गुरु अंगद देव जी तथा खडूर साहिब की अद्वितीय महिमा

गुरु अंगद देव जी द्वारा गुरुमुखी लिपि के मानकीकरण तथा उनकी पत्नी माता खीवी द्वारा लंगर की प्रथा स्थापित करने के बारे में बड़े विद्वानों ने विस्तार सहित लिखा है। इन लेखकों में भाई गुरदास, भाई काहन सिंह नाभा, भाई संतोख सिंह, भाई वीर सिंह, ज्ञानी ज्ञान सिंह, डा. महीप सिंह, प्यारा सिंह पदम, डा. सुरेन्द्र सिंह कोहली तथा गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज सत्ते-बलवंड की वार तथा भट्टों की वाणी ही नहीं, मैथिली शरण गुप्त व गोकुल चंद नारंग भी शामिल हैं। सभी महारथियों ने गुरु अंगद देव जी के जीवन तथा वाणी पर खूब प्रकाश डाला है। इस योगदान का सारांश जानना हो तो नवयुग द्वारा प्रकाशित डा. जसपाल सिंह की पुस्तक ‘गुरु अंगद देव जी : जीवन ते वाणी’ का अध्ययन ज़रूरी है। 
जसपाल सिंह का बड़प्पन इसमें है कि उसने इसका मुख्य श्रेय तरनतारन के निकटवर्ती गुरुधाम खडूर साहिब को दिया है जहां रह कर गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया। इसमें गुरुमुखी लिपि के मानकीकरण तथा लंगर की स्थापना प्रमुख हैं। यह भी कि गुरु अंगद देव उर्फ भाई लहना जी 48 वर्ष की आयु व्यतीत कर ज्योति जोत समा गए परन्तु उनकी पत्नी माता खीवी जी ने इस प्रथा को अपने अंतिम श्वासों तक निभाया।
यह बात भी नोट करने वाली है कि भाई लहना जी के पिता फेरू मल्ल ज्वालामुखी के उपासक थे और अक्सर वहां जाते रहते थे। एक बार अपने पिता के निधन के बाद भाई लहना ज्वालामुखी जा रहे अपने संगी साथियों को छोड़ कर करतारपुर साहिब चले गए, जहां गुरु नानक देव जी अपने हाथों से स्वयं कृषि कर्म करके आम लोगों को लंगर वितरित करते तथा परमात्मा की उस्तति करते। भाई लहना जी गुरु नानक देव जी द्वारा प्रचारित कृषि के उपकार तथा उनके द्वारा उच्चारित की जा रही परमात्मा की उस्तति से  इतने प्रभावित हुए कि वहीं के होकर रह गए। उन्होंने ज्वालामुखी के दर्शन ही नहीं त्यागे, अपितु खडूर साहिब में विराजमान माता खीवी तथा अपने बाल-परिवार को भी विस्मृत दिया। 
माता जी सात वर्ष अकेले रहे तथा उन्हें लोगों के तानों का शिकार भी होना पड़ा। यहां तक कि अपने बाल परिवार के पास लौटने की गुरु नानक देव जी की प्रेरणा का भी कोई प्रभाव नहीं हुआ। यह उनकी भावना तथा निष्ठा ही थी जिसे देखते हुए बाबा नानक देव जी ने उन्हें अंगी-संगी तथा उत्तराधिकारी स्थापित किया। इसके फलस्वरूप वह सदा के लिए भाई लहना से अंगद हो गए और बहुत कम आयु भोगने के बावजूद श्री गुरु अंगद देव जी के रूप में स्वीकार हुए। 
यह बात अलग है कि गुरु नानक देव जी के ज्योति जोत समाने से थोड़ा पहले गुरु अंगद देव जी ने अपना निवास खडूर साहिब बना लिया था जिसमें गुरु नानक देव जी की भावना भी शामिल थी। डा. जसपाल सिंह की पुस्तक इस तथ्य पर भी प्रकाश डालती है कि 2004 में गुरु अंगद देव जी के 500वें प्रकाश पर्व के समय धर्म तथा शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी बहुत-सी योजनाओं की रूप-रेखा तैयार की गई थी।    
इनको क्रियात्मक रूप देने के लिए बाबा सेवा सिंह के संरक्षण में ‘निशान-ए-सिखी’ चैरीटेबल ट्रस्ट स्थापित किया गया। इस समय यहां ‘विद्या विचारी तां परोपकारी’ के संदेश को दर्शाने के लिए आधा दर्जन शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की जा चुकी है। इनमें सिख धर्म के अध्ययन, खोज व प्रचार-प्रसार के लिए (1) श्री गुरु अंगद देव इंस्टीच्यूट आफ रिलीजियस स्टडीज़ ज़रूरतमंद बच्चों की चाहत को तृप्त करने के लिए, (2) निशान-ए-सिखी इंस्टीच्यूट आफ साईंस एंड आई.आई.टी. का नीट विंग, पंजाब की लड़कियों तथा लड़कों को अपने पैरों पर खड़ा करने हेतु, (3) श्री गुरु अंगद देव इंस्टीच्यूट आफ करियर एंड  कोर्सिज़, नैशनल डिफैंस अकादमी के लिए लिखित परीक्षा तथा एस.एस.बी. इंटरव्यू की तैयारी के लिए, (4)स्वतंत्र व अलग अकादमी तथा सिविल सर्विसिस की परीक्षाओं की तैयारी करवाने की भावना वाली व (5) निशान-ए-सिखी प्रेपरेट्री इंस्टीच्यूट फार सर्विसिस स्थापित की गई है, जहां मेधावी विद्यार्थी यूपीएससी तक की तैयारी करते हैं। यहां उम्मीदवारों से किसी प्रकार की फीस तो क्या लेनी है, अध्यापकों का मान-भत्ता, लाइब्रेरी की सुविधा तथा पुस्तकों का खर्च भी नहीं लिया जाता। यह भी निशान-ए-सिखी चैरीटेबल ट्रस्ट पूरा करता हैं। याद रहे कि गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के दृष्टिगत ‘गुरु नानक यादगारी जंगल’ लगाने का कार्य भी आरम्भ किया जा चुका है। 
इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने लोगों के अंधकार को ही दूर नहीं किया, अपितु सिख पैरोकारों को सिख पंथ के रूप में संगठित भी किया। निश्चय ही गुरु नानक देव जी के पहले उत्तराधिकारी के रूप में अंगद देव जी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसे तो नहीं खडूर साहिब को आठ गुरु साहिबान की चरण-छोह प्राप्त हुई। यह पुस्तक गुरु अंगद देव जी की जीवन-प्रक्रिया एवं शिक्षा तथा माता खीवी जी द्वारा खडूर साहिब की महिमा उजागर करने में डाले गये योगदान को बखूबी अंकित करती है। निश्चय ही खडूर साहिब की धरती को दुनिया नमस्कार  करती रहेगी तथा माता खीवी वाला ‘अन्न-देग दा कड़छा’ सर्व-व्यापक रहेगा। याद रहे कि माता खीवी जी के जीवन काल में उन्हें गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी सहित पांच गुरु साहिबान की संगत प्राप्त थी। 
होशियारपुर के गांव हूकड़ा के क्या कहने 
होशियारपुर-फगवाड़ा मार्ग से चार किलोमीटर दूर एक हज़ार की आबादी वाले गांव हूकड़ा का महत्व आम गांवों से अलग है। ‘पंजाब के गांव, शहर तथा कस्बे’ नामक अमरजीत डायरैक्ट्री के अनुसार शिरोमणि पत्रकार तारा सिंह कामल का जन्म इस गांव में 15 मार्च, 1929 को हुआ था, जो बाल आयु में दिल्ली चला गया और 2 फरवरी, 1993 में वहीं निधन हो गया। इस गांव के राम दयाल, रामजीत तथा मोहन लाल चंडीगढ़ पुलिस व सीमा सुरक्षा बल में अच्छे पदों पर होते हुए प्रत्येक वर्ष अपने मिशन अवेयरनैस द्वारा प्राइमरी स्कूलों में पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे मेधावी विद्यार्थियों को नवोदया में दाखिले की तैयारी करवाते हैं। अगले वर्ष की परीक्षा तिथि 20 जनवरी, 2024 है, जिसके लिए होशियारपुर, पठानकोट, नवांशहर, रूपनगर, मोहाली, कपूरथला, जालन्धर, फतेहगढ़ साहिब तथा पटियाला 9 ज़िलों के विद्यार्थी निश्चित केन्द्रों में मुफ्त कोचिंग प्राप्त कर सकते हैं। यह योजना जुलाई मास से आरम्भ है और 20 जनवरी, 2024 तक जारी रहेगी। 
यह बात भी नोट करने वाली है कि इस वर्ष अक्तूबर में हूरड़ा गांव में एक सार्वजनिक एकत्रता करके तारा सिंह कामल यादगारी लाइब्रेरी का भी उद्घाटन किया जाना है, जिसके लिए इंस्पैक्टर राम दयाल अभी से भाग-दौड़ कर रहा है। लाइबे्ररी में सजाई जाने वाली तस्वीरें चुनी जा रही हैं और तारा सिंह का बुत्त बनवाया जा चुका है। 
इस वर्ष हूकड़ा भाइयों के आंगन में एक मोड़ आया है। वह यह कि राम दयाल की बेटी प्रभजोत, जो गवर्नमैंट कालेज फार गर्ल्स में शिक्षा प्राप्त कर रही है, विद्यार्थी चुनाव लड़ा और यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विषय से संबंधित विभागों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनी गई। याद रहे कि मेरा इस परिवार के साथ नाता तब जुड़ा जब राम दयाल 36 सैक्टर, चंडीगढ़ के थाने में तैनात था। 
तारा सिंह कामल तथा हूकड़ा भाइयों का यह गांव ज़िन्दाबाद।
अंतिका
—गुरु अंगद देव जी—
जिसु प्यारे सिऊ नेहु तिसु आगै मरि चलीऐ,
ध्रिगु जीवणु संसारि ता कै पाछै जीवणा।