फसली विभिन्नता के लिए लाभदायक है फूलों की कृषि

शीत ऋतु के फूलों की पौध लगाने का यह उचित समय है। यह पौध कियारियों तथा गमलों में अक्तूबर-नवम्बर के दौरान ही लगाई जाती है। इस पौध के फूल फरवरी-मार्च में पूरी तरह खिल जाते हैं। यह पौध अब कियारियों व गमलों में लगाई जा सकती है।
इसे कद के हिसाब से तरतीब में लगाना चाहिए। पंजाब बागबानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर (रिटा.) डा. स्वर्ण सिंह मान कहते हैं कि ऊंचे कद वाली पौध जैसे गुलदाऊदी, कोरन फ्लावर, स्वीट सुल्तान, डेहलिया, लार्कसपर, अफ्रीकन गेंदा, एंट्राइनम, हैलिक्राइसम, होलीहाक, कासमास, स्वीट पी, बिल्ज़ ऑफ आयरलैंड को सही तरतीब में लगाया जाए। एक्रोक्लाइज़्म, एस्टर, कार्नेशन, स्वीट विलीयम, पटूनिया, क्लारकिया, कैलेफोर्निया, पोपी, नमेशिया, गज़ानियां, सावलिया, वाल फ्लावर, जिप्सोफिला, स्टेटिस, कोडिडफ्ट, क्लैंडुला, फ्लॉक्स, वरबीना, डाइमोरफोथिका, नशटर्शियम, सिनेरेरिया मध्यम कद वाली पौध हैं। छोटे कद वाली पौध ब्रैचीकम, डेज़ी, पेज़ी, आइस प्लांट, स्वीट अलाइसम, फ्रैंच मैरीगोल्ड आदि हैं। गमलों में लगाने के लिए एस्टर, पटूनिया, गज़ानिया, सिनेरेरिया, साल्विया, नमेशिया, ब्रैचीकम, पेज़ी, आइस प्लांट आदि हैं। छाया वाले स्थानों पर साल्विया व सिलेरेरिया तथा पर्दा करने हेतु सजावटी मटर, हैलीहांक आदि किस्में हैं। सुखा कर रखने के लिए नाइजेला, बिल्ज़ आफ आयरलैंड, स्टैटिस, हैलक्राइज़्म, एक्टोक्लाइनम किस्में हैं। खुशबूदार फूलों के लिए स्वीट सुल्तान, स्वीन विलीयम, सजावटी मटर, स्वीट अलाइसम किस्में योग्य हैं। गुलाब की कलमें बनाने के लिए भी नवम्बर की महीना ही अनुकूल है। देसी गुलाब तथा तेल वाले गुलाब के पौधे भी इसी माह लगाए जाते हैं। इन के अतिरिक्त ग्लैडीओल्स तथा नर्गिस के गांठ भी इसी माह लगाए जाते हैं। डेहलिया की जड़ वाली कलमें गमलों या कियारियों में इसी माह लगाई जाती हैं। डा. मान कहते हैं कि अगेते बीजे गए ग्लैडीओल्स के खेत में यदि दातरी के आकार के पत्तों वाले पौधे दिखाई दें तो उखाड़ कर नष्ट कर देने चाहिएं, क्योंकि उन पर उखेड़ा रोग का हमला हुआ होता है। जिन्होंने गेंदा अगस्त में लगाया है, वे अक्तूबर-नवम्बर में ही गेंदे के फूलों का आनंद ले सकते हैं। पौधों के नीचे से सूखे पत्तों को तोड़ते रहना चाहिए और गुलदाऊदी के गमले अब तैयार कर लेने चाहिएं। छोटे बागों में अंतर फसलों की बिजाई के लिए भी यह समय उचित है। 
फसली विभिन्नता के पक्ष से छोटे किसानों के लिए फूलों की व्यापारिक कृषि लाभदायक हो सकती है। फूलों के उत्पादक कम्पनियों के लिए बीज पैदा करके भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। प्राइवेट कम्पनियां जैसे बायोकार्व सीड्स धबलान (पटियाला) तथा हार्वेस्ट ग्रीन सीड्स पटियाला बाईबैक योजना के अधीन उत्पादकों से बीज तैयार करवा कर खरीदती हैं और फिर बीज को अमरीका, कनाडा, यूरोप तथा आस्ट्रेलिया आदि भेज कर ये कम्पनियां धन कमाती हैं। घरेलू मंडियों में भी ये बीज बेचती हैं। पूसा द्वारा गुलदाऊदी तथा गुलाब की सफल तथा लाभदायक किस्में विकसित की गई हैं, जिन्हें अपना कर छोटे एवं प्रगतिशील किसान फूलों की कृषि करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। कई किस्में अपेक्षाकृत पूरा वर्ष फूल देती हैं। पंजाब में जब मई-जून में तापमान बहुत बढ़ जाता है और दिसम्बर-जनवरी में बहुत ज़्यादा ठंड हो जाती है तो फूलों का लगना कम हो जाता है। फूलों की कृषि में काफी लागत आती है। चाहे बागबानी विभाग राष्ट्रीय बागबानी मिशन के अधीन उत्पादकों को सब्सिडी उपलब्ध करता है, परन्तु व्यापारिक कृषि के लिए छोटे किसानों को आर्थिक मदद और बढ़ाने की ज़रूरत है। व्यापारिक कृषि के लिए ज़िरबरा, देसी गुलाब तथा ग्राफटिड गुलाब भी लगाया जा सकता है। 
पूसा द्वारा विकसित गुलदाऊदी की पूसा सोना किस्म तो अब कुछ दिनों में ही फूल देने शुरू कर देगी। इस किस्म के फूल अन्य दूसरी किस्मों से 20 दिन जल्दी उपलब्ध हो जाते हैं। यह किस्म गमलों में लगाने के लिए बहुत अनुकूल है। फूलों का रंग ज़रद तथा इसके पौधे छोटे रहते हैं। ‘पूसा अरुणोदिया’ किस्म के फूलों का घेरा 7-8 सैंटीमीटर तथा आकार दोहरा है। फूलों का रंग गुलाबी है। ‘पूसा केसरी’ किस्म के फूल कट फ्लावर तथा पौट नुमाइश दोनों उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किये जा सकते हैं। ‘पूसा अदित्या’ किस्म के फूलों का रंग ज़रद है। ये कट फ्लावर और पौट नुमाइश दोनों के लिए ही इस्तेमाल किये जा सकते हैं। पूसा संस्थान द्वारा गुलाब की भी लाभदायक किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें पूसा अरुण, पूसा शताब्दी, पूसा अजेय, पूसा कोमल तथा पूसा मोहित किस्में शामिल हैं। पंजाब में फूलों की काश्त के अधीन रकबा बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। प्रगतिशील  एवं छोटे किसान फूलों की कृषि से लाभ उठा सकते हैं।