फिर अपनी नापाक हरकतों पर उतर आया पाकिस्तान 

सारी उम्र किराये के मकान में गुज़ारने के बाद कमला और लालचंद के लिए खुशी की बात थी कि उन्हें अपना बुढ़ापा अपने ही मकान में व्यतीत करने का अवसर मिलने जा रहा था। पानीपत (हरियाणा) में अपने नये मकान में गृह प्रवेश की तिथि उन्होंने 23 अक्तूबर इसलिए रखी थी क्योंकि वह उनके प्यारे बेटे मेजर आशीष ढौंचक का जन्म दिवस भी था। मेजर ने इस शुभ अवसर पर अपनी मां से फोन पर वायदा भी किया था। मेजर की पत्नी ज्योति व दो साल की बेटी वामिनी के साथ मेजर की बहनें अंजू, सुमन व ममता भी उनकी प्रतीक्षा में थीं, विशेषकर इसलिए कि मेजर को उन्होंने आखिरी बार मई में देखा था, जब वह दस दिन की छुट्टी लेकर पानीपत के किराये वाले मकान में आये थे।  
सेना मेडलों से सम्मानित 19 राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर आशीष व उनके कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मनप्रीत सिंह और डीएसपी हुमायूं भट्ट 12 व 13 सितम्बर, 2023 के बीच की रात में आतंकियों से हुई भीषण मुठभेड़ में शहीद हो गये। विशिष्ट इंटेलिजेंस के आधार पर सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जिला अनंतनाग के कोकरनाग क्षेत्र में संयुक्त ऑपरेशन लांच किया था। सूचना यह थी कि लश्कर का स्वयंभू कमांडर उज़ैर खान अपने एक या दो साथियों के साथ बड़ी मात्रा में हथियार व गोला-बारूद लिए हुए वहां छुपा हुआ है। गडूल गांव की तलाशी लेने के बाद कर्नल सिंह की टीम पास की जंगल-युक्त तीखी ढलान वाली पहाड़ी पर चढ़ रहे थे कि तभी आतंकियों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलीबारी आरंभ कर दी। तीनों अधिकारी व एक सैनिक शहीद हो गये और पांच पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गये। 
द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है, जोकि वास्तव में पाकिस्तान-समर्थित लश्कर का शैडो गुट है। आतंकियों के एक प्राकृतिक गुफा में छुपा होने का अनुमान है, जिसकी सुरक्षाकर्मियों ने, अंतिम मिली रिपोर्ट के अनुसार, घेराबंदी की हुई है। गौरतलब है कि आतंकरोधी ऑपरेशनों में सेना ने कर्नल रैंक का अधिकारी पिछली बार मई 2020 में खोया था, जब कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद, दो सैनिकों व एक जम्मू-कश्मीर पुलिस के सब-इंस्पेक्टर के साथ उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में हंडवारा के चांजीमुल्ला मुठभेड़ में शहीद हुए थे। वैसे 5 अगस्त, 2019 से एक अगस्त, 2023 तक कश्मीर ज़ोन में सेना, सीआरपीएफ व जम्मू-कश्मीर पुलिस के 116 सैन्यकर्मी आतंक-संबंधी हमलों में शहीद हुए हैं और इसके अतिरिक्त जम्मू क्षेत्र में 24 शहादतें हुई हैं। इस साल 5 अगस्त को कुलगाम जिले के हालन में आतंकियों के साथ शूटआउट में तीन सैनिक शहीद हुए थे। अनंतनाग की ताज़ा घटना इस तथ्य का स्पष्ट साक्ष्य है कि शांति व स्थिति नियंत्रण के सरकारी दावों के बावजूद पाकिस्तान का आतंक-इन्फ्रास्ट्रक्चर जो लश्कर व अन्य आतंकी गुटों की जम्मू-कश्मीर में मदद करता है, वह बरकरार और सक्रिय है। 
हालांकि भारतीय सेना ने पिछले दो वर्षों के दौरान घुसपैठ को रोकने के लिए ‘ठोस’ ग्रिड कायम किया हुआ है और इंटेलिजेंस एजेंसीज़ व सुरक्षबलों में आतंकरोधी ऑपरेशनों के लिए ‘शानदार समन्वय’ है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान ने अपनी प्रॉक्सी युद्ध योजना में कोई परिवर्तन किया है। ट्रेनिंग कैंप, लांच पैड आदि जैसे आतंक-इन्फ्रास्ट्रक्चर अब भी सीमा पार कार्यरत हैं। उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट-जनरल उपेंद्र द्विवेदी का कहना है कि नियंत्रण रेखा पर तो घुसपैठ को बड़ी हद तक विफल कर दिया गया है, लेकिन अब आतंकी पंजाब व नेपाल के ज़रिये घुसपैठ कर रहे हैं ताकि जम्मू-कश्मीर में शांति को भंग किया जा सके। पाकिस्तान पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में आतंकवाद को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तान ने सीमा लांच पैड्स पर 150 से अधिक प्रशिक्षित आतंकी रखे हुए है। इसके अतिरिक्त सीमा पार से नार्को-आतंक गठजोड़ को भी प्रायोजित किया जा रहा है। 
ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी रणनीति को बदलते हुए आतंकी जम्मू-कश्मीर के पीर पंजल क्षेत्र को अपनी गतिविधियों का नया ज़ोन बना रहे हैं। जनवरी 2021 और मई 2023 के बीच पीर पंजाल के दोनों तरफ  24 सुरक्षाकर्मी व 75 नागरिक मारे गये हैं। ध्यान रहे कि जिस समय अनंतनाग में मुठभेड़ हो रही थी, लगभग उसी समय पीर पंजाल के दक्षिण में जिला राजौरी में भी सुरक्षाबलों व आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस क्षेत्र में आपस में जुड़े हुए घने जंगल और प्राकृतिक गुफाएं हैं, जो आतंकियों के लिए छुपने की अच्छी जगह बन जाती हैं। लगभग दो दशकों से इस क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति काफी हद तक बेहतर थी, इसलिए यहां सशस्त्र बलों की उपस्थिति को कम कर दिया गया था, लेकिन 2020 के बाद यहां आतंकी फिर से दिखायी देने लगे। पीर पंजाल इस समय गंभीर चुनौती बनकर उभर रहा है। इसे नई दिल्ली को अनदेखा नहीं करना चाहिए। 
बहरहाल, वर्तमान घटनाक्रम से दो मुख्य निष्कर्ष निकलते हैं। एक, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति में अच्छे सुधार (जैसा कि इस केंद्र शासित प्रदेश में इस साल 1.88 करोड़ से अधिक पर्यटकों के आने से स्पष्ट है) के बावजूद पाकिस्तान-आधारित आतंकी गुट निरन्तर अपनी रणनीति बदल रहे हैं ताकि सुरक्षाबलों को चकमा दिया जा सके। 
साल 2022 में टार्गेटेड हत्याओं की झड़ी लगायी गई जिससे सुरक्षाबलों को अपना ध्यान स्थानीय आतंक रिक्रूट्स और उनके ओवरग्राउंड वर्कर्स पर देना पड़ा। पीर पंजाल गलियारे के इस्तेमाल का अर्थ है कि परम्परागत आतंकी गतिविधियों की ओर लौटा जा रहा है। फिर जैसा कि ऊपर बताया गया, जम्मू-कश्मीर में आतंकी पंजाब व नेपाल के रास्ते से भी घुसपैठ कर रहे हैं। दरअसल, भारत को पाकिस्तान व अफगानिस्तान में स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिए जिसका सीधा प्रभाव कश्मीर पर पड़ता है। 
पाकिस्तानी राजनीति की वर्तमान अनिश्चितता और अफगानिस्तान के तालिबानी शासकों से इस्लामाबाद की बढ़ती समस्याओं के कारण पाकिस्तानी डीप स्टेट भटकाने वाली रणनीति के तौर पर कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देगी ताकि भारतीय सुरक्षाबल इसी में उलझे रहें। इसलिए ज़रूरत यह है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकरोधी ऑपरेशनों में अधिक लचीलापन व अनुकूलन क्षमता लायी जाये। जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा महाजाल में जो कमज़ोरियां हैं, उन्हें दूर करना बहुत ज़रूरी है नहीं तो उनका पाकिस्तान-आधारित आतंकी गुट फायदा उठाते रहेंगे। कश्मीर में अभी तक जो सफलता मिली है, उसे लेकर नई दिल्ली को लापरवाह नहीं होना चाहिए। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर