प्रस्तावित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे की चुनौतियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वास्तव में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को लेकर आशान्वित हैं, जिसे उन्होंने हाल ही में नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में पेश किया था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इस परियोजना में शामिल सभी देश इसे चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के खिलाफ नहीं मानते।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब, जॉर्डन और इज़राइल के माध्यम से भारत को दक्षिणी यूरोप से जोड़ने वाले एक सुगम परिवहन मार्ग का निर्माण भारत के प्रभाव को बढ़ायेगा और चुनौतीपूर्ण ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा’ के लिए एक और विकल्प प्रदान करेगा जो ईरान और रूस से होकर गुजरता है, लेकिन इसके विकास में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
पिछले प्रयास के विपरीत प्रस्तापित आर्थिक गलियारा एक नया रास्ता बनाना चाहता है जो इज़राइल और पूर्वी भू-मध्य सागर को भारत के करीब जोड़ता है। चीन का अध्ययन करने वाले इज़रायलीथिंक टैंक सिग्नल ग्रुप का नेतृत्व करने वाले कैरिसविट्टे ने बताया कि सिर्फ  दो दशक पहले इस क्षेत्र को अदन की खाड़ी में समाप्त माना जाता था, जहां हिंद महासागर लाल सागर से मिलता है। सऊदी अरब और यूएई प्रस्तावित गरियारे को बढ़ते और लाभदायक भारतीय बाज़ार तक पहुंचने के एक रास्ते के रूप में देखते हैं। वे तेल पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं और पैसा कमाने के नये तरीके ढूंढना चाहते हैं।
भले ही अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन में गलियारे के लिए मज़बूत समर्थन व्यक्त किया, लेकिन वास्तव में यह भारत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात थे, जो समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सबसे अधिक दृढ़ थे, वाशिंगटन नहीं।
विशेष रूप से रियाद  इस नये गलियारे को वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका को बदलने के साधन के रूप में देखता है। मुख्य रूप से तेल निर्यात करने के बजाय सऊदी अरब का लक्ष्य पर्यटन, निवेश और रसद का एक प्रमुख केंद्र बनना है। यह परिप्रेक्ष्य अज़ीज़ अल-गशियान से आया है, जो एक सऊदी राजनीतिक विश्लेषक और विदेश नीति विशेषज्ञ हैं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, जो देश मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन बेचते हैं, नये गलियारे को लेकर विशेष रूप से उत्साहित हैं क्योंकि यह उनकी अर्थव्यवस्थाओं को और अधिक विविध बनाने की उनकी योजनाओं के अनुरूप है। 
प्रस्तावित गलियारा केवल व्यापारिक वस्तुओं के बारे में नहीं है। यह आपूर्ति श्रृंखलाओं को एक साथ बेहतर ढंग से काम करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है। लक्ष्य एक साथ चीज़ें बनाने के लिए रास्ते में आने वाले देशों में सरकारी और व्यावसायिक सहयोग दोनों को प्रोत्साहित करना है। उनकी प्रस्तावित बंदरगाहों, रेलवे और सड़कों के बगल में बिजली केबल और पाइप लगाने की भी योजना है। यह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से भारत और यूरोपीय संघ तक नवीकरणीय बिजली और हरित हाइड्रोजन ले जायेंगे। हरित हाइड्रोजन को प्राकृतिक गैस का अधिक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प माना जाता है, और यह इन धूप वाले देशों में बड़ी सौर परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न होता है।
उन्होंने वास्तव में एक लम्बा फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क बनाने का भी सुझाव दिया है जो इस परियोजना के क्षेत्रों के बीच इंटरनेट कनेक्शन को बेहतर बनायेगा। इस महीने जी-20 शिखर सम्मेलन में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने नये समझौते की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए और भी बड़े सपने देखने की नींव रखता है। उसके तुरंत बाद उन्होंने सऊदी अरब के वास्तविक नेता, क्राउन प्रिंस मोहम्मद-बिन-सलमान के साथ दिल्ली में एक निजी बैठक की। अपनी चर्चा के दौरान उन्होंने भारत में सऊदी निवेश में 100 अरब डॉलर लाने की प्रक्रिया में तेजी लाने का फैसला किया। यह निवेश योजना पहली बार 2019 में बनायी गयी थी, लेकिन महामारी के कारण इसमें देरी हुई।
इस धन राशि में से लगभग ़55 अरब डालर का उपयोग भारत के पश्चिमी तट पर एक विशाल यीरिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए किये जाने की योजना है। वे सऊदी अरब और यूएई के साथ साझेदारी में भारत में एक रणनीतिक तेल रिज़र्व बनाने का भी इरादा रखते हैं। यूएई की कम्पनियों के एक समूह, जिसमें बंदरगाहों और मुक्त क्षेत्रों का प्रबंधन करने वाली कम्पनी डीपीवर्ल्ड शामिल है, ने पहले ही लॉजिस्टिक्स और भारत और मध्य-पूर्व के बीच एक नियोजित खाद्य गलियारे के लिए 7 अरब डालर के वितरण नेटवर्क के निर्माण पर काम करना शुरू कर दिया है।
भारत और खाड़ी सहयोग परिषद जिसमें सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, ओमान और बहरीन जैसे देश शामिल हैं, के बीच व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में यह 154.7अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 77 प्रतिशत अधिक है। इसी अवधि के दौरान चीन ने इस क्षेत्र के साथ दोनों दिशाओं में लगभग 180 अरब अमरीकी डॉलर का व्यापार किया।
प्रस्तावित गलियारे के कार्यान्वयन में एक स्पष्ट भू-राजनीतिक बाधा सऊदी अरब और इज़राइल के बीच औपचारिक राजनयिक संबंधों की अनुपस्थिति है। हालांकि दोनों देशों के बीच कोई ज़मीनी सीमा नहीं है, लेकिन उन्हें सऊदी अरब द्वारा वित्तपोषित एक प्रस्तावित रेलवे के माध्यम से जोड़ा जाना तय है, जो जॉर्डन तक फैली हुई है। जॉर्डन, जिसने 1994 में इज़राइल के साथ संधि कर शांति स्थापित की और रियाद के साथ एक मज़बूत गठबंधन बनाये रखा, इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रस्तावित गलियारे के संबंध में वर्तमान में अनिश्चितता है कि कौन-सी निजी कम्पनियां भाग लेंगी और जिन परियोजनाओं का काम उन्हें सौंपा जायेगा, उनकी प्रकृति क्या होगी? परियोजना के विशाल पैमाने, व्यापक दायरे और जटिल प्रकृति को देखते हुए एक सतत और मज़बूत राजनीतिक दृढ़ संकल्प आवश्यक है। (संवाद)