जारी है चीन का अड़ियल रवैया

दिल्ली में होने वाले जी-20 के मुख्य सम्मेलन की तैयारियां शिखर पर हैं। विश्व भर के सदस्य देशों के प्रमुख इसमें भाग लेने के लिए आ रहे हैं। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ऐंथन अलबनीज़, जर्मनी के चांसलर उलाफ शौलज़, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सूनक, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लुला द सिल्वा तथा जापान के प्रधानमंत्री फूसीयो किशिदा इस अवसर पर सम्मेलन में शामिल होंगे। इसके अलावा फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रोन तथा बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ अलग-अलग भेंट भी करेंगे।
अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि शुक्रवार से शुरू हो रहे इस सम्मेलन के लिए भारत द्वारा किए गए प्रयासों को लेकर वह जहां पूरे उत्साह में हैं, वहीं वह अलग तौर पर श्री नरेन्द्र मोदी के साथ भेंट भी करेंगे। दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जिनके भारत के साथ अच्छे तथा सुखद संबंध रहे हैं, ने यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण सम्मेलन में शामिल होने में असमर्थता व्यक्त की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस अधिवेशन में भाग लेने से इन्कार कर दिया है परन्तु उन्होंने इसका कोई कारण नहीं बताया। शी वर्ष 2019 में भारत आए थे। यहां आकर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ तमिलनाडु के मोमलापुरम में विस्तारपूर्वक चर्चा की थी। उसके बाद वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर की गलवान घाटी में दोनों देशों की सीमाओं पर सैनिकों की झड़प हो गई थी, जिसमें भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण बने रहे हैं, जबकि दोनों देशों के उच्च सैनिक कमांडरों की तनाव कम करने के लिए डेढ़ दर्जन से अधिक बार भेंटवार्ता भी हो चुकी है, परन्तु चीन के व्यवहार में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया। अब इसी वर्ष 28 अगस्त को चीन द्वारा जारी किए गए अपने मानचित्र में ज्यादातर भारतीय क्षेत्रों पर अपना हक जताया गया है तथा अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ दक्षिणी तिब्बत के साथ लगते एकसायी चिन के जिस भारतीय क्षेत्र को उसने 1962 के युद्ध में अपने कब्ज़े में कर लिया था, उसे भी चीन ने अपनी धरती दिखाना शुरू कर दिया है। जारी किए गए इस मानचित्र में दक्षिणी चीन सागर के साथ लगते ज्यादातर देशों ने भी एक बार फिर चीन द्वारा उनके समुद्री क्षेत्रों पर किए दावों के कारण अपनी आपत्ति व्यक्त की है। चीन आज विश्व में दूसरी बड़ी महाशक्ति बन चुका है, जिसके चलते उसने अपने पड़ोसी देशों के प्रति अपनी दबाव वाली नीति को जारी रखा है। इसी नीति पर चलते हुए भारत के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं रहे। अब जबकि जी-20 सम्मेलन के दौरान विश्व भर की नज़रें भारत पर केन्द्रित हुई हैं तथा जी-20 एक बड़ा शक्तिशाली संगठन बन कर उभरा है। इसके सदस्य देशों के मध्य आपसी सहयोग सभी के लिए बेहद लाभप्रद साबित हो सकता है। इस संगठन में विश्व को एक बड़ी आर्थिक दिशा देने की शक्ति है।
आज जहां अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बिगड़ते पर्यावरण संतुलन तथा आर्थिक मंदी के बड़े दृश्य देखने को मिल रहे हैं, वहीं इस समूह का आपसी सहयोग आत्म-निर्भरता तथा विश्वास पैदा करने वाला साबित हो सकता है। अब तक विश्व भर के अहम विकसित तथा विकासशील देशों के इस संगठन के 17 सम्मेलन हो चुके हैं। भारत में यह 18वां सम्मेलन है। 1999 में यह संगठन उस समय अस्तित्व में आया था जब विश्व के ज्यादातर देश आर्थिक मंदी की ओर जा रहे थे। उस समय विश्व को इस संकट से उभारने के लिए कोई योजनाबंदी की जानी ज़रूरी थी, जो आपस में मिल-बैठ कर ही सम्भव हो सकती थी। आज इस संगठन द्वारा चाहे ऊर्जा के स्रोत तथा आपसी व्यापार बढ़ाने के लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं परन्तु इसके अलावा इस संगठन द्वारा और भी कई महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करने तथा बाद में क्रियात्मक रूप में ठोस परिणाम सामने लाने की सम्भावनाएं बन रही हैं। भारत द्वारा इस संगठन में डाला जा रहा योगदान प्रशंसनीय है। आगामी समय में चीन का रवैया किस तरह का रहता है, यह देखने वाली बात होगी, परन्तु एक बार तो शी जिनपिंग द्वारा इस अहम शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इन्कार किए जाने ने दोनों देशों के संबंधों में और भी बड़ी खटास पैदा कर दी है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द