भारत के प्रति इतने ‘शरीफ’ क्यों बन रहे नवाज़ ?

नवाज़ शरीफ  वापस लौटकर भारत के लिए शराफत दिखा रहे हैं। कराची की रैली में बोलते हुए उन्होंने भारत के साथ अच्छे रिश्ते गढ़ने की वकालत भी की है। यह उनका हृदय परिवर्तन है या इसमें भी कोई खुराफात छिपी है। सवाल यह भी है कि आखिर नवाज़ भारत के लिए शरीफ  क्यों बन रहे हैं। हालांकि, उनकी टिप्पणी पर अभी हमारी हुकूमत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। देने की ज़रूरत भी नहीं, जल्दबाजी करने की अभी आवश्यकता नहीं? पाकिस्तान राजनीतिक रूप से अपाहिज हुआ पड़ा है। दलदल की ऐसी गहरी खाई में समाया है जहां से निकालकर दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने की कुब्बत फिलहाल उसमें कतई नहीं है। तभी शहबाज़ शरीफ सेना और निर्वासित जीवन जीने वाले अपने बड़े भाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ  के मध्य एक गुप्त समझौता करवाया। गुप्त समझौते पर जैसे ही मुहर लगी नवाज़ की वतन वापसी का रास्ता साफ  हुआ। 
यह सौ आने सच है कि पाकिस्तानी सियासत कभी भी सेना के दबदबे से आज़ाद नहीं हो पाएगी। पिछले चुनाव में नवाज़ की पार्टी को हरा कर पूर्व क्रिकेटर इमरान खान ने अपनी सरकार बनाई थी। इमरान जैसे-जैसे फौज के खिलाफ  मुखर हुए, उनकी सत्ता से विदाई की ज़मीन भी तैयार होती गई। इस कड़वी सच्चाई से नवाज़ विदेश में बैठे-बैठे और वाकिफ  हो गए। तभी उन्होंने बिना शर्त सेना के आगे घुटने टेक दिए। परवेज़ मुशर्रफ  निर्वासित जीवन में ही चल बसे। अंतिम सांस भी उनको अपने वतन में नसीब नहीं हुई। कमोबेश, कुछ ऐसा ही नवाज़ शरीफ के साथ भी होता, लेकिन वह सियासत के बड़े चतुर और माहिर खिलाड़ी हैं। बदली सियासी हवा की नब्ज़ को जानते-समझते हैं। वतन से बाहर रहते हुए भी उनके दिमाग में राजनीतिक कीड़ा हर पल काटता रहा और अपनी स्वदेश वापसी की रणनीति पाकिस्तान के बाहर रहते हमेशा बनाते रहे। पाकिस्तान में बेशक उनके छोटे भाई प्रधानमंत्री रहे, लेकिन फैसले सभी उन्होंने ही लिए। उनका सरकार के भीतर अप्रत्यक्ष रूप से दखल रहा।
पड़ोसी मुल्क में सियासत ने एक बार फिर नई करवट ली है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के लिए राजनीतिक मैदान फिर से सजा है। सामाजिक और सरकारी स्तर पर शरीफ  के लिए माहौल बनाया जा रहा है। वतन लौटने के तुरंत बाद उन्होंने सबसे पहले लाहौर में ‘मीनार-ए-पाकिस्तान’ में रैली आयोजित की, जिसमें उमड़ी भीड़ देखकर वह गदगद हुए। भीड़ देख कर उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे पूरा पाकिस्तान उनके लौटने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। 74 वर्ष के हो चुके नवाज़ शरीफ  तीन मर्तबा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे हैं, अब चौथी बार प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश उन्होंने ज़ाहिर की है। बन भी सकते हैं, कोई बड़ी बात नहीं। पिछले चुनाव में उन्हें मात मिली थी। कुछ ही महीनों में आम चुनाव होने हैं। इमरान खान का कमज़ोर पड़ना नवाज़ शरीफ के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।
भारत-पाक में रिश्ते बातचीत से ही सुधरेंगे। यह सभी जानते हैं, लेकिन अब बातचीत के ज़रिये रिश्ते सुधारना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि हर बार पाकिस्तान ने भारत का विश्वास तोड़ा है। दोबारा से नवाज़ ने बातचीत के रूप में भारत के लिए ‘शालीनता’ शब्द का इस्तेमाल किया है, इसका क्या मतलब है? इसको लेकर बहस छिड़ी है। क्या वह पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सरकार की आलोचना के रूप में कहना चाहते हैं कि पाकिस्तान की पूर्ववर्ती सरकारों ने कश्मीर का मुद्दा ‘शालीनता’ से नहीं छेड़ा था? हालांकि उनकी बातों पर भारत ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता। शरीफ  आज भले ही हमारे साथ रिश्ते सुधारने की बात कह रहे हों, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1999 में उन्हीं के प्रधानमंत्री रहते कारगिल में युद्ध हुआ था। एक बात वह और भूले रहे हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत का एक और बेहतरीन मौका गवाया था जब दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कर भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो उसके बाद भी पाकिस्तानी सेना ने हमारी सीमा में घुसपैठ की नाकाम कोशिशें की थीं, उसके बाद बातचीत के रास्ते लगभग बंद हो गए।
भारत के लिए पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ  की पाकिस्तान वापसी कितनी महत्तवपूर्ण है, यह बड़ा सवाल सभी के मन में उठ रहा है। वह तीन मर्तबा अपने मुल्क के प्रधानमंत्री रहे, तब दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्तों की वकालत करते रहे। पिछले दिनों को ‘मीनार-ए-पाकिस्तान’ की रैली में भी उन्होंने कहा कि नासूर बना कश्मीर का मसला ‘शालीनता’ से सुलझाकर भारत के साथ अच्छे रिश्ते दोबारा से शुरू करेंगे। हालांकि भारत तो हमेशा से इसका पक्षधर रहा है। भारत ने बातचीत के रास्ते कभी बंद नहीं किए। 2014 में जब केंद्र की सत्ता में प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का आगमन हुआ तो उन्होंने बड़े मानवीय तरीके से बातचीत को आगे बढ़ाने की अलहदा तस्वीर पेश की थी। बिना आमंत्रण के वह पाकिस्तान पहुंचे थे। इसके बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। फिलहाल नवाज़ कितनी भी शराफत क्यों न दिखाएं, भारत को एकदम विश्वास नहीं करना चाहिए, फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाना चाहिए। (युवराज)