मध्य प्रदेश : भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची ने बढ़ाई अन्तर्कलह

मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों के दो कदमों ने न केवल दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को बल्कि आम जनता को भी आश्चर्यचकित कर दिया है।
इन दो कदमों में सत्तारूढ़ भाजपा का भी एक कदम शामिल है जिसके तहत उसने तीन महीने बाद होने वाले आगामी विधान चुनाव के लिए इसकी आधिकारिक घोषणा से पहले अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। इस पहली सूची में विधानसभा की वे 39 सीटें हैं जहां से पार्टी 2018 के विधानसभा चुनाव में हार गयी थी। अर्थात् ये उम्मीदवार ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ेंगे जहां पार्टी को 2018 के आम चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था। इस घोषणा के समय ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। शायद यह पहली बार है कि मतदान के तीन महीने पहले ही उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया है। दूसरा कदम कांग्रेस का है जिसने चुनाव की तारीखों से काफी पहले ही भाजपा सरकार के खिलाफ  आरोप-पत्र जारी कर दिया है। 
हालांकि भाजपा ने सोचा था कि उम्मीदवारों की घोषणा का पार्टी के लोग स्वागत करेंगे लेकिन हुआ इसके विपरीत। इस घोषणा का स्वागत करने के बजाय पार्टी के एक बड़े वर्ग में नाराज़गी देखी गयी। ऐसे समय में जब सर्वेक्षणों में शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ  भारी सत्ता विरोधी लहर की भविष्यवाणी की गयी थी, भाजपा ने केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं जहां पार्टी उम्मीदवार लगातार एक के बाद एक चुनाव हारते रहे हैं। 
सूची से असंतुष्ट भाजपा नेता और कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। चुनाव से करीब तीन महीने पहले सूची जारी कर यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि भाजपा कड़ी टक्कर देने जा रही है और राज्य में अपने पांचवें कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रही है। वह हर सीट पर लड़ेगी। प्रदेश भाजपा नेताओं ने दावा किया था कि इस सूची से कार्यकर्ताओं को संगठित और सक्रिय किया जायेगा। विधानसभा चुनाव से काफी पहले ही वे अपने घरों से निकलकर मैदान में उतरेंगे। इसे कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली कुछ सीटों को जीतने के लिए पर्याप्त समय के अवसर के रूप में देखा जा रहा था। 13 आदिवासी उम्मीदवारों की घोषणा का मतलब आदिवासी मतदाताओं को भगवा पार्टी की ओर वापस लाना भी था।
पिछले दिनों राजकुमार कराठे द्वारा ‘आप’ से इस्तीफा देने के कुछ घंटों बाद उन्हें बालाघाट के लांजी निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा गया। इसके विरोध में सीट से पार्टी के पूर्व विधायक रमेश भटेरे के समर्थकों ने राजकुमार कराठे के खिलाफ नारे लगाते हुए लांजी की सड़कों पर भाजपा के झंडे के साथ जुलूस निकाला। ‘राजकुमार को झाड़ू मारो’ उनका नारा था।
रमेश भटेरे के एक समर्थक ने कहा, ‘केंद्रीय नेतृत्व को पता होना चाहिए कि उन्होंने उस व्यक्ति को टिकट दिया है जो पार्टी का प्राथमिक सदस्य नहीं है। कुछ दिन पहले वह ‘आप’ के साथ थे और लगातार भाजपा के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के खिलाफ  प्रचार कर रहे थे। हमारी मांग है कि इस फैसले को बदला जाये।’ 
छतरपुर से पूर्व मंत्री ललिता यादव को मैदान में उतारने का भी विरोध किया जा रहा है, यह सीट उन्होंने 2008 में 7,508 वोट के अंतर से और 2013में 2,217 वोटों से जीती थी। जब निर्वाचन क्षेत्र में उनका वोट अंतर कम हो गया तो पार्टी ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बड़ा मलाहरा निर्वाचन क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया, जहां वह कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह लोधी (अब भाजपा में) से 15,779 मतों के अंतर से हार गयीं। बड़ा मलाहरा उमा भारती के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी सीट थी। 
भाजपा ने दो बार छतरपुर नगर पालिका की अध्यक्ष रहीं अर्चना गुड्डू सिंह को छतरपुर से अपना उम्मीदवार बनाया है। अर्चना सिंह 2018 का चुनाव भी 3,496 वोटों के अंतर से हार गयी थीं। अब सवाल पूछा जा रहा है कि पार्टी ललिता यादव को छतरपुर से क्यों मैदान में उतारेगी जबकि 2013 में उनकी जीत का अंतर बहुत कम था और 2018 में बड़ा मलेहरा में हार गई थीं। छतरपुर में अर्चना सिंह की हार काफी कम वोटों से हुई थी। ललिता यादव के नाम की घोषणा होते ही अर्चना सिंह के समर्थकों ने छतरपुर के छत्रसाल चौराहे पर विरोध रैली निकाली और टिकट वापस लेने की मांग की।
पार्टी के सूत्रों ने दावा किया कि छतरपुर में ललिता यादव की उम्मीदवारी का उद्देश्य ज़िले और आसपास के खरगापुर, निवारी, पृथ्वीपुर, देवरी सुरखी और अन्य निर्वाचन क्षेत्रों सहित बुंदेलखंड क्षेत्र के आसपास के निर्वाचन क्षेत्रों में जातिगत समीकरण को संबोधित करना है। जातिगत समीकरण को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने रणनीतिक रूप से प्रीतम लोधी को उम्मीदवार बनाया हैए जिन्हें पिछले साल ब्राह्मणों के खिलाफ उनके विवादास्पद बयान के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
दूसरी ओर जब कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ आरोप-पत्र जारी किया तो वह काफी स्मार्ट नज़र आयी। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए आरोप पत्र जारी किया। इसे घोटाला-पत्र कहते हुए कांग्रेस ने अपने आरोप-पत्र में भाजपा सरकार पर मध्य प्रदेश में अपने 18 साल के शासन के दौरान कथित तौर पर 50,000 करोड़ रुपये के अवैध खनन घोटाला समेत 254 घोटालों का आरोप लगाया।
इन आरोपों में 86,000 करोड़ रुपये का शराब घोटाला, 11,000 करोड़ रुपये का सीवरेज निर्माण घोटाला, 94,000 करोड़ रुपये का बिजली घोटाला और 100 करोड़ का महाकाल निर्माण घोटाला शामिल है।
कांग्रेस ने दावा किया कि आरोप राज्य विधानसभा में सवालों के सरकार के जवाब सहित दस्तावेज़ी सबूतों पर आधारित है जिन्हें कैग और लोकायुक्त ने प्रस्तुत किया था। अनेक तो सीबीआई के दस्तावेज से लिये गये हैं। कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर करोड़ों रुपये के अन्य घोटालों का भी आरोप लगाया जो सीधे आम जनता से जुड़े हैं—जैसे 15000 करोड़ का पोषण आहार घोटाला, 12000 करोड़ रुपये का मिड.डे मील घोटाला, 9500 करोड़ का आंगनवाड़ी नल-जल घोटाला, 2000 करोड़ का व्यापम घोटाला और 800 करोड़ रुपये का भर्ती घोटाला। (संवाद)

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