आम चुनाव के प्रति पाकिस्तानी नागरिकों में कोई उत्साह नहीं]

पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) ने पिछले दिनों कहा कि नैशनल असेंबली में नये सदस्यों को चुनने के लिए पाकिस्तान का अगला आम चुनाव जनवरी 2024 के आखिरी सप्ताह में होगा। चुनाव निकाय ने कहा कि निर्वाचन क्षेत्रों की प्रारंभिक सूची 27 सितम्बर को जारी होगी जबकि अंतिम सूची 30 नवम्बर को जारी की जायेगी। हालांकि, मतदान की सटीक तारीखों की घोषणा अभी शेष है।
अगस्त में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने पूर्व प्रधान मंत्री शहबाज़ शरीफ  की सलाह पर संसद को भंग कर दिया था जिससे आम चुनाव का रास्ता साफ  हो गया। पाकिस्तान के संविधान के अनुसार आम चुनाव संसद भंग होने के 90 दिनों के भीतर सम्पन्न हो जाने चाहिए। नतीजतन चुनाव अक्तूबर या नवम्बर में होने की उम्मीद थी। हालांकि ईसीपी ने कहा कि नयी जनगणना के आलोक में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन करने के लिए उसे और समय चाहिए। वर्तमान में कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर-उल-हक कक्कड़ सरकार के कार्यों को देख रहे हैं।
व्यापक आशंका के बीच कि चुनाव अनिश्चित काल के लिए स्थगित किये जा सकते हैं, ईसीपी की घोषणा से उम्मीद जगी है कि चुनाव वास्तव में होंगे। फिर भी अभी कुछ भी सुनिश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।
एक और उल्लेखनीय घटनाक्रम पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ  की अक्तूबर में देश लौटने और आगामी चुनावों के लिए पार्टी को एकजुट करने की योजना है। नवाज शरीफ  पंजाब से आते हैं, जबकि पीटीआई अध्यक्ष इमरान खान खैबर पख्तूनख्वा से हैं। परम्परागत रूप से पंजाबी नेता पाकिस्तान की राजनीति में दबंग भूमिका निभाते रहे हैं। पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण जातीय और जनजातीय आबादी है और पंजाब के राजनेताओं के प्रभुत्व वाली राष्ट्रीय राजनीति देश की समग्र राजनीति और अर्थव्यवस्था के साथ अच्छी तरह से मेल नहीं खाती है। 
उदाहरण के लिए बलूचिस्तान के लोग सरकार के हर काम का विरोध कर रहे हैं, जिसमें बेल्ट एंड रोड पहल के तहत चीनी परियोजनाएं भी शामिल हैं। इसी तरह खैबर पख्तूनख्वा सरकार द्वारा किये जाने वाले सौतेले व्यवहार के कारण इस्लामी आतंकवाद का केंद्र रहा है। इस क्षेत्र का सबसे पहचाना जाने वाला चेहरा इमरान खान छोटे-मोटे और राजनीति से प्रेरित आरोपों पर कई महीनों से जेल में हैं।
इसलिए पाकिस्तान को मुख्यधारा की राजनीति के नज़रिए से देखना गलत विश्लेषण और निष्कर्षों के खतरों से भरा है। पाकिस्तान इस स्थिति में आ गया है कि उसे अपनी ही पीड़ा और सुंदरता के आलोक में देखने की ज़रूरत है। बाहरी दुनिया के लिए पाकिस्तान को कुछ ग्लैमरस लेकिन खोखले पुरुष और महिला राजनेता वाले देश के रूप में देखा जाता है जबकि लाखों लोग चुनौतीपूर्ण नागरिक और लोकतांत्रिक माहौल में बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित रहते हैं।
इस गम्भीर और जटिल वास्तविकता को देखते हुए पाकिस्तान में चुनाव अनिश्चित और अप्रासंगिक दोनों है। यदि शरीफ  खानदान या इमरान खान को छोड़ने वाले लोग सत्ता की कुर्सी पर काबिज हो गये तो आम लोगों की स्थिति बेहतर नहीं होगी। देश ढहती अर्थव्यवस्था से लेकर बढ़ते उग्रवाद, जलवायु संकट और कानून-व्यवस्था में गिरावट तक सभी दिशाओं से चुनौतियों का सामना कर रहा है।जब देश सबसे कमज़ोर स्थिति में होता है, उसी समय अपनी गोटियों सेंकने वाली निहित शक्तियां उसकी ओर आकर्षित होती हैं। पाकिस्तान बुरी तरह पश्चिमी और एशियाई शक्तियों के चंगुल में फंसा हुआ है। जबकि अंतर्राष्ट्रीरय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) चाहता है कि देश एक अरब डॉलर के ऋण की अगली किश्त जारी करने के लिए गरीब समर्थक नीतियों को त्याग दे। चीन धीरे-धीरे महंगी और बेकार परियोजनाओं के माध्यम से उसकी ज़मीन पर दावा कर रहा है। अरब जगत के लिए पाकिस्तान की उपयोगिता भी कम हो गयी है क्योंकि बहरीन या कतर के बजाय उसका अगला अफगानिस्तान बनना तय लग रहा है। पाकिस्तान पूरी तरह अपना मनोबल खो चुका है।आगामी चुनाव चुनावों से ज्यादा पाकिस्तान की नियति पर विचार करने का एक अवसर है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अगली सरकार कौन-सी पार्टी बनायेगी, क्योंकि लोग इस समय केवल खोखले शब्दों की ही उम्मीद कर सकते हैं। उन्हें अपने जीवन में कोई राहत नहीं मिलने वाली है, जबकि देश की प्रतिष्ठा उत्तरोत्तर धूमिल होती जायेगी। (संवाद)