धूमिल भविष्य की तरफ बढ़ता प्रदेश

लगभग डेढ़ वर्ष से प्रदेश का प्रशासन चला रही आम आदमी पार्टी की भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार शुरू से ही अनेक तरह के विवादों में घिरी रही है। समय-समय पर उठ रहे ये विवाद इतने अधिक बढ़ गए हैं कि इनकी गिनती किया जाना भी कठिन प्रतीत होने लगा है। यदि इस सरकार ने विज्ञापनबाज़ी के सिर पर ही अपना प्रशासन चलाना है तो पंजाब का परमात्मा की रक्षक है। राजनीतिक स्तर पर जिस तरह चुन-चुन कर भगवंत मान अपने विरोधियों से विजीलैंस की कार्रवाइयों द्वारा बदले ले रहे हैं उससे उनकी छवि नहीं बढ़ी, अपितु इसको बड़ा आघात पहुंचा है। सरकार का प्रभाव बदले की भावना से कार्रवाइयां करके विरोधियों को डराने-धमकाने वाली सरकार का बन गया है।
जिस उत्साह से पंजाबियों ने तीसरे विकल्प की सरकार को चुना था, वह उत्साह अब खत्म होता जा रहा है। उम्मीद निराशा में बदलती जा रही है। यदि मुख्यमंत्री का उद्देश्य अपनी हर तरह की तथा प्रत्येक स्तर की बयानबाज़ी करके विरोधियों को हराना ही है तो इसमें भी वह मात खा चुके हैं तथा अपने ही भ्रमों की दुनिया में विचरण करते दिखाई दे रहे हैं। पंजाब के लोकतांत्रिक इतिहास में शायद ही कभी मुख्यमंत्री का किसी राज्यपाल के साथ इस तरह का विवाद उपजा हो। शायद ही किसी राज्यपाल ने निर्वाचित सरकार के प्रमुख के प्रति इस तरह का चुनौती भरपूर व्यवहार अपनाया हो। हम उठे ऐसे विवादों को एक नकारात्मक प्रक्रिया समझते हैं तथा शायद लोग भी इसे पसंद न करें। यदि सरकार की अर्थहीन नारेबाज़ी के मुकाबले में राज्यपाल द्वारा की जा रही बातों में वज़न हो तो यह स्थिति भी सरकार की छवि को आघात पहुंचाने में काफी है। डेढ़ वर्ष की अवधि में राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने कम से कम 12 पत्र मुख्यमत्री को लिखे हैं, जिनमें से ज्यादातर का जवाब देना ही मुख्यमंत्री ने उचित नहीं समझा। इन पत्रों को ‘लव लैटर’ कहना राज्यपाल के संवैधानिक पद का अपमान कहा जा सकता है। यदि सरकार के कामों में अनुशासन नहीं होगा, उनमें कोई योजना नहीं होगी तो उस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। यदि राज्यपाल ऐसे सवाल करते हैं तो उन्हें गलत नहीं कहा जा सकता। यह सवाल सरकार की कार्यशैली से संबंधित थे, उसकी ़गैर-संवैधानिक कार्रवाइयों से संबंधित थे। सरकार की कारगुज़ारी पर व्यक्त किए गए असन्तोष से भी संबंधित थे, तथा सरकार के कई मंत्रियों, कई विधायकों की आपत्तिजनक कार्रवाई से भी संबंधित थे, परन्तु इस बार जो पत्र राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखा, वह बेहद गम्भीर भी है तथा प्रदेश की बेहद बिगड़ रही आर्थिक स्थिति से भी संबंधित है।
मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को केन्द्र द्वारा वित्तीय सहयोग न देने की बात की थी, परन्तु केन्द्र द्वारा पहली योजनाओं के लिए भेजी गई वित्तीय सहायता यदि उन कामों पर खर्च करने की बजाए अन्य ़गैर-ज़रूरी कामों पर खर्च की जाए तो इस संबंध में केन्द्र के साथ टकराव पैदा होना स्वाभाविक है। यदि प्रदेश के विकास को ब्रेक लग जाए, इसकी वित्तीय हालत सरकार की नीतियों के कारण लड़खड़ाने लगे तो राज्यपाल द्वारा उठाये सवाल उचित तथा अर्थपूर्ण प्रतीत होने लगेंगे। अपने पत्र में वित्तीय अनियमितताओं की बात करते हुए राज्यपाल ने यह लिखा है कि वर्ष 2022-23 तक सरकार ने 33,886 करोड़ रुपये का ऋण लिया, परन्तु विधानसभा के सत्र में उसने इस समय के लिए 23885 करोड़ रुपये ही स्वीकृत करवाए थे। इस तरह 10000 करोड़ रुपये अतिरिक्त लेकर अधिक खर्च करने का विवरण तो सरकार को देना ही पड़ेगा, जबकि इसी समय में स्वीकृत करवाए विकास कार्यों पर उसने 1500 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
भारत की महालेखा संस्था (कैग) जो केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों के खातों का हिसाब भी रखती है, उसने कहा है कि उसके अनुसार सरकार ने ऋण अधिक लिया है तथा विकास कार्यों पर बेहद कम खर्च किया है, जो वित्तीय वर्ष में सिर्फ 12 प्रतिशत बनता है। आगामी समय में ऐसे हालात के दृष्टिगत कोई संस्था भी प्रदेश सरकार को और ऋण देने से इन्कार कर देगी। इस तरह पंजाब वित्तीय आपात्काल के शिकंजे में आ जाएगा। पिछले समय में सरकार की कारगुज़ारी संबंधी दृष्टिपात किया जाए तो खज़ाने के धन की लगातार अनियमितताओं के कारण सरकार ने जो दुरुपयोग किया है, वह इसके रसातल की ओर जाने की ही व्याख्या करता है। यही कारण है कि आज पंजाब बेहद अविश्वास के दौर में से गुज़र रहा है तथा इसका भविष्य बेहद धूमिल दिखाई देने लगा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द