चंद्रयान-3 पर पूरी दुनिया की निगाहें

देश विदेश की अरबों शुभकामनाओं के बीच अगर सब कुछ अनुकूल रहा तो आज यानी 23 अगस्त 2023 को भारतीय समय के मुताबिक शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय सतह पर कदम रखेगा। यूं तो हमारे लिए यह ऐतिहासिक घटना है, लेकिन जिस तरह 20 अगस्त, 2023 को भारतीय समय के मुताबिक दोपहर बाद रूस के मून मिशन लूना-25 के असफल होने की खबर आई, रूस की स्पेस एजेंसी रॉस्कॉस्मॉस जैसे ही दुनिया को बताया कि 19 अगस्त की शाम 05:27 बजे लूना-25 स्पेस क्राफ्ट का उससे संपर्क टूट गया था, क्योंकि प्री-लैंडिंग ऑर्बिट बदलने के लिए लूना-25 के फ्लाइट प्रोग्राम के तहत जैसे ही उसे तय कक्षा में लैंड कराने हेतु  (18 किमी 100 किमी) कमांड दिया गया, वैसे ही लूना-25 पर एमरजेंसी जैसी स्थिति बन गई क्योंकि स्पेशक्रॉफ्ट तय पैरामीटर के मुताबिक थ्रस्टर फायर नहीं कर पाया, और इस तरह गलत ट्रैक पर चले जाने के कारण मिशन इतने पास जाकर भी फेल हो गया।
इस खबर को सुनते ही पूरी दुनिया का सारा ध्यान अचानक चंद्रयान-3 पर शिफ्ट हो गया है। इस कारण न सिर्फ इसरो की बल्कि एक आम भारतीय के दिलों की धड़कनें भी बहुत तेज़ धड़कने लगी हैं। यूं तो इसरो ही नहीं, वे तमाम वैज्ञानिक, जिन्होंने चंद्रयान-3 की सारी प्रोसेसिंग में सहयोग किया है, वो भी दावे से कह रहे हैं कि चंद्रयान-3 का चांद की सतह पर सुरक्षित उतरना हर हाल में तय है। अपनी लांचिंग के बाद से चंद्रयान-3 जिस तरह 100 प्रतिशत कार्य कर रहा है, यह भी हमारे इस आत्मविश्वास का ठोस आधार है, लेकिन जब तक यान लैंड नहीं हो जाता, इस उम्मीद को 99.99 प्रतिशत ही सुरक्षित माना जाएगा। ऐसे में .01 प्रतिशत की भी जो यह सैद्धांतिक आशंका या अविश्वास है, उसने इसरो की समूचे वैज्ञानिक बिरादरी की और सभी भारतीयों की नींदें उड़ा दी हैं। हालांकि अगर आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग में कोई तकनीकी समस्या आती है, तो इसरो के पास इसे आगामी 27 अगस्त को दोबारा लैंडिंग कराने का म़ौका होगा। लेकिन तमाम सहूलियतों और अतिरिक्त सजगताओं के बावजूद यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज इसरो की अब तक के इतिहास की सबसे कठिन परीक्षा है।
चूंकि अभी तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कोई भी स्पेस मिशन लैंड नहीं कर सका है, अत: चंद्रयान-3 ही ऐसा करने वाला पहला यान होगा। भले अमरीका, रूस और चीन के मिशन चांद पर उतर चुके हैं, लेकिन ये सब दूसरी तरफ उतरे हैं। हो सकता है यह महज संयोग हो या फिर जैसा कि कुछ लोग इसे रूस की ‘मून रेस’ कह रहे थे, वह सही ही हो क्योंकि रूस बिल्कुल अप्रत्याशित ढंग से जिस तरह अचानक 11 अगस्त, 2023 को चांद मिशन लूना-25 को सोयूज 2-1बी रॉकेट के जरिए अपने वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से लांच करता है और आनन फानन में उसका स्पेसक्राफ्ट 16 अगस्त, 2023 को दोपहर 2:27 बजे चांद की 100 किलोमीटर की ऑर्बिट में पहुंच भी जाता है, जिसे 21 अगस्त 2023 को चंद्रमा के साउथ पोल पर ही लैंड करना था, जो कि चंद्रयान-3 के प्रस्तावित स्थल से 100 किलोमीटर के आसपास ही है, उसे देखकर यह आशंका तो बन ही रही है कि हो सकता है, यह रूस की मून रेस का हिस्सा ही हो। संभव है, रूस हमसे दो दिन पहले चांद के बोगुस्लाव्सकी स्थल के पास उतरकर, ‘जो मारे वही मीर बनना चाह रहा हो क्योंकि लूना-24 के 47 वर्षों बाद इतनी हड़बड़ी में लूना-25 लांच करने का औचित्य तार्किक नहीं लग रहा। दरअसल चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार मून मिशन उतारने का श्रेय लेने की रूस की कहीं न कहीं हड़बड़ी तो लगती ही है।
बहरहाल जो भी हो, अब लूना-25 इतिहास बन गया है, जबकि 14 जुलाई 2023 को लांच किया गया चंद्रयान-3 इतिहास रचने के हर पल नज़दीक पहुंच रहा है। चंद्रयान-3 के सफल होने की उम्मीदें इसलिए भी बहुत विश्वसनीय हैं, क्योंकि इस अभियान की शुरुआत से अब तक यानी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक चंद्रयान-3 मिशन में अंशमात्र की भी कोई गड़बड़ी नहीं हुई। सब कुछ न सिर्फ अनुमान और आंकलन के मुताबिक चल रहा है, बल्कि 100 प्रतिशत नतीजे के साथ चल रहा है। इसलिए लगता है कि अंतिम 15 मिनट में जो स्पेस क्राफ्ट की लैंडिंग में सबसे जोखिम भरे पल होते हैं, उनमें भी चंद्रयान-3 ऐसा ही परफॉर्म करेगा, जैसा अभी तक किया है। वास्तव में चंद्रयान-3 के इस सुपर परफेक्शन के पीछे चंद्रयान-2 की असफलता का सबक भी है। इसरो के किसी भी वैज्ञानिक से बात करिए तो वह आपको बतायेगा कि चंद्रयान-2 की असफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिकों के कितनी मेहनत की है और इस मिशन को कितना सुरक्षित बनाया है। भारतीय विज्ञान संस्थान बेंग्लुरु के एयरो स्पेस वैज्ञानिक प्रो. राधाकांत पाधी के मुताबिक चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में एक इनबिल्ट सेफ्टी मोड है जो इसे उतरने के दौरान पूरी तरह से मदद करेगा। यहां तक कि कुछ गलत भी हो जाए तो भी विक्रम चांद पर सुरक्षित रूप से उतर जायेगा। वास्तव में यह चंद्रयान-2 की विफलता के बाद भारतीय वैज्ञानिकों के अत्यन्त सजगता के साथ किए गए जबरदस्त सुधारों का नतीजा है।
कुल मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के वैज्ञानिकों को भरपूर भरोसा है कि चंद्रयान-3 सुरक्षित लैंड करेगा और दशकों से भारतीय विज्ञान को जो वैश्विक सम्मान नहीं मिला, वह सम्मान आज शाम इसरो की बदौलत भारतीय विज्ञान के दामन में होगा। लेकिन इतने विश्वास के बावजूद यह भी सही है कि भारतीय वैज्ञानिक आजकल सो नहीं पा रहे। बेशक गुजरते पल के साथ चंद्रयान-3 वैज्ञानिकों की खुशियां ही बढ़ा रहा है। चंद्रयान-3 के लैंडर द्वारा भेजी गई सबसे हालिया तस्वीरें इतनी उच्च कोटि की हैं कि चंद्रमा के गड्ढे बिल्कुल साफ नज़र आ रहे हैं। लगता है, जैसे साक्षात हम दिन के उजाले में गड्ढों के पास खड़े होकर उन्हें देख रहे हों। 21 और 22 अगस्त को चंद्रयान-3 अपनी अंतिम डि-बूस्टिंग के बाद जिस आश्वस्त भाव से अपने उतरने के लिए सुरक्षित जगह ढूंढते हुए दिखा, उससे भी इसरो के वैज्ञानिक गद्गद् हैं क्योंकि चंद्रयान-3 उनके अनुमान से भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। आज शाम अगर पिछले 23 जुलाई के बाद से निरंतर सफल सिलसिले को अंतिम पलों तक चंद्रयान-3 बरकरार रख पाया तो यूं तो अमरीका, रूस और चीन के साथ चांद की सतह पर अपना मून मिशन उतारने वाला भारत चौथा देश होगा, लेकिन हमारा मिशन चंद्रमा के जिस हिस्से में उतरेगा, वह हमें इन बाकी तीनों देशों से अपना सीना थोड़ा और ज्यादा फुलाने की छूट देगा।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर