहा है, और अब तक जितना नुकसान हो चुका है, जितने लोग मारे गये हैं और जिस प्रकार का माहौल बना नज़र आता है, उससे यह अंदेशा लगाया जा सकता है कि वहां की राज्य सरकार अमन कानून को कायम रखने में पूरी तरह विफल सिद्ध हुई है। इस अवधि के दौरान स्कूल तथा चर्च जलाए गए। भीड़ों द्वारा आपसी टकराव में गोलियां चलाई गईं, पुलिस कम्पनियों से जबरन हथियार लूट लिए गए और दूसरे कबीलों के विधायकों का घेराव किया गया। इससे भी बढ़ कर जिस प्रकार दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके उनके साथ दरिंदगी की गई जिसकी वीडियो अब लगभग डेढ़ महीने बाद सामने आने से माहौल और भी खराब हो गया है, वहीं प्रदेश का मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह यह मानता है कि इस विवाद में अनेक ही क्रूरतापूर्ण घटनाएं घटित हुई हैं। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री से त्याग-पत्र मांगना स्वाभाविक है। अभी तक इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार का रवैया अड़ियल दिखाई देता है, परन्तु यह बात स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री स्थिति को संभालने में विफल सिद्ध हुआ है। 
उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। यदि भारतीय जनता पार्टी घटित इस घृणित घटनाक्रम के संबंध में सही दिशा में कोई कदम नहीं उठाती तो नि:संदेह केन्द्र सरकार ऐसा रवैया धारण करके अपने संवैधानिक कर्त्तव्यों को दृष्टिविगत कर रही होगी, जबकि मुख्यमंत्री का त्याग-पत्र काफी समय पहले ही ले लिया जाना चाहिए था। इस संबंध में केन्द्र की मोदी सरकार यदि अपना रवैया नहीं बदलती तो उसकी छवि को बड़ा आघात पहुंचेगा। हमारा यह भी मानना है कि आगामी समय में वह इसी कारण इस मामले में रक्षात्मक नीति पर ही चलते हुए दिखाई देगी।

 —बरजिन्दर सिंह हमदर्द