भारत की प्राथमिकता

चाहे दुनिया के देशों के बीच समय-समय पर हुए बड़े टकरावों को संयुक्त राष्ट्र क्रियात्मक रूप में रोकने में कामयाब नहीं हुआ क्योंकि उसकी महा सभा में पास किए गए प्रस्तावों पर बड़े-छोटे देश अमल नहीं करते। किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून के अधीन, उनको इसके लिए मजबूर भी नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र के ज्यादातर देश रूस और यूक्रेन के मध्य युद्धविराम के लिए प्रस्ताव पास करते रहे हैं। इसी प्रकार इज़रायल और हमास के मध्य बड़े स्तर पर शुरू हुए युद्ध को रोकने के लिए भी संयुक्त राष्ट्र की महा सभा ने प्रस्ताव पास किया है। चाहे इस प्रस्ताव के पक्ष में 120 वोट पड़े और 45 देश अनुपस्थित रहे परन्तु भारत की अनुपस्थिति देश और विदेशों में बहुत खटकती रही है। वर्ष 1948 में यह मामला छिड़ने पर भारत ने फिलिस्तीन के पक्ष में रवैया अपनाया था, क्योंकि लाखों ही फिलिस्तीनी लोगों को इज़रायल के अस्तित्व में आने पर उनके घरों में से उजाड़ दिया गया था। आज तक भी वे दर-दर भटकते नज़र आ रहे हैं। समय-समय इस समस्या के अनेक हल निकालने का यत्न किया गया। संयुक्त राष्ट्र सहित बड़े देशों ने भी इसको सुलझाने के यत्न किए परन्तु फिर भी यह मामला और उलझता गया।
आज चाहे भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों ने इज़रायल के अस्तित्व को मान लिया है परन्तु इसके साथ-साथ भारत का पक्ष यही रहा है कि यहूदी और फिलिस्तीनी दो आज़ाद देश अस्तित्व में आने चाहिएं। इस मामले का स्थायी हल इसी प्रकार ही निकाला जा सकता है, परन्तु ईरान सहित कुछ अरब देश इज़रायल के अस्तित्व को मानने को तैयार नहीं हैं। फिलिस्तीनियों में भी कुछ ऐसे संगठन हैं, जो प्रतिदिन इज़रायल को चुनौती देते रहते हैं। 7 अक्तूबर को गाज़ा पट्टी से जिस हमास संगठन ने इज़रायल पर हमला किया, वह संगठन हमेशा ही इज़रायल के अस्तित्व के खिलाफ रहा है। इस हमले में बड़ी संख्या में इज़रायलियों के मारे जाने को बहुत ही क्रूरतापूर्ण कार्रवाई ही कहा जाएगा। उसके बाद शुरू हुए युद्ध में जिस तरह इज़रायल ने गाज़ा पट्टी के छोटे से इलाके पर लगातार बम चलाए हैं, और उसे तबाह करके रख दिया है, उससे विश्व में बड़ी चिंता और रोष पाया जाने लगा है। इसके दृष्टिगत संयुक्त राष्ट्र की महासभा में अरब देशों द्वारा इस युद्ध को तुरंत समाप्त करने वाला प्रस्ताव लाया गया था, जो जार्डन द्वारा तैयार किया गया था। 
जहां तक इस युद्ध का संबंध है, इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में जो भाषण दिया गया है, वह गहरे अर्थों वाला है। गुटेरेस ने हमास द्वारा इज़रायल पर किये गये हमले की भरपूर निंदा की है, परन्तु साथ ही यह भी कहा है कि ऐसे हमले के लिये विगत 56 वर्ष से ज़मीन तैयार होती रही है। फिलिस्तीनियों की आर्थिकता ध्वस्त कर दी गई है। लोग पूरी तरह से उजाड़ दिये गये। उन्होंने यह भी कहा कि इस बात का ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि हमास के हमले की सज़ा फिलिस्तीनी लोगों को सामूहिक रूप में नहीं दी जा सकती। सभी पक्षों को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत अपनी ज़िम्मेदारियां समझनी चाहिएं और सैन्य कार्रवाई में आम नागरिकों को नहीं लपेटा जाना चाहिए। गुटेरेस ने इज़रायल द्वारा गाज़ा पट्टी में सार्वजनिक स्थानों तथा अस्पतालों पर की जा रही बमबारी को अमानवीय मानते हुये यह भी कहा कि किसी भी सशस्त्र संघर्ष में नागरिकों की सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण होती है। किसी भी पक्ष द्वारा लोगों को मानवीय ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इस युद्ध में आम फिलिस्तीनियों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके लिये आज बिजली उपलब्ध नहीं, पीने वाला पानी नहीं है और उनके पास राहत सामग्री पहुंचना बेहद मुश्किल हो गया है। 
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के निदेशक थामस व्हाइट ने बताया था कि गाज़ा पट्टी की घेरेबंदी के बाद नागरिकों के लिये सुविधाएं समाप्त होने के समान हो गई हैं। यहां तक कि भूखे-प्यासे लोगों ने संयुक्त राष्ट्र के गोदामों को भी लूट लिया है। लगातार बमवर्षा के के कारण संचार साधन खत्म हो गये हैं और मानवता लहू-लुहान हो चुकी है। ऐसी स्थिति में भारत का यह फज़र् बनता है कि वह इस युद्ध को समाप्त करने के यत्नों में प्रभावशाली ढंग से शामिल हो। इस युद्ध को हर हाल में रोका जाए और विशेष तौर पर भारत फिलिस्तीन के आम लोगों के साथ खड़ा होने के लिये अपनी आवाज़ बुलंद करे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द