कुलवंत विर्क की कहानी ‘धरती हेठला बौल्द’ का असल नायक

मेरा आज की बात का सम्बंध कुलवंत सिंह विर्क की कहानी ‘धरती हेठला बौल्द’ तक सीमित नहीं। इसमें दूसरा विश्व युद्ध भी है और पाकिस्तान का ज़िला शेखूपुरा तथा चूहड़काना व फुल्लरवान भी। इस बात की अधिक जानकारी डा. सर्बजीत सिंह छीना से मिली जो खालसा कालेज अमृतसर में कृषि आर्थिकता के डीन रह चुके हैं। यदि और पूछते हैं तो विर्क के पैतृक गांव (फुल्लरवान) सर्बजीत छीना के ननिहाल थे। इन नाते कुलवंत सिंह विर्क भी सर्बजीत छीना के मामा लगते थे।  हम ‘धरती हेठले बौलद’ की बात कर रहे थे, जो विर्क की कहानी का पत्र तथा मेरी ताज़ा बात का नायक है। 
सर्बजीत के अनुसार उन्हें वह समय भी कल की भांति याद है जब सात वर्षीय सर्बजीत के ननिहाल उस फौजी के निधन की तार आई थी जो उनके घर में जन्मा था और दूसरे विश्व युद्ध में शहीद हो गया था। समाचार सुनते ही घर की महिलाएं कपड़े धोना, चक्की पीसना व चूल्हा-चौंका छोड़ कर रोने लग गई थीं। शहीद होने वाले नौजवान की पत्नी सहित जो एक वर्ष पहले इस घर की बहू बन कर आई थी। और पूछते हो तो चले जाना वाला नौजवान सर्बजीत का सगा मामा था। 
सर्बजीत सिंह उर्फ डा. छीना को यह भी याद है कि जब कुछ दिनों के बाद उसके शहीद मामा के मित्र ने उसके ननिहाल मिलने आना था तो उसके नाना ने पूरे परिवार को आने वाले की पूरी सेवा करने के लिए कहा था। यह भी कि मेहमान छट्टी काटने आया है और उसे बुरी खबर देकर दुखी न किया जाए। परिणामस्वरूप घर के बुगुज़र् को मिलने से पहले शहीद हुए नौजवान के छोटे भाई जसवंत सिंह ने नये मेहमान को देशी शराब भी पिलाई थी। 
जाते-जाते यह भी बता दूं कि विश्व युद्ध में कुर्बान होने वाला नौजवान सर्बजीत छीना का सगा मामा था। उसका नाम कर्म सिंह था और पिता का नाम बेला सिंह। कुलवंत सिंह विर्क अपनी कहानी में बेला सिंह को ही धरती हेठला बौल्द लिखता है। यह कहानी असली है जो दूसरे विश्व युद्ध के शहीदों की बात करती है। 
सर्बजीत छीना सरगोधे में जन्मा है। उसके इन दिनों में हर्नियां, प्रोसटटे्रट तथा गालब्लैडर के आप्रेशन हुए हैं जिस प्रसंग में उसके ननिहाल का कोई व्यक्ति उसका हाल पूछने आया तो उस गांव के विर्कों की बात भी हुई। कुलवंत सिंह विर्क और उसकी कहानी ‘धरती हेठला बौल्द’ तथा मेरी विर्क से मित्रता सहित। 
सर्बजीत ने यह बात मेरे अपने स्वास्थ्य का हाल पूछते समय साझा की। उसने यह भी बताया कि उसकी पाकिस्तान यात्रा के समय उसे चूहड़काना में कोई मुहम्मद रफीक नामक मुसलमान अचानक ही मिल गया था। जो बड़े चाव के साथ सर्बजीत को फुल्लरवान घुमा कर लाया। 
याद रहे कि अब चूहड़काना कस्बे का नाम फारुखाबाद हो चुका है।
नहीं भूलता पंजाब विदेश रहने वालों को
मेरा सांढू दविन्दर साही 30-35 वर्षों से अमरीका में रह रहा है। वह पंजाब की धरती पर इसके सृजकों की महिमा को नहीं भूला। उसके हाथ लाहौर मैडीकल कालेज में फिज़ियालोजी के प्रोफैसर डा. सी.सी. काबिल द्वारा 1886 में प्रकाशित जपुजी साहिब का अंगे्रज़ी अनुवाद लग गया है। प्रो. काबिल यूरोपीय यहूदी था। उसका 26 अगस्त, 1940 को 79 की आयु में  निधन हो गया था। मैं नहीं जानता कि इधर किसी को इसकी जानकारी है। हो सकता है शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी या इंस्टीच्यूट आफ स्टडीज़, चंडीगढ़ इस पर रौशनी डाल सकतो हों। डा. दविन्दर साही तथा मैं धन्यवादी होंगे।   
अमानत अली के बुज़ुर्गों का नौशहरा ढाला
मेरा मुंह बोला बेटा अमानत अली मुसाफिर लाहौर के निकट कालेज में प्रोफैसर है। उसके दादा-पड़दादा ज़िला अमृतसर के गांव नौशहरा ढाला में जन्मे थे। उसका अपना जन्म 1967 में बाबा जल्हन दास की मातृ-भूमि गांव घणीये के में हुआ था। 1947 के बाद उन्हें घणीये के गांव में जमीन अलाट हुई थी। उसके मन में अपने अब्बा मुहम्मद हुसैन तथा दादा जी के मुंह से सुनी नौशहरा ढाला की यादें कल की भांति ताज़ा हैं। कुछ टोटके अंतिका में पेश हैं। यह गांव पाकिस्तान सीमा पर पड़ता है। इसका बसीमा बुर्ज गांव के साथ लगता है, जहां गुरा के तौर पर जाना जाता मेरे साले के ससुराल थे। बुर्ज वालों के बुज़ुर्ग भी नौशहरा ढाला से आकर बुर्ज गांव में बसे थे। अंतिका पढ़ें और आनंद ले। 
अंतिका
—अमानत अली मुसाफर—
बापू छड्डिया पिंड नौशहरा माता छड्डे चीमे
सूर विंड नूं भूआ छड्डिया मासी छड्डे छीने
तीर जुदाइयां दे वज्ज गये विच्च सीने
ओह तीर जुदाइयां दे........................
बापू जी नूं पिंड नौशहरा मरन तोड़ी न भुल्लिया
गल्लां ओहदीयां सुण सुण साढी अक्खों नीर सी डुल्लिया
पुत्त पंजाबी दा थां-थां किवें रुल्लिया 
पुत्त पंजाबी दा...................................
दूरों वेख नौशहरा बापू उंगल दे नाल दस्सदा
पिछों पूरब वाले बन्ने साडा घर सी वस्सदा
चन्नण, बंते नूं ओह कर कर याद सी हस्सदा
चन्नण बंते नूं..................................
मरन वेले ओह सानूं कहिंदा नेड़े नेड़े बहि जो
चुक्को मेरा मंजा मैनूं पिंड नौशहरे लै जो 
पुत्तरो मेरे लई एनां दुख तां सह जो
पुत्तरो मेरे लई.............................।