भूमिहीन किसानों के लिए लाभदायक है मशरूम की काश्त

 

पंजाब के वर्तमान तापमान में आजकल मशरूम की काश्त शुरू की जा सकती है। इसे अप्रैल माह तक जारी रखा जा सकता है। भूमिहीन किसान इसकी काश्त से विशेष तौर पर लाभ उठा सकते हैं। इसके लिए थोड़े से प्रशिक्षण की आवश्यकता है जो बागबानी विभाग तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय उपलब्ध करवा देता है। पंजाब में मौसम के लिहाज़ से तीन किस्म की मशरूम पैदा की जा सकती है। ढींगरी, सफेद बटन जैसी मशरूम तथा पराली वाली मशरूम। ढींगरी मशरूम की काश्त सामान्य रूप में की जाती है। यह बहुत आसान है। अक्तूबर से लेकर अप्रैल तक इसकी चार फसलें ली जा सकती हैं। इसका बीज पी.ए.यू. या बागबानी विभाग से मिल जाता है। पटियाला तथा जालन्धर में बागबानी विभाग द्वारा सामान पैदा करने की प्रयोगशालाएं स्थापित हैं।
बागबानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर सेवानिवृत्त डा. स्वर्ण सिंह मान कहते हैं कि ढींगरी मशरूम पैदा करने के लिए उत्पादकों को तूड़ी, मशरूम के बीज तथा प्लास्टिक के लिफाफों की आवश्यकता है। तूड़ी को साफ फर्श पर बिछा कर इस प्रकार गीला करें कि पानी बाहर न निकले। तूड़ी को 12 से 24 घंटे तक इस तरह गीला रखा जाए कि उस में नमी की मात्रा 70 प्रतिशत हो। दस किलो सूखी तूड़ी के लिए एक किलो बीज डालना ज़रूरी है। भीगी हुई तूड़ी में बीज मिला कर उसे प्लास्टिक के लिफाफे में भर दिया जाता है, लिफाफे में भरते समय तूड़ी को थोड़ा-थोड़ा दबाते रहना चाहिए। लिफाफा भरने के बाद इसे ऊपर से बांध देना चाहिए। दूसरी विधि के अनुसार तूड़ी में दो इंच की तह डाल कर बीज की तह बिछाई जाती है। फिर लिफाफे को ऊपर से बांध देना ज़रूरी है। बांधे हुए लिफाफों को बंद कमरे में रख दिया जाता है और 24-25 दिनों तक मशरूम का बीज पूरी तूड़ी में फैल जाएगा। फिर लिफाफों को फाड़ कर अलग कर लिया जाता है। इस बड़े ढेले को किसी ईंट पर रख कर स्प्रे पम्प के साथ पानी देकर गीला रखा जाता है। इससे एक सप्ताह के बीच ही चारों ओर छोटी-छोटी बटन जैसी ढींगरी दिखाई देने लग जाती है। जो 4-5 दिनों में अपना पूरा आकार बना लेती है। फिर एक माह में पूरी ढींगरी मशरूम निकल आती है। 
ढींगरी की कटाई पानी देने से पहले करनी चाहिए। जब ढींगरी के पत्ते भीतर की ओर मुड़ने शुरू हो जाएं तो यह कटाई के योग्य है और इसे तोड़ लेना चाहिए। इसे जड़ से साफ करके पैकेट बना कर बेचा जा सकता है। खपतकार 100 ग्राम का पैकेट आम तौर पर खरीदना चाहते हैं। ढींगरी को सुखाया भी जा सकता है। यह सामान्य धूप में या ड्रायर में सुखाई जा सकती है। ढींगरी को पूरी तरह सुखा कर प्लास्टिक के लिफाफों में डाल कर हवा रहित करके सील कर देना चाहिए। इसके बाद इसे बेचा जा सकता है। चाहे सुखा कर ढींगरी की फसल 10 प्रतिशत ही रह सकती है, परन्तु इस्तेमाल करते समय इसे गर्म पानी में भिगो दिया जाता है। इसका वज़न पुन: 80 प्रतिशत तक हो जाता है। मशरूम सूप के तौर पर या इसका आचार डाल कर या इसकी सब्ज़ी बना कर इस्तेमाल की जा सकती है। होटलों में इसकी मिक्स सब्ज़ी आम चलती है।
सफेद बटन जैसी मशरूम उगाने के लिए 3 क्ंिवटल तूड़ी, 3 किलो फास्फेट, 3 किलो एम.ओ.पी., 150 ग्राम फुरावान, 2 किलोग्राम सीरा, 30 किलोग्राम जिप्सम, 250 ग्राम लिंडैन डस्ट तथा 60 किलोग्राम बी.एच.सी. पर आधारित कम्पैक्ट तैयार करना पड़ता है। इसे तैयार करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों में प्रशिक्षण दिया जाता है। पराली को इस्तेमाल करके भी मशरूम तैयार की जाती है। यह पराली वाली मशरूम के नाम से जानी जाती है।
मशरूम का पौष्टिक तत्वों के पक्ष से भी बड़ा महत्व है। इसका इस्तेमाल शरीर को स्वस्थ रखता है। इसमें प्रोटीन की काफी मात्रा होती है। इसके  अतिरिक्त मशरूम में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, पोटाश तथा विटामिन सी आदि काफी मात्रा में होते हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाहट बहुत कम मात्रा में होती है, जिसके लिए  यह शुगर तथा ब्लड प्रैशर के मरीज़ों के लिए भी लाभदायक होती है।