मुसीबत भी बन सकते हैं बिजली चालित वाहन

 

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के ताजे आंकड़े बताते हैं कि 2022-23 के दौरान देश में बिजली चालित वाहनों की बैटरी चार्जिंग में कुल 20 करोड़ 50 लाख यूनिट बिजली की खपत हुई। इसका सबसे बड़ा हिस्सा दिल्ली के नाम रहा, कुल 55 फीसदी। यह तब है जब देश में चलने वाले कुल वाहनों की हिस्सेदारी में बिजली चालित वाहनों का हिस्सा लगभग आधा प्रतिशत मात्र है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत में कुल 22 लाख 70 हजार इलेक्ट्रिक व्हीकल्स रोड में थे, जिनके साल 2030 तक 2 करोड़ के पार पहुंच जाने की उम्मीद है। यदि सरकार अपने लक्ष्य में सफल रही और 2030 तक कुल वाहनों में इसकी हिस्सेदारी 30 फीसदी तक बढ़ा देती है, तो इनके चार्जिंग में इस्तेमाल होने वाली बिजली की मांग और खपत कहां जा पहुंचेगी? इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। एशियाई देशों में समूचे वाहनों में से बिजली चालित वाहनों का औसत 17 प्रतिशत से अधिक है। चीन में यह 28 फीसदी है और जापान में अगर यह तीन फीसदी से कम है तो इसलिये कि उनके पास इसके दूसरे बेहतर विकल्प मौजूद हैं। 
साइबर मीडिया रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कार बाज़ार की चौथी पायदान पर काबिज अपने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़त दर 48 प्रतिशत सालाना है। यह दर शानदार है। ऊपर से बिजली या बैटरी से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देने का सरकारी प्रयास भी ज़ोरों पर है। सरकार ने फेम के दूसरे चरण में देशभर में 7,432 ईवी फास्ट चार्जिंग स्टेशन, के लिये न सिर्फ  800 करोड़ रुपये मंजूर किये हैं बल्कि इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को कुल राशि का 560 करोड़ रुपये यानी 70 प्रतिशत जारी कर दिया है। चार्जिंग स्टेशनों के निर्माण के लिये कई तरह की सब्सिड़ी की घोषणा भी कर दी है। हालांकि इन चार्जिंग स्टेशनों को विद्युत आपूर्ति कैसे होगी यह नहीं बताया है। केंद्र सरकार अधिकांश भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन की नई नीतियों के तहत भारी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देगी। वैसे भी उसका लक्ष्य 2030 तक 30 प्रतिशत वाहनों को बिजली से चलाने का है। दिल्ली समेत तमाम राज्य अपने स्तर पर इस बात के लिये प्रयासरत हैं कि वे किस प्रकार अधिकाधिक प्रोत्साहन देकर राज्य में बिजली चालित वाहनों की संख्या बढाएं और केंद्र सरकार के लक्ष्यपूर्ति में मददगार बनें। 
पर्यावरण की रक्षा के लिये, शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को पाने के लिये बैटरी चालित वाहनों के चलन के बढ़ावे में कोई बुराई नहीं विशेषत: जब हमारे पास जापान की तरह दूसरे विकल्प मौजूद न हों, एथेनॉल अथवा हाइड्रोजन फ्यूएल की बात अभी दूर हो। लेकिन यह बात तो सोचनी ही होगी कि जब बिजली चालित वाहनों की हिस्सेदारी एक से बढ़कर 30 या 50 फीसदी तक पहुंचेंगी तो घरेलू चार्जिंग की सुविधा के बावजूद देश को लाखों की संख्या में चार्जिंग स्टेशनों के लिये विद्युत आपूर्ति कैसे सुनिश्चित होगी और खासकर तब जब देश ऊर्जा संकट के मुहाने पर खड़ा हो। देश के पास कोयला, तेल और गैस जैसे ऊर्जा संसाधन सीमित हैं, हम अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिये आयात पर निर्भर है। बिजली बनाने के लिये देश अभी भी मूलत: कोयले का इस्तेमाल करता है। अपना कोयला दोयम दर्जे का है, हमें दूसरे देशों से कोयला आयात करना पड़ता है। 
देश ऊर्जा उत्पादन के लिए अपने कच्चे तेल की आवश्यकता का 85 प्रतिशत से अधिक और आधे से अधिक प्राकृतिक गैस आयात करने में अपने कुल आयात बिल का 37 फीसदी खर्च कर देता है। इस बरस ऊर्जा आयात 44 फीसदी बढ़ने का अनुमान है, जो देश के आयात व्यय को प्रभावित करेगा। भविष्य में मुद्रास्फीति के चलते दूसरे देश दाम बढाएंगे, आयात वृद्धि दर ऐसे बनी रहती है, तो ऊर्जा आयात बिल जल्द ही शेष सभी व्यापारिक आयात में सर्वाधिक होगा, अनुमानत: 2026 में इसके एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। बार बार याद दिलाने की जरूरत नहीं बिजली की बढ़ती मांग को पूरा कर सकने के लिये भारत की ऊर्जा अवसंरचना अपर्याप्त है। इलेक्ट्रिक वाहनों की भारी संख्या में एक साथ चार्जिंग पॉवर ग्रिड पर बोझ बढ़ा देगी इसके लिये नई तकनीक आधारित उच्च शक्ति और क्षमता वाले पॉवर ग्रिड का निर्माण भी आवश्यक होगा। भविष्य में बैटरी चार्जिंग के लिये बुनियादी ढांचे में सुधार और ऊर्जा क्षमता में विस्तार हेतु विद्युत उत्पादन, वितरण व्यवस्था का संजाल बढ़ाने के लिये भारी मात्रा में निवेश कर संसाधन बढ़ाने होंगे।
देश में बैटरी चालित वाहनों की बढ़त का सिलसिला शुरू हुए अभी बहुत साल नहीं हुये हैं, जिन देशों में ऐसे वाहन बड़ी संख्या में है और बड़े तथा सार्वजनिक वाहन भी सड़कों पर दौड़ रहे हैं, वहां ऊर्जा की मजबूत अवसंरचना तथा पर्याप्त उत्पादन तथा आयात की पर्याप्त व्यवस्था के बावजूद भविष्य में बिजली चालित वाहनों की चार्जिंग के लिए बिजली कहां से आयेगी यह सवाल बहुत समय से उठाया जा रहा है। सब कुछ हो भी जाये तो सबसे बड़ा सवाल अनुत्तरित ही रह जायेगा कि, बिजली चालित वाहनों को पर्यावरण की बेहतरी लिये बढ़ावा दे रहे हैं जबकि इसकी चार्जिंग के लिये स्वच्छ या हरित ऊर्जा से इतनी भारी मात्रा में बिजली बना पाना हमारे लिए दिवास्वप्न ही है ऐसे में भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार कोयला अथवा दूसरे ऐसे संसाधनों का इस्तेमाल कहां तक उचित है?
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर