बंद मुट्ठियों की दास्तां 

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)

क्योंकि इनफार्मेशन बढ़ रही है और कम्यूनीकेशन कम हो रही है। जवानी में मतलबप्रस्ती वाला प्यार दौरे नौजवानी का एक शोशा होता है। कामसुख की अनुशासनहीनता उत्तेजना इंसान को नीम पागल ही नहीं अंधा भी कर देती है। माता-पिता की इच्छाएं मुश्वरे से चलने वाले बच्चे समाज में इज्ज़त मान पाते हैं। माता-पिता की अगुवाई, रिश्ते की सहमति, दोनों पक्षों के खूबसूरत आदान प्रदान से साझी खुशी, अपनी खुशी बांट कर खुशी प्राप्त करना तहजीब है। संस्कार की। केवल काम सुख की भूख की जल्दबाजी की पूर्ती मनमर्जी की औकात अंदर रह कर शादी करना परेशानियों को जन्म दे सकती है। कामुकता, कामवासना मानसिक रोगी बना देती है अगर हद्दें (सीमा) लांघ जाए तो माननीय दुर्वलता है। यह सबसे खतरनाक नशा है जब यह उतरता है तो बहुत कुछ बिगढ़ चुका होता है। जोश में दोस्ताना संबंधों को रिश्ते का नाम देकर विवाह बंधन की जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। परख निरीक्षण, परीक्षण से विचार करना ज़रूरी है। संस्कार में किए बंधन सुखदायक तथा चारों और खुशियां तथा हमदर्दी देते हैं। मर्यादा में रहकर विवाह बंधन इज्ज़त मान, खुशी, समाज के लिए द्रर्पण तथा रोबदार असर पैदा करता है।
देखो बेटी पशु पक्षी भी अपने काम सुख काबू नहीं पा सकते। केवल मनुष्य ही मर्यादा में रह कर, अनुशासन में रह कर काबू रख सकता है। बेटी तस्कर (स्मगलर) लोगों पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। यह किसी वक्त भी मौत के मुंह में जा सकते है। यह लोग बड़े लोगों के ईशारों पर काम करते हैं। एक ना एक दिन यह पकड़े ही जाते हैं। बेटी तू कुछ समय सोच ले, अपने घर वालों से बातचीत कर ले। मेरे ख्याल में तुझे इस लड़के के साथ शादी नहीं करनी चाहिए। मेरा निजी तजुर्बा है कि इन लोगों की जिंदगी सुरक्षित नहीं होती। मैं अनेकानेक मुकदमों में ऐसे लोगों को सज़ा सुना चुका हूं। यह लोग सारी उम्र के लिए नकारा हो जाते हैं। यह लोग ना घर के ना बाहर के रहते हैं।
डाक्टर साहिब मैं बजिद हो गई तथा जज साहिब को तरले मिन्नता करते हुए कहा सर मैं बहुत दूर निकल चुकी हूं प्यार में, अब वापिस नहीं आ सकती। प्लीज सर हैल्प मी, सर मैं सारी उम्र आप का अहसान नहीं भुलूंगी। सर यहां तक घरवालों का सवाल है, सर मैं पड़ी लिखी हूं। खुद कमाती हूं, मुझे अपने भविष्य बारे अच्छे बुरे फैसले लेने का पूरा पूरा हक है। सर, औरत को भी अपनी मरजी से जीने का अधिकार होना चाहिए। जज ने मजबूर होकर कहा, अच्छा बेटी अगर तुम इतनी ही दूर चली गई हो प्यार में। अगर पक्का मन बना ही लिया है तो फिर कुछ तारीखों के बाद उसको बरी कर दूंगा परन्तु तुम किसी से भी यह बात नहीं करोगी।
विनम्रता से सिर झुका कर जज से कहा, थैक्यू सर थैक्यू वेरी मच सर।
मैं खुशी में पागल होती जा रही थी। डयूटी के बाद शाम को मैं उस लड़के से मिली उसको सारी बात सुना दी तथा उसको हिदायत की कि तू किसी से बात नहीं करेगा। लड़का बहुत खुश हुआ।
हम नई जिंदगी के बारे कई हसीन सपने देखने लगे। भविष्य की अनेक योजनाओं का चित्रण कर लिया। हम छुट्टी वाले दिन बाहर घूमने चले जाते। उस लड़के के साथ अनेकों शहर हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, गोआ आदि राज्यों के शहरों में भ्रमण किए। भ्रमण का सारा खर्च वह लड़का ही करता था, हम दोनों बहुत खुश थे।
एक दिन जज ने मुझे बुला कर कहा, देखो बेटी दो दिनों के पश्चात मैं इस लड़के को बरी कर दूंगा तथा तुम खुशी खुशी शादी कर लेना।
लड़के ने मुझे कहा कि जिस दिन मैं बरी हो जाऊंगा में तुझे पांच बचे के बाद तेरी डयूटी के बाद, बस स्टैंड के बाहर एक स्तम्भ के नीचे मिलूंगा तथा वहां से फिर हम गाड़ी में बैठकर चले जाएंगे। उसने मेरे साथ समय स्थान निश्चित कर लिया। निश्चित समय वाले दिन जज ने लड़के को बरी कर दिया। लड़का मुझे कोर्ट में ईशारा कर के चला गया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जैसे विजयी सपनों के पंखों से मैं उड़ती जाऊं।
डाक्टर साहिब मैं पांच से पहले ही बस स्टैंड के सामने उस स्तम्भ के नीचे जा खड़ी हो गई। अनेक तरंगे, उमंगे, चावल, उम्मीदों से मेरा दिमाग खुशियों से भर गया। जैसे सारा संसार मेरे कदमों के नीचे आ गया हो। जैसे परमात्मा ने मेरी मूंह मांगी मुराद पूरी कर दी हो। खुशी में पागल सी होती जा रही थी। सच डाक्टर साहिब जब सुपने हकीकत में साकार होते हैं तो मनुष्य जन्नत को क्या भगवान की भी प्रवाह नहीं करता। मैं उस स्तम्भ के नीचे खड़ी उसका बेसब्री से स्थिर दृष्टि लगा कर इंतजार कर रही थी। पांच बज गए, छह बज गए। मेरा दिल घटने लगा। परन्तु जज साहिब के कहे शब्द कानों में गूंजने लगे। एक भय सारे शरीर में अग्नि की लहर बन कर दौड़ने लगा। एकदम ठंडा पसीने आने लगा। डाक्टर साहिब मैं कई घण्टे वहां उसका इंतजार किया, वह ना आया। अब मुझे पूरा यकीन हो गया कि उसने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। मैं क्रोध में आकर दोनों मुट्ठियां ज़ोर ज़ोर से स्तम्भ पर मारती गई, बस डाक्टर साहिब तबसे यह दोनों मुट्ठियां बंद हैं, खुलती नहीं। (समाप्त)

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