खाद्य पदार्थों की कमी का संकट

 

केन्द्र सरकार द्वारा देश भर में गेहूं और चावल की कीमतों में एकाएक आए उछाल और कृत्रिम कमी जैसी स्थितियों पर अंकुश लगाने के लिए केन्द्रीय भंडारों से बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल जारी करने की घोषणा एक ओर जहां जन-साधारण के लिए सुखद संदेश बनती है, वहीं इन दोनों पदार्थों की कीमतों में विगत कुछ समय से हो रही निरन्तर वृद्धि का आभास भी कराती है।  देश में गेहूं, गेहूं के आटा और चावल की कमी और इस कारण इन पदार्थों के दाम बढ़ने के चिन्ताजनक समाचार विगत कुछ समय से निरन्तर समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनते चला आ रहे हैं। इन पदार्थों की कीमतों और कमी का असर अन्य वस्तुओं की स्थिति, उपलब्धता और इनकी कीमतों पर भी बदस्तूर पड़ रहा था। गेहूं और धान को लेकर देश को आत्म-निर्भर बनाने वाले राज्य पंजाब में भी इन पदार्थों की कमी और इनके दामों में भारी वृद्धि होने के समाचारों ने नि:संदेह देश के समूचे राजनीतिक एवं सामाजिक वर्गों के साथ, सत्ता पक्ष को भी चौंकाया तो स्थितियों की गम्भीरता का पता चला। देश और खासकर उत्तर भारत के कुछ राज्यों में दालों, खाद्यान्न पदार्थों, मसालों, सब्ज़ियों और फलों आदि की कीमतों में निरन्तर वृद्धि होती चली गई है। टमाटर की अप्रत्याशित कमी और बेतहाशा हुई मूल्य-वृद्धि ने तो जैसे दशकों का रिकार्ड तोड़ा है। अब प्याज़ की कमी उत्पन्न होने के समाचार भी एक ओर जहां चिन्ता उपजाने के लिए काफी हैं, वहीं इसका अनुचित एवं अवैध भंडारण कर लिये जाने की आशंकाएं भी प्रबल होते प्रतीत हुई हैं।
नि:सन्देह यह स्थिति चिन्ताजनक है। सामूहिक रूप से देश में गेहूं और चावल की उपलब्धता को लेकर तत्काल कोई विकट समस्या अथवा संकट नहीं है। खास तौर पर पंजाब के किसानों के सतत् श्रम और परिश्रम की बदौलत प्रदेश में प्रत्येक वर्ष गेहूं और धान का रिकार्ड उत्पादन होता है, किन्तु खाद्यान्न के भंडारण की त्रुटिपूर्ण व्यवस्था और दोषपूर्ण वितरण प्रणाली के कारण पंजाब जैसे प्रांत में भी गेहूं, चावल और आटे की कमी और महंगाई अक्सर सामने आती रहती है। वर्तमान में गेहूं और चावल की कमी और मूल्य-वृद्धि का यह संकट नि:संदेह राष्ट्र-व्यापी है। इसी कारण इस पर पार पाने के लिए केन्द्र सरकार ने 50 लाख टन गेहूं और 25 लाख टन चावल अतिरिक्त रूप से मंडियों एवं बाज़ार में उतारने का फैसला किया है। सरकार इससे पूर्व भी जून मास के आखिरी सप्ताह में 15 लाख टन गेहूं और 5 लाख टन चावल निर्धारित कोटे से अतिरिक्त जारी कर चुकी है।  सरकार ने खुले बाज़ार की बिक्री योजना के तहत चावल की कीमतों में  दो रुपये प्रति किलोग्राम की कमी भी कर दी है। सरकार ने गेहूं आयात शुल्क में कमी करने के धरातल पर भी सार्थक विचार किये जाने का आश्वासन दिया है। गेहूं और चावल के इस अतिरिक्त भंडारण की भारतीय खाद्य निगम आदि संस्थाओं की ओर से आटा चक्कियों और अन्य थोक विक्रेताओं को सप्लाई शुरू भी कर दी गई है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह कमी और मूल्य-वृद्धि का यह संकट, प्राकृतिक रूप से नहीं है। हालांकि स्वयं सरकार ने यह स्वीकार किया है कि देश के कुछ भागों में अन्न पदार्थों की कमी का संकट मौजूद है। सरकार ने यह भी माना है कि इन दोनों पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का रुझान बाज़ार में दिखाई दिया है। केन्द्रीय रिज़र्व बैंक ने भी कहा है कि पूर्व में मौजूद महंगाई के दृष्टिगत, वर्तमान में गेहूं और चावल की कीमतों में आए इस अप्रत्याशित उछाल से घोषित की जाने वाली परचून महंगाई की दर 6.7 प्रतिशत तक हो जाने की आशंका है। जून मास में खुदरा महंगाई की यह दर 4.81 प्रतिशत थी। बैंक के अनुसार खुदरा महंगाई की दर में वृद्धि का यह रुझान आगे भी बढ़ते रहने की बड़ी सम्भावना है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि गेहूं और चावल सहित दालों और फल-सब्ज़ियों के मूल्यों में वृद्धि को लेकर कुछ बड़े व्यापारियों की भंडारण-वृत्ति भी उत्तरदायी है। इनका यह भी तर्क है कि भण्डारण और कीमतों में वृद्धि का यह रुझान कोरोना काल से लेकर सतत् जारी है, हालांकि उन्होंने इसे एक विश्व-व्यापी समस्या करार दिया है। सैकड़ों मील दूर लड़े जा रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी देश की इस समस्या को गम्भीर बनाया है। हम समझते हैं कि नि:संदेह इस समस्या के पीछे व्यापारी वर्ग और बड़ी कम्पनियों की अधिकाधिक मुनाफा कमाने की वृत्ति बड़ी ज़िम्मेदार हो सकती है किन्तु आम आदमी का सरोकार केवल उसके जीवन-यापन हेतु आवश्यक पदार्थों एवं वस्तुओं के सही समय और सही मूल्यों पर उपलब्ध होने पर निर्भर होता है। नि:संदेह किसी भी लोकतंत्र में सरकारों के लिए इस ज़िम्मेदारी को वहन करना ज़रूरी होता है। सरकारों को हर हालत मूल्य-वृद्धि और कमी की इस फांस से छुटकारा दिलाया जाना चाहिए।