उप-चुनाव और केन्द्र सरकार

अभी-अभी राज्यों की 7 सीटों के लिए उप-चुनाव के परिणाम आए हैं। 7 में से 3 सीटें भाजपा के हिस्से आई हैं और 4 समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश), झारखंड मुक्ति मोर्चा (झारखंड), तृणमूल कांग्रेस (पश्चिम बंगाल) और कांग्रेस (केरल) के। ये चारों पार्टियां ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा हैं। चाहे इन परिणामों से आगामी चुनावों के परिणाम बारे अनुमान लगाना ठीन नहीं फिर भी उत्तर प्रदेश के घोसी चुनाव क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का भाजपा के दारा सिंह चौहान को लगभग 42 हज़ार वोटों के अंतर से हराना भाजपा के लिए चिंता का विषय है। खासतौर पर इसलिए कि यहां यादव के उम्मीदवार सुधाकर सिंह को हराने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद पूरा ज़ोर लगाया था, हिन्दू  पत्ता खूब खेलने सहित।
 भाजपा की चिंता को पूरी तरह से उजागर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने तो यहां तक कह दिया कि केन्द्र की सरकार को चिंता इतनी अधिक हो गई है कि यह ‘एक देश, एक चुनाव’ के नारे पर पहरा देकर देश के लोकतंत्र का क्षरण करने पर आमादा हो गई है। कम से कम मंतव पांच प्रदेशों में होने वाले विधानसभा चुनाव को स्थगित करना है। कुछ भी हो मोदी सरकार की उलटी गिणती यदि शुरू नहीं भी हुई तो भी बात इस दिशा की ओर बढ़ रही है।
भारत, हिन्दुस्तान, इंडिया या सभी
विपक्षी दल द्वारा अपने गठबंधन को ‘इंडिया’ कहने पर केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने व्यर्थ का विवाद तथा वावेला मचा रखा है। जब मुहम्मद अली जिन्ना ने देर रात के समय पंजाब और बंगाल में से अपने बनने वाले देश का नाम पाकिस्तान रखा था तो उसकी मंशा अखंड हिन्दुस्तान की बराबरी करना या इसको मात देना था। मुगलों के नामकरण वाले हिन्दुस्तान को। तब ब्रिटिश राज्य के इंडिया को पूरी तरह से भुलाना चाहता था। यह बात अलग है कि 1971 में पाकिस्तानी बंगालियों ने अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति का बोलबाला जताने के लिए अपने-आप को जिन्ना के बनाए पाकिस्तान से अलग कर लिया। इस जोड़-तोड़ का मुख्य उद्देश्य भाषा का वर्चस्व जताना था। बंगाली बोलने वाला बंगाल दो हिस्सों में बंट गया। आधा हिस्सा पश्चिम बंगाल के नाम पर स्वतंत्र देश हो गया और बाकी आधा पहले की तरह ही भारत का एक बड़ा राज्य रह गया। अब विवाद की जड़ हिन्दुस्तान का नया नाम है। इंडिया और भारत।
अब 21वीं शताब्दी में हमने सोचना है कि हम अपने देश के लिए मुगलों का नामकरण हिन्दुस्तान प्रयोग करना है, ब्रिटेन वालों का इंडिया या स्वतंत्रता के बाद वाला इंडिया और भारत। तारीख गवाह है कि गोवा, दमन दियो और पुड्डुचेरी का इलाका छोड़कर ब्रिटेन वालों ने हमें इंडिया नाम के तले एकजुट किया। दक्षिणी व पूर्वी राज्य आज भी अपने-आप को भारतीय या हिन्दुस्तानी कहने से इंडिया कहना अच्छा समझते हैं। 
याद रहे कि भारत के संविधान का निर्माण करने वाली पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी। उस ने संविधान की अंग्रेज़ी भाषा वाली कापी को ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ लिखा। हिन्दी भाषा वाली को ‘भारत का संविधान’ रखा गया। उस समय इस संविधान बनाने वाली सबा द्वारा भारत के स्थान पर हिन्दोस्तान को भी स्वीकृति दी जा सकती थी, परन्तु तत्कालीन सरकार तथा संविधान ने भारत को प्राथमिकता दी। कौन नहीं जानता कि हिन्दुस्तान में हिन्दुत्व की भावना भारत से अधिक है। वैसे भी भारत शब्द में मिथिहासिक भावना है और दिन्दुस्तान में एतिहासिक। इतिहास पर पहरा दिया जो मिथिहास से सच्चा होता है। भाजपा वालों का मिथिहास को वैज्ञानिक सच से प्रशंसा करने का मूल मंतव स्वतंत्रता प्राप्ति में बड़ा योगदान डालने वाली प्रमुख पार्टी को नीचा दिखाना है। कुछ इसी तरह जैसे चन्द्रयान-3 की सफलता को भाजपा की उपलब्धि तक सीमित करना। यह भूलभुला कर इसरो की स्थापना पंडित नेहरू के काल में हुई थी और यह उपलब्धि इसरो तथा उसके साथ सात दशकों से जुड़े वैज्ञानिकों की है। उन राजनीतिक नेताओं की नहीं जो सीना तान कर आगे आ रहे हैं। 
यह बात भी नोट करने वाली है कि ‘भारत’ तथा ‘इंडिया’ शब्दों का भावनात्मक महत्व अलग-अलग है। भाजपा को इसे उत्तरी हिन्दी भाषी राज्यों में 2024 में होने वाले चुनाव के समय वोट का लाभ मिल सकता है। 18 सितम्बर, 2023  को बुलाया गया संसद का विशेष सत्र भी भाजपा को 2024 के चुनावों में लाभ देने के लिए है। याद रहे कि 1949 में ‘इंडिया जो कि भारत है’ को स्वीकृति देने वाली तिथि भी 18 सितम्बर ही थी। वर्तमान सरकार यह भुला देना चाहती है कि जिस शब्द को विवाद की जड़ बनाए बैठे हैं, इसकी नींव पूरे 75 वर्ष पहले पंडित नेहरू काल में रखी गई थी। वह नहीं जानते कि इसरो के प्रसंग में तो यह पत्ता चल गया, यहां चलना कठिन है। यह भी हो सकता है कि यह उल्टा पड़ जाए। एक बात तो स्पष्ट है कि जिस राह पर केन्द्र की वर्तमान सरकार चल रही है, इंडिया (अर्थात अखन्ड भारत) में से हिन्दी भाषी राज्यों के जुदा होने की सम्भावना बढ़ जाएगी। यह भी कि ऐसा टुकड़ा कितना भी बड़ा हो आस-पास के राज्यों ने इसे टिकने नहीं देना। विशेषकर दक्षिणी भारत, पूर्व तथा पंजाब ने जिसे विदेश में रह रहे पंजाबियों ने चिंगारी लगाई रखनी है। खालिस्तान का नारा लगा कर। 
जिन्होंने वर्तमान पाकिस्तान की यात्रा की है, वे जानते हैं कि वहां अंग्रेज़ सरकार शुरू की गई योजनाओं में ही भंग नहीं भुजती , गांव की सड़कें तंग व टूटी-फूटी हैं। गांवों के मकान अभी भी कच्चे हैं और पक्के घरों की ईंटें तो पक्की है परन्तु उन पर सीमेंट की टीप नहीं की मिलती। छोटा देश बड़े देश का मुकाबला नहीं कर सकता। बड़े देश में प्रत्येक तरह का बड़प्पन  होता है। टुकड़े होने से बड़प्पन के भी टुकड़े हो जाते हैं। यह टुकड़े मुहम्मद इकबाल जैसे शायरों को भी झुठला देते हैं, जो अपने जन्म के समय के हिन्दुस्तान को ‘हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दुस्तां हमारा’ कहता, पाकिस्तान की मांग से शह पाकर। ‘मुस्लिम हैं हम वतन हैं सारा जहां हमारा’ कहने लग गया था। 

अंतिका
—मिज़र्ा गालिब—
नगमा-ए-़गम को भी ए दिल गनीमत जानिये
बे-सदा हो जाए यह साज़-ए-हस्ती एक दिन।