भारत बनाम इंडिया

आज से 74 साल पहले भी संविधान सभा की एक बैठक में इस बात पर बहस चली थी कि इस हमारे देश का नाम भारत हो या इंडिया। उस सभा में एच.वी. कामथ ने अपने देश का नाम ‘इंडिया’ से बदल कर भारत या भारतवर्ष रखने का संशोधन प्रस्ताव पेश किया था। इस पर बहस हुई। वोटिंग के बाद प्रस्ताव गिर गया।  अभी से अनुमान लगने लगे हैं कि सरकार इंडिया दैट इज भारत की शब्दावली को ही बदलने जा रही है। तारीखों का नया संयोग 5 सितम्बर मंगलवार को नज़र आया जब दो आमंत्रण पत्रों पर ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ लिखा गया। जी-20 समिट के मेहमानों को 9 सितम्बर के रात्रि भोज के राष्ट्रपति भवन के आमंत्रण पत्र में राष्ट्रपति को ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रैसीडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया है। वहीं प्रधानमंत्री को आसियान समिट के लिए 7 सितम्बर, 2023 की इंडोनेशिया की यात्रा के फंक्शन नोट में ‘द प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ लिखा गया था।
इस बीच विपक्ष ने इसे लेकर सरकार पर तंज कसने का मौका हाथ से जाने नहीं दिया। जुलाई में ‘इंडियन नैशनल डवल्पमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) रखा गया था। इसके बाद भाजपा ने कहा, यह चुनाव इंडिया बनाम भारत है। देर रात केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने देश का नाम बदलने के लिए विशेष सत्र बुलाने की अटकलों को अफवाह का दर्जा दिया। अब देश भर में गूंजने लगा है-भारत बनाम इंडिया। स़ाफ है कि देश का नाम भारत प्राचीन नाम है और इंडिया अंग्रेज़ों का दिया हुआ नाम। असल में सिंध नदी का नाम भारत आये विदेशियों ने ‘इंद्रस’ रखा था। सिंधु घाटी सभ्यता के कारण भारत का नाम सिंधु भी था। जिसे युनानी में इंडो कहा जाता था। जब यह शब्द लैटिन भाषा में रुपांतरित हुआ तो बदल कर इंडिया हो गया।
अंग्रेज़ ठीक से हिन्दुस्तानी नहीं बोल पाते थे। वे जब भारत आये तो हमारे देश को हिन्दुस्तान कहा जाता था। सिंधु के स को जो ह कहते थे उन्होंने एस. सिंधु शब्द को हिन्दू में बदल दिया फिर जो हिन्दुओं का घर था हिन्दुस्तान हो गया। अंग्रेज़ हिन्दुस्तान सुविधापूर्वक नहीं बोल पाते थे। वे इंडस और इंडिया के रूपाकार को लेकर संतुष्ट नज़र आये। हमारे देश के लिए ‘इंडिया’ नाम प्रचलित करवाया। भारत नाम का आप सभी जानते हैं पुरुवंश के महाराज दुष्यंत और रानी शकुंतला के पुत्र भरत ने इस देश का पहली बार भरपूर विस्तार किया था। जिनके नाम पर ही देश का नाम ‘भारत’ पड़ा था।
क्या यह बहुत बड़ा जनहित का सवाल है, जिस पर इतनी माथापच्ची ज़रूरी हो गई है? यह देश वही रहेगा। अनेक सम्भावनाओं से भरपूर ़गरीब भारत देश। जो मंगल फतेह करना चाहता है परन्तु आम आदमी के मंगल की सम्भावनाओं को ठीक से टटोल नहीं पा रहा। इंडिया लिखा जाये या भारत या भारतवर्ष, क्या संकट आने वाला है, जो आज तक के नाम प्रचलन में नहीं आया? भारत के भी कुछ और नाम हैं जम्बूद्वीप, आर्यव्रत, हिन्दुस्तान, हिमवर्र्ष, भारत और इंडिया भी।
जिस बात का ज़िक्र पहले किया है कि संशोधन प्रस्ताव पेश हुआ था। वह बात 18 सितम्बर 1949 की है। संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेन्द्र प्रसाद और प्रारूप समिति (ड्राफ्ट कमेटी) के अध्यक्ष डा. भीमराम अम्बेदकर की हाजिरी में सभा के सदस्य हरि विष्णु कामत ने बहस शुरू की और देश का नाम भारत या भारतवर्ष रखने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया। डा. अम्बेदकर के बीच में बोलने से कामत भड़क उठे। इस बीच के.एम. मुंशी, गोपाल स्वामी ने भी बोलने की कोशिश की, कामत ने सभी को चुप करवा दिया। सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी कि यह सिर्फ भाषा के बदलाव का मामला है। आसानी से सुलझना चाहिए। अम्बेदकर चाहते थे कि इस पर जल्दी निर्णय हो जाए लेकिन बहस लम्बी चली। सेठ गोविंद दास ने भी ऐतिहासिक संदर्भों का हवाला देकर देश का नाम भारत या भारतवर्ष रखने पर बल दिया। कमलापति त्रिपाठी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि फिलहाल देश का नाम इंडिया अर्थात् भारत (इंडिया दैट इज भारत) है। ऐतिहासिकता को देखते हुए इसे बदल कर भारत अर्थात इंडिया कर देना चाहिए। वोटिंग में प्रस्ताव गिर गया। इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ नामकरण सदन से पारित हो गया।
हम इस बहस को आम आदमी की नज़र से भी देख सकते हैं जिसके लिए देश आखिर देश ही होता है। एक नाम उसके जहन में रहता है। क्या यह बहस राजनीतिक है? क्या हम अंग्रेज़ी सरकार के सारे चिन्ह प्रतीक खत्म कर देना चाहते हैं? क्या इससे इतिहास बदल जायेगा? क्या आम आदमी का जीवन बदल जायेगा?